अशोकारिष्ट बनाने के लिए इन जड़ी-बूटियों की आवश्यकता होगी.
अशोक छाल 1 किलो, लोध 500 ग्राम को अधकुटा करके 20 लीटर पानी में उबालें. जब पानी 5 लीटर रह जाए तो छानकर इसे बरनी ( घड़ा ) में डालें और 2 किलो गुड़ 2 किलो, शक्कर 2 किलो, मुनक्का 250 ग्राम, धायफूल 250 ग्राम, जीरा 20 ग्राम, नगर मोथा 20 ग्राम, सोठ 20 ग्राम, दारूहल्दी 20 ग्राम, नीलोफर 20 ग्राम, हरड़ छाल 20 ग्राम, बहेड़ा छाल 20 ग्राम, आंवला 20 ग्राम, आम की गुठली 20 ग्राम, नागकेसर 20 ग्राम, अडूसा 20 ग्राम, सफेद चंदन 20 ग्राम, पतंग 20 ग्राम, लोध्र 20 ग्राम, माजूफल 20 ग्राम, खैर छाल 20 ग्राम, बेल छाल 20 ग्राम, सेमल के फूल 20 ग्राम, मोचरस 20 ग्राम, अनंतमूल 20 ग्राम, गुड़हल के फूल 20 ग्राम, दालचीनी 20 ग्राम, बड़ी इलाइची 20 ग्राम, लवंग 20 ग्राम, खस 20 ग्राम को अधकुटा करके बरनी में डालें और मुख मुद्रा करके 40 दिन रखें. 40 दिन के बाद इसे छानकर सुरक्षित रखें. यही अशोकारिष्ट है.
अशोकारिष्ट के उपयोग एवं फायदे-
मात्रा- 10 से 25 मिलीलीटर उतने ही पानी मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें.

अशोकारिष्ट पीने के फायदे-
- अशोकारिष्ट महिलाओं के लिए अमृत समान गुणकारी होता है. इसके सेवन से रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर, मासिक धर्म के दौरान ज्यादा रक्त स्राव इत्यादि स्त्री रोगों को दूर करता है. यह गर्भाशय का शोधन करता है और गर्भ धारण क्षमता बढ़ाता है.
- इसके नियमित सेवन करने से महिलाओं का मोटापा नियंत्रित होता है.
- कितनी ही महिलाओं को मासिक धर्म आने पर उदर पीड़ा की आदत सी पड़ जाती है. जिसे पीडितार्तव या कष्टार्तव कहते हैं. इस रोग में मुख्यतः बीजवाहिनी और बिजाशय के विकृति कारण होती है. कितनी ही स्त्रियों को तीव्र रूप से पीड़ा होती है. कमर में भयंकर दर्द, सिर दर्द, वमन आदि लक्षण होते हैं. इस विकार में अशोकारिष्ट बहुत ही फायदेमंद होता है. इन समस्याओं से निजात मिल जाती है.
रैबीज ( जलसंत्रास ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय
खांसी होने के कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपचार
प्रदर रोग में-
- मद्यपान, अजीर्ण, गर्भस्राव, गर्भपात, अधिक शारीरिक संबंध बनाना, कमजोरी में परिश्रम, चिंता, अधिक उपवास, गुप्तांगों का आघात, दिवाशयन आदि से महिलाओं का पीत दूषित होकर पतला और अम्ल रस प्रधान हो जाता है. वह खून को भी वैसा ही बना डालता है जिसके कारण शरीर में दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, कब्ज तथा बेचैनी होने लगती है. साथ ही योनि द्वार से चिकना, रसेदार, सफेदी लिए हुए चावल के धोवन के समान पीला, नीला, काला, रूक्ष, लाल झागदार, मांस के धोवन के समान रक्त गिरने लगता है.
- रोग पुराना हो जाने पर उसमें से दुर्गंध आती है और रक्त स्राव मजामिश्रित भी हो जाता है. ऐसा हो जाता है कि चलते-फिरते, उठते- बैठते हरदम खून जारी रहता है. कोई अच्छा कपड़ा पहनना मुश्किल हो जाता है. कभी-कभी खून के बड़े-बड़े जमे हुए कलेजे के समान टुकड़े गिरने लगते हैं. इस अवस्था में खाना-पीना, उठना- बैठना, सोना सब कठिन हो जाता है.
- यह हालत लगातार महीनों तक चलती है. कभी-कभी किसी उपचार या अधिक रक्ताभाव से कुछ दिन के लिए खून बिलकुल रुक जाता है, लेकिन फिर वही हालत हो जाती है. इस प्रकार तमाम शरीर का रक्त गिर जाता है और शरीर बिल्कुल रक्त हीन हो जाता है. पाचन क्रिया बिल्कुल खराब हो जाती है. शरीर में नया खून का निर्माण नहीं हो पाता है. ऐसी स्थिति में अशोकारिष्ट का सेवन महिलाओं के लिए अति गुणकारी साबित होती है.

गर्भाशय भ्रंश या योनि भ्रंश में-
- बहुत-सी महिलाओं को मैथुन क्रिया का ज्ञान नहीं होने के कारण या कामोन्माद बस मूर्खतापूर्ण ढंग से मैथुन करने पर गर्भाशय तथा योनि दोनों अपने स्थान से हट जाते हैं. गर्भाशय तो भीतर ही टेढ़ा हो कर कई तरह की समस्या का कारण बनता है और योनि बाहर निकल आती है या बार-बार बाहर- भीतर आती जाती रहती है. इसके साथ पेडू और कमर में दर्द होना, पेशाब करने में दर्द होना, श्वेत प्रदर का अधिक होना, मासिक धर्म कम होना या बिल्कुल बंद हो जाना आदि लक्षण होते हैं. ऐसी स्थिति में अशोकारिष्ट का सेवन बहुत ही फायदेमंद होता है. यदि चंदनादि चूर्ण में त्रिवंग भस्म मिलाकर सुबह-शाम दूध का सेवन किया जाए और अशोकारिष्ट का सेवन किया जाए तो बहुत जल्दी लाभ होता है.
डिंब कोश प्रदाह में-
- यह रोग मासिक धर्म में पुरुषों के साथ संभोग करने से होता है या व्यभिचारीनी और वेश्याओं को यह रोग अधिक हुआ करता है. इसमें पीठ और पेट में दर्द होना, वमन होना, रोग पुराना हो जाने पर योनि मार्ग से पीव निकलना आदि लक्षण होते हैं. महिलाओं के लिए यह रोग बहुत कष्टदायक होता है. इसमें सुबह- शाम चंद्रप्रभा वटी एक गोली और भोजन के बाद अशोकारिष्ट बराबर पानी मिलाकर पिलाने से अच्छा लाभ होता है.
हिस्टीरिया में-
- स्नायु समूह की उग्रता से यह रोग उत्पन्न होता है. रोग उत्पन्न होने के पहले छाती में दर्द तथा शरीर और मन में ग्लानि उत्पन्न होती है. ऐसे देखने में तो यह रोग मिर्गी जैसा ही लगता है. लेकिन इसमें रोगिणी के मुंह से झाग नहीं जाते हैं. कभी-कभी इस रोग से पेट के नीचे एक गोला से उठकर ऊपर की ओर आ जाता है. गर्भाशय संबंधी किसी भी रोग से यह रोग उत्पन्न हो सकता है. यह रोग बड़ा दुष्ट और नवयुवतियों को तंग करने वाला है. ऐसे में अशोकारिष्ट का सेवन कराना काफी लाभदायक होता है.
महिलाओं का पांडु रोग-
- स्त्रियों के रक्त प्रदर आदि कारणों से रक्त शरीर में कम होकर उनका शरीर पीला रंग का हो जाता है. इसमें शारीरिक शक्ति का क्रमशः ह्वास होने लगता है. आलस्य और निद्रा हरदम घेरे रहती है. थोड़ा भी परिश्रम करने से चक्कर आने लगता है. भूख नहीं लगती है. यदि कुछ खा भी ले तो मन्दाग्नि के कारण हजम नहीं हो पाता है. जिससे पेट भारी बना रहता है. कदाचित तरुणावस्था में यह रोग हुआ तो यौवन का विकास ही रुक जाता है और महिला अपनी जिंदगी से निराश रहने लग जाती है. इस दुष्ट रोग का कारण बहुत मैथुन या बाल विवाह है. इस रोग में सुबह- शाम नवायस लौह और भोजन के बाद अशोकारिष्ट में बराबर मात्रा में लोहासव तथा बराबर जल मिलाकर देने से आशातीत लाभ होता है.
- उर्ध्वगत रक्तपित्त के लिए अशोकारिष्ट का सेवन अच्छा होता है. खुनी बवासीर में भी विशेष वेदना या जलन ना होने पर अशोकारिष्ट के सेवन से लाभ होता है.
- नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.
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