चंदनासव बनाने के लिए जड़ी- बूटियों की आवश्यकता होगी. चंदनासव बनाने की विधि, उपयोग एवं फायदे
सफेद चंदन, नागर मोथा, नीलोफर, पद्माख, लोध, मजीद, फुल प्रियंगु, लाल चंदन, अनंत मूल, चिरायता, वट वृक्ष की छाल, पीपल वृक्ष की छाल, कचूर, कचनार का छाल, शहतरा, आम की गुठली, मोचरस 75-75 ग्राम. सभी को अधकुटा करके 32 लीटर पानी में पकाएं. जब पानी 8 लीटर रह जाए तो बरनी ( घड़ा ) में डालकर इसमें धाय फूल 200 ग्राम, काली द्राक्ष 250 ग्राम, शक्कर 1250 ग्राम, गुड़ 625 ग्राम को बरनी में डाल दें और मुख मुद्रा कर 40 दिन के लिए छोड़ दें. 40 दिन बाद छानकर सुरक्षित रख लें.
चंदनासव के उपयोग एवं फायदे-
मात्रा- 25 से 50 मिलीलीटर दिन में दो-तीन बार पिएं.

चंदनासव पीने के फायदे-
- प्रेमेह, पेशाब का रुकना, पेशाब में जलन होना, मूत्रकृच्छ, ग्नोरिया, रक्तपीत, भ्रम, खोटी गर्मी को मिटा कर शरीर को ठंडा रखता है. यदि शरीर में कहीं घाव हो गया है तो इसे पीने से यह पीप का नाश करता है.
- चंदनासव शीतवीर्य होने की वजह से उष्णता को नष्ट करता है और शुक्र स्थान की गर्मी को दूर कर बल तथा वीर्य की वृद्धि करता है. पेशाब पीला या काला हो रहा हो तो चंदनासव पीना फायदेमंद होता है यह पेशाब साफ करता है.
- चंदनासव के सेवन से पेशाब के साथ धातु जाना, स्वप्नदोष, कमजोरी, श्वेत प्रदर और उपदंश के विकार, भूख नहीं लगना और ह्रदय रोग दूर हो जाते है.
- सुजाक में चंदनासव के साथ चंदन के तेल का सेवन करने से काफी लाभ होता है.
- चंदनासव शीतवीर्य होने से सुजाक, उपदंश एवं पेशाब के रोगों में बहुत लाभदायक होता है. यह हृदय को बल देने वाला, पौष्टिक तथा बलवर्धक एवं अग्निप्रदीपक है.
- सुजाक की प्रथम अवस्था में जलन होती है जिससे पेशाब करने के समय दर्द होता है और पेशाब खुलकर नहीं आता है, कुछ दिनों तक यही क्रम रहने की वजह से मूत्रनली में घाव होकर पीप निकलने लगता है और यह स्राव बराबर जारी रहता है. रोग पुराना होने पर पीप में दुर्गंध आने लगती है. शरीर कांतिहीन हो जाता है. रक्त विकार होने से त्वचा रुक्ष हो जाती है तथा चकत्ते आदि भी निकलने लगते हैं. ऐसी अवस्था में चंदनासव के सेवन से जलन शांत होकर पेशाब खुलकर आने लगता है और धीरे- धीरे आना पीप रुक जाता है.