अमृतारिष्ट बनाने के लिए इन जड़ी-बूटियों की आवश्यकता होगी.
हरा गूरिच 5 सेर, दशमूल 5 सेर को छोटे-छोटे टुकड़े करके 60 सेर पानी में पकाएं. जब 15 सेर पानी रह जाए तो छानकर उसमें 5 सेर पुराना गुड़, सफेद जीरा 64 तोला, सहतरा 8 तोला, सनमकाई 4 तोला, सोठ 4 तोला, कालीमिर्च 4 तोला, पीपल 4 तोला, नागरमोथा 4 तोला, अतीश 4 तोला, इंद्रजव 4 तोला, कुटकी 4 तोला सभी को अधकुटा करके बरनी ( घड़ा ) में डालें और मुखमुद्रा करके 40 दिन के लिए छोड़ दें. 40 दिन बाद इसे छानकर सुरक्षित रख लें. अमृतारिष्ट तैयार हो गया.
दशमूल- बेल की छाल, अरणी, अरलू की छाल, गंभारी की छाल, पाढ़ल की छाल, शालपर्णी, पृष्णपर्णी, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, गोखरू सभी मिलकर दशमुल कहलाते हैं.
अमृतारिष्ट के उपयोग एवं फायदे-
मात्रा- 20 से 40 मिलीलीटर उतना ही पानी मिलाकर दिन में दो बार भोजन के बाद सेवन करें.
अमृतारिष्ट पीने के फायदे-
- अमृतारिष्ट सभी तरह के बुखार के लिए रामबाण औषधि है. यह क्षय ( टीबी ) और गंडमाला को भी दूर करता है.
- इसके सेवन करने से पुराने से पुराना बुखार से हुई निर्बलता दूर होती है.
- ज्यादा दिनों तक जाड़ा देकर आने वाले बुखारो में प्लीहा और यकृत की वृद्धि हो जाने से बुखार का प्रकोप विशेष हो जाता है और मन्दाग्नि, भूख न लगना, शरीर में खून की कमी, कमजोरी आदि लक्षण हो जाते हैं. ऐसी अवस्था में अमृतारिष्ट अमृत के समान गुणकारी सिद्ध होता है. इसके साथ में सुदर्शन चूर्ण का भी सेवन करना चाहिए. इससे रोगी बहुत ही जल्दी ठीक हो जाता है.
- अमृतारिष्ट में गुरीच ( गिलोय ) मुख्य औषधि है अतः इसके गुण भी इसमें अधिक पाए जाते हैं. इसलिए मूत्राशय की कमजोरी के कारण यदि बार-बार पेशाब जाने की शिकायत हो गई हो तो उसे भी दूर कर देता है. सुजाक और उपदंश रोग में भी यह सौम्य तथा रक्तशोधक गुण होने के कारण दिया जाता है.
- प्रसूत ज्वर में इसका उपयोग किया जाता है. हालांकि प्रसूत ज्वर में दशमूलारिष्ट का उपयोग करने से अच्छा लाभ होता है फिर भी पीत प्रधान प्रसूत बुखार जिसमें हाथ- पांव में जलन, पेट में दाह हो, प्यास अधिक लगे, कभी- कभी चक्कर आने लगे, बुखार की गर्मी बढ़ी हुई हो, शीतल चीजों से विशेष प्रेम हो ऐसी अवस्था में अमृतारिष्ट के उपयोग से अच्छा लाभ होता है क्योंकि यह पौष्टिक भी है.
- अधिक दिनों तक बुखार रह जाने के कारण मंदाग्नि हो जाती है. जिससे रस, रक्त आदि धातुए ठीक और उचित परिणाम में नहीं बनती है. अतएवं शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण शरीर पीला दिखने लग जाती है. यकृत, प्लीहा की वृद्धि हो जाने से पीत का स्राव सही ढंग से नहीं होता है, इसके वजह से पेट में दर्द, भोजन नहीं पचना, पेट में आवाज होना, वायु का संचार नहीं होना आदि उपद्रव हो जाते हैं. पतले दस्त भी आने लग जाते हैं. ऐसी स्थिति में अमृतारिष्ट का सेवन अति गुणकारी होता है क्योंकि इसका प्रभाव प्रथम आमाशय पर होता है. यह पाचक पीत को उत्तेजित कर पाचन क्रिया को ठीक करता है तथा भूख में बढ़ोतरी करता है. साथ ही रंजीत को भी जागृत कर रक्त कणों की वृद्धि करते हुए शरीर की कांति अच्छी बना देता है और यकृत, प्लीहा की वृद्धि को रोककर उसे निरोग बना देता है.
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