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दशमूलारिष्ट बनाने की विधि, उपयोग एवं फायदे

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : आरिष्ट /आसव / क्वाथRead Time : 1 MinUpdated On March 13, 2021

हेल्थ डेस्क- दशमूलारिष्ट एक आयुर्वेदिक औषधि है. जिसे कई जड़ी- बूटियों की मेल से अरिष्ट विधि से तैयार किया जाता है. इसमें 10 मुख्य जड़ी- बूटियों ( दशमूल ) का मिश्रण होता है जिससे इसे दशमूलारिष्ट कहा जाता है.

दशमूलारिष्ट प्रसव के पश्चात आई बुखार के इलाज में विशेष गुणकारी औषधि है. इसके सेवन से पाचन तंत्र मजबूत होता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. यह आरिष्ट शारीरिक दर्द से भी छुटकारा दिलाती है. इन सबके अलावा मानसिक तनाव खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह औषधि लगातार हो रहे पीठ दर्द को राहत देने में भी अति गुणकारी औषधि मानी जाती है.

आज हम इस लेख के माध्यम से आपको दशमूलारिष्ट बनाने की विधि, उपयोग करने के तरीके और फायदे के बारे में बताएंगे.

चलिए जानते हैं विस्तार से

दशमूलारिष्ट बनाने के लिए इन जड़ी बूटियों की आवश्यकता होगी.

दशमूल 80 तोला, चिताउर 4 तोला, पोहकर मूल 4 तोला, लोध्र 4 तोला, गिलोय 4 तोला, धमासा 4 तोला, आंवला 4 तोला, हरे 4 तोला, कत्था 4 तोला, बराही कंद 2 तोला, असगंध 2 तोला, विदारीकंद 2 तोला, काकड़ासिंगी 4 तोला, इंद्रजव मीठा 2 तोला, नागकेसर 2 तोला, हल्दी 2 तोला, नगर मोथा 2 तोला, पदमाख 2 तोला, सौंफ 2 तोला, कचूर 2 तोला, सुपारी 2 तोला, पीपल 2 तोला, संभालू के बीज 2 तोला, निशोथ 2 तोला, शहजीरा 2 तोला, शतावरी 2 तोला, फुल प्रियंगु 2 तोला, जटामांसी 2 तोला, चव्य 2 तोला, पुनर्नवा 2 तोला, बहेड़ा 2 तोला, भारंगी 2 तोला, मुलेठी 2 तोला, भाभी रंग 2 तोला, देवदार 2 तोला, मजीठ 2 तोला, कूठ 2 तोला, काली द्राक्ष 100 तोला, सभी को अधकुटा करके 32 सेर पानी में पकाएं. जब 8 सेर पानी रह जाए तो उसमें शहद सवा सेर, पुराना दूर 2.5 सेर, धायफूल 40 तोला, कबाबचीनी 3 तोला, खस 3 तोला, सफेद चंदन 3 तोला, नागकेसर 3 तोला, पीपल 3 तोला, तमाल पत्र 3 तोला, छोटी इलायची 3 तोला, दालचीनी 3 तोला, लौंग 3 तोला, जायफल 3 तोला सभी को अधकुटा करके क्वाथ सहित बरनी ( घड़ा ) में डालकर मुखमुद्रा करके 40 दिन के लिए रख दें. 40 दिन बाद छानकर सुरक्षित रखें यही दशमूलारिष्ट है.

दशमूलारिष्ट के उपयोग एवं फायदे-

मात्रा- 2 से 4 तोला दिन में 2 बार बराबर मात्रा में पानी मिलाकर पिएं.

छाती में जलन होने के कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपचार 

अग्निमांद्य रोग होने के कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय 

दशमूलारिष्ट पीने के फायदे-

  • दशमूलारिष्ट पीना क्षय ( टीबी ) प्रसूत ज्वर, पुराना बुखार के लिए काफी फायदेमंद है. इससे भूख और शक्ति बढ़ती है.
  • दशमूलारिष्ट के उचित मात्रा में सेवन करने से धातुक्षय, खांसी, श्वास, बवासीर, उदर रोग, प्रेमेह, अरुचि, पांडू, सब प्रकार की वात व्याधि, शूल, श्वास, वमन, प्रदर रोग, कुष्ट, भगंदर, मूत्रकृच्छ, अम्ल पित्त, प्रसूति के रोग, गर्भाशय की अशुद्धि, कामला आदि रोग नष्ट होते हैं.
  • दशमूलारिष्ट का उपयोग वात और कफ जन्य रोगों में विशेष तौर पर किया जाता है. दशमूलारिष्ट में दशमूल का सम्मिश्रण अधिक मात्रा में है इसमें अनेक वनस्पतियां ऐसी मिली हुई है जिनसे जीवनी शक्ति की वृद्धि होती है.
  • दशमूलारिष्ट प्रसूता महिलाओं के लिए अमृत समान गुणकारी है. प्रसूता स्त्रियों को प्रसूत में या उससे निकलने के बाद जो अग्निमांध, खांसी, बुखार आदि उपस्थित होते हैं वह सब दशमूलारिष्ट के सेवन से नष्ट हो जाते हैं. रक्त स्राव के कारण आई कमजोरी और निर्बलता इससे दूर हो जाती है. इसके सेवन से बच्चे को भी दूध ज्यादा मिलता है यानी इसके सेवन से दूध में बढ़ोतरी होती है.
  • यदि प्रसव होने के बाद से ही कुछ रोज तक प्रसूता को दशमूलारिष्ट का सेवन कराया जाए तो प्रसूता को किसी तरह की तकलीफ ही नहीं हो सकती है.
दशमूलारिष्ट बनाने की विधि, उपयोग एवं फायदे
  • दशमूलारिष्ट पौष्टिक भी है. इसलिए जिन महिलाओं का गर्भाशय गर्भधारण करने में असमर्थ हो अथवा जिन्हें गर्भस्राव या गर्भपात की शिकायत हो, उन्हें दशमूलारिष्ट पीना बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसमें जीवन शक्ति बढ़ाने एवं शरीर को पुष्ट करने वाली अनेक जड़ी- बूटियों का सम्मिश्रण है. जिसके वजह से यह गर्भाशय की कमजोरी को दूर कर संतान उत्पन्न करने की शक्ति प्रदान करता है.
  • प्रसूता स्त्री को यदि दूध कम मात्रा में हो रहा है तो एक तोला शतावरी को जौकूट कर 20 तोला पानी में उबालें. जब 5 तोला पानी रह जाए तब उसमें एक तोला दशमूलारिष्ट मिलाकर सुबह-शाम पिला देने से दूध की मात्रा बढ़ जाता है. लेकिन प्रसूता को पथ्य से ही रहना चाहिए.
  • दशमूलारिष्ट खांसी के लिए भी बहुत ही फायदेमंद औषधि है. खांसी का एक प्रकार का दौरा होता है. यह दौरा जब शुरू होता है तो रोगी खांसते- खांसते बेचैन हो जाता है. पेट में दर्द होने लगती है, मुंह की नसें फूल जाती है, आंखें लाल हो जाती है, यदि रोगी कमजोर रहा तो बेहोश भी हो जाता है. दौरा लगाता 10-15 मिनट तक रहता है. कुछ कफ का खंड निकल जाने पर कुछ देर के लिए राहत मिल जाती है. ऐसी हालत में दशमूलारिष्ट थोड़ी-थोड़ी मात्रा में जल मिलाकर दिन में तीन- चार बार देते रहने से अच्छा लाभ होता है क्योंकि यह प्रकुपित वायु को शांत कर कफ को ढीला करके बाहर निकालता है और श्वास नली को साफ करता है जिसके वजह से खांसी का वेग रुक जाता है और नियमित सेवन करने से रोगी निरोग हो जाता है क्योंकि यह वात जन्य खांसी है और दशमूलारिष्ट वात रोगों को दूर करने के लिए अति गुणकारी है.
  • प्रसव के बाद नवजात शिशु की मां को और बच्चे दोनों को ही पोषण की जरूरत होती है. लेकिन प्रसव के पश्चात आई कमजोरी के कारण शरीर कमजोर होता चला जाता है. इस अवस्था में प्रसूता को भूख ना के बराबर लगती है जिससे बच्चे को पूरी तरह से पोषण नहीं मिल पाता है. जिसके कारण शिशु भी कमजोरी का शिकार हो जाता है. ऐसी अवस्था में दशमूलारिष्ट का सेवन कराना प्रसूता स्त्री के लिए और उसके बच्चे के लिए काफी फायदेमंद होता है. यह आरिष्ट भूख बढ़ाने में मदद करती है. जिसके कारण प्रसूता अधिक मात्रा में खाना खा सकती है और बच्चों को भी पूरी तरह पोषण प्राप्त हो पाता है.
  • इसके अलावा सामान्य व्यक्ति जिन्हें भूख कम लगने की समस्या उनके लिए भी यह आरिष्ट काफी गुणकारी है. इसके नियमित सेवन करने से भूख बढ़ जाता है और खाना अच्छी तरह से पचता है जिससे व्यक्ति स्वस्थ और पुष्ट शरीर पा सकता है.
  • इसके सेवन से पाचन सही ढंग से काम करता है. भोजन का पाचन आसानी से हो जाने के कारण कब्ज और गैस तथा पाचन के कमजोर होने के कारण हो रही समस्याएं दूर हो जाती है.
  • इसका सेवन करने से बहुत सारी बीमारियों की जड़ों को खत्म करती है. यह औषधि शारीरिक ताकत को बढ़ाने में बहुत लाभदायक है. इस औषधि का सेवन करने से व्यक्ति की शरीर की दुर्बलता दूर हो जाती है और शरीर एकदम स्वस्थ और सुडौल होने लगता है. अतः किसी भी व्यक्ति को यदि शारीरिक कमजोरी दूर करना है तो उसे दशमूलारिष्ट का सेवन अवश्य करना चाहिए.
  • यदि किसी व्यक्ति का रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है और उसे कई रोग बार-बार परेशान कर रहे हैं तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास में वृद्धि करनी ही चाहिए. इस आरिष्ट के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है. यह बहुत ही सरल और अचूक उपाय है. इस आरिष्ट का सेवन करने से यह व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है जिससे मनुष्य रोगों से दूर रहता है और एक स्वस्थ जीवन जीता है.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.

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Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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