गंधक रसायन चूर्ण बनाने की विधि, उपयोग एवं फायदे

गंधक रसायन चूर्ण बनाने के लिए इन जड़ी- बूटियों की आवश्यकता होगी.

शुद्ध आमलासार गंधक- 500 ग्राम.

इलायची- 20 ग्राम.

दालचीनी- 20 ग्राम.

नागकेसर- 20 ग्राम.

तमालपत्र- 20 ग्राम.

शुद्ध आंवलासार गंधक को छोड़कर बाकी चीजों को 500 ml पानी में भिगोकर रखें. 12 घंटे बाद इसे अग्नि पर पकावें. जब 200 ml पानी रह जाए तो उसमें गंधक को भिगोकर छाया में सुखा लें.

इसके बाद ताजा गिलोय का रस 200 मिलीलीटर लेकर फिर गंधक भिगोकर छाया में सुखाएं.

अब त्रिफला 50 ग्राम को 200ml क्वाथ बनाकर फिर गंधक को भिगोए और छाया में सुखा लें.

इसके बाद भांगरा स्वरस 200 मिलीलीटर से फिर से आंवलासार गंधक को भिगो दें और अच्छी तरह से सूखने पर उसमें 500 ग्राम शक्कर डालकर कूट पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें.

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गंधक रसायन चूर्ण का उपयोग एवं फायदे-

मात्रा- 1 से 3 ग्राम तक दिन में दो-तीन बार दूध या महामंजिष्ठादि क्वाथ के साथ सेवन करें.

गंधक रसायन चूर्ण के फायदे-

  • इसके सेवन से कुष्ठरोग, रक्तदोष, दाद, दिनाय, खुजली, पामा तथा अजीर्ण, नाड़ी व्रण, भगंदर दूर होता है.
  • इसके सेवन से पुरुषों में बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है.
  • यह रसायन रस, रक्त आदि सप्त धातु शोधन एवं बल वीर्य वर्धक, पौष्टिक एवं अग्नि दीपक है तथा कब्ज और अमाशय के रोगों में भी लाभदायक है.
  • इस रसायन का प्रधान कार्य किसी भी कारण से दूषित हुए रक्त तथा चर्म को सुधारना है. रक्त की अशुद्धि से इससे आगे जो बनने वाली धातुएं हैं जो शुद्ध नहीं बन पाती तथा वे धीरे-धीरे निर्बल हो जाती है. इस रसायन के सेवन से शुद्ध रक्त बनने लगता है शुद्ध रक्त बनने पर इससे बनने वाली धातु भी शुद्ध एवं पुष्ट होने लगती है एवं अशुद्ध रक्त जनित विकार भी दूर होने लगती हैं.
  • पीत प्रधान रोगों में इस रसायन का विशेष उपयोग होता है तथा दाह होना, पेशाब जलन के साथ के होना, हाथ- पैर में जलन होना, मस्तिष्क के भीतर, कंठ जिह्वादि में जलन होना, शीतल जल से स्नान करने की इच्छा होना या शीतल पदार्थ खाने की इच्छा होना इत्यादि लक्षण बढ़े हुए पीत के कारण उत्पन्न होते हैं ऐसी अवस्था में गंधक रसायन चूर्ण के प्रयोग से अच्छा लाभ होता है.
  • शरीर में छोटी-छोटी फुंसियां होना, खुजली, चर्मरोग होना, कब्ज हो जाना, खुजलाने पर थोड़ा बहुत रक्त भी निकल जाना, ऐसी अवस्था में गंधक रसायन देने से अच्छा लाभ होता है.
  • उपदंश, सुजाक आदि विषाक्त रोगों के पुराने हो जाने पर शरीर में इस रोग के बिष व्याप्त हो जाते हैं इस बिष के प्रभाव से वात वाहिनी नाड़ियाँ विकृत हो वात संबंधी अनेक रोग उत्पन्न करने लगते हैं. जिससे शरीर के भीतर अवयव कमजोर होकर अपने कार्य में असमर्थ हो जाते हैं. विशेषकर आंते कमजोर हो जाती है जिससे कब्ज की समस्या हो जाती है. ऐसी अवस्था में पहले स्नेहन वस्ति का प्रयोग करें फिर गंधक रसायन सेवन करने से अच्छा लाभ होता है.

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I am an Ayurveda doctor and treat diseases like paralysis, sciatica, arthritis, bloody and profuse piles, skin diseases, secretory diseases etc. by herbs (Ayurveda) juices, ashes.

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