मृगमदासव बनाने की विधि, उपयोग एवं फायदे

मृगमदासव बनाने के लिए इन चीजों की आवश्यकता होगी.

मृत संजीवनी सुरा या रेक्टिफाइड स्प्रिट 250 मिलीलीटर, शहद सवा सेर, पानी सवा सेर, कस्तूरी 16 तोला, काली मिर्च 8 तोला, लौंग 8 तोला, जायफल 8 तोला, पीपर 8 तोला, दालचीनी 8 तोला. सबसे पहले कस्तूरी को सुरा में घोल लें. फिर सब चीजों को कांच के पात्र में भरकर उसका मुंह बंद करके रख दें. एक महीने बाद निकालकर छान कर बोतलों में भरकर सुरक्षित रखें.

मृगमदासव के उपयोग एवं फायदे-

मात्रा- 10 से 40 बूंद तक आवश्यकता अनुसार पानी या अजवाइन अर्क के साथ सेवन करें.

मृगमदासव पीने के फायदे-

  • हिचकी, शरीर का एकदम ठंडा पड़ जाना, सन्निपात ज्वर, कालरा, नाड़ीक्षीणता, कमजोरी, मूर्छा को दूर करती है और शरीर में अपूर्व बल प्राप्त होता है.
  • कफ प्रधान सन्निपात, निमोनिया तथा बच्चों को होने वाले ब्रोंकाइटिस निमोनिया तथा कफ प्रधान श्वास और खांसी में इसके आवश्यकता अनुसार प्रयोग करने से उत्तम लाभ होता है.
मृगमदासव बनाने की विधि, उपयोग एवं फायदे
  • शरीर ठंडा पड़ जाने पर मरणासन्न रोगियों को भी इसे सेवन कराने पर चेतना एवं शरीर में गर्मी उत्पन्न हो जाती है. मुंह द्वारा न पी सकने की स्थिति में 1/2 ml शिरा अंतर्गत सूचीवेध देना चाहिए. इसमें बहुत ही शीघ्र लाभ होता है.
  • जब संपूर्ण शरीर ठंडा हो गया हो, नाड़ी क्षीण, बेहोशी, उल्टी और दस्त बहुत ही हो रहे हो, प्यास अधिक लग रही हो, शरीर में ऐंठन हो, शरीर की कांति नष्ट हो गई हो, चेहरा काला पड़ गया हो, ऐसी अवस्था में यह मृगमदासव अमृत की तरह गुणकारी सिद्ध होता है.
  • प्रदूषित वायु का उर्ध्व गति होना ही हिचकी कहलाती है. हिचकी में वायु ही प्रधान रहती है. ऐसी दशा में मृगमदासव थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन भर में तीन- चार बार देने से बहुत शीघ्र ही हिचकी रुक जाता है.
  • सन्निपात ज्वर में मृगमदासव बहुत ही गुणकारी सिद्ध होती है. सन्निपात ज्वर में तीनों दोषों का प्रकोप रहता है लेकिन इसमें वायु प्रधान सन्निपात में अक-बक बकना, बेहोशी, शरीर में दर्द, ह्रदय की कमजोरी, नाड़ी क्षीण हो जाना, हाथ- पैर ठंडे पड़ जाना, बुखार गंभीर रूप में रहना आदि अवस्था उत्पन्न होने पर हृदय को ताकत पहुंचाने के लिए अन्य दवाओं के साथ मृगमदासव का भी प्रयोग स्वतंत्र रूप से अथवा किसी दवा में मिलाकर किया जाता है. नींद भी आ जाती है.

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I am an Ayurveda doctor and treat diseases like paralysis, sciatica, arthritis, bloody and profuse piles, skin diseases, secretory diseases etc. by herbs (Ayurveda) juices, ashes.

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