मेष आदि 12 राशियों में सूरज के फिरने से छः ऋतु होती है.
1 .माघ- फागुन से शिशिर ऋतु.
2 चैत्र- वैशाख से बसंत ऋतु.
3 .जेष्ठ- आषाढ़ से ग्रीष्म ऋतु.
4 .श्रावण- भाद्र से वर्षा ऋतु.
5 आश्विन- कार्तिक से शरद ऋतु.
6 .मार्गशीर्ष- पौष से हेमंत ऋतु.
इन ऋतुओं में वात, पित्त, कफ का कोप शमन होता है. ग्रीष्म शरद और वर्षा इन तीन ऋतुओं को उत्तरायण कहते हैं. यह गर्म, बल हरण करने वाली और और रक्त विकार करने वाली है. वसंत, शिशिर, हेमंत यह तीन दक्षिणायन है. यह शीतल, बलवर्धक, कफ, बात दोष कारक है. वसंत ऋतु में विशेषकर कफ का प्रकोप होता है.
वर्षा ऋतु-
वर्षा ऋतु में मधुर, खट्टे, नमकीन, कटु इनका सेवन करें, पसीना लेना, मालिश, गर्म पदार्थ, जंगली जीवो का मांस, गेहूं, चावल, उड़द खाएं. वर्षा में भींगना, थोड़े रुक्ष पदार्थ, दिन में सोना, नित्य मैथुन करना वर्जित है.
ग्रीष्म ऋतु- शरद ऋतु-
इस ऋतु में मधुर, कड़वे, कसैले रस वाले पदार्थ, दूध, घी, मांस रस, शरबत, गेहूं, चावल, चंदन आदि का लेप, पुष्पमाला, चांदनी रात, गीत- संगीत आदि हितकर हैं. रक्त का मोचन और विरेचन लें. गरम, खट्टे पदार्थ, धूप में फिरना, अग्नि का सेवन करना वर्जित है.

शिशिर- हेमंत ऋतु-
प्रातः काल भोजन में खट्टी, खारे और मधुर पदार्थ, नया अन्न, उड़द और मांस खाना चाहिए. मालिश, गर्म पानी से स्नान, परिश्रम, व्यायाम, गर्म और भारी वस्त्र धारण करना तथा केसर, कस्तूरी आदि का सेवन करें.
वसंत ऋतु-
वसंत ऋतु में बमन लेना, मथ से हरड़ का चूर्ण खाना, व्यायाम, नाक में औषधियों का डालना और कफ नाशक औषधिओं से कुल्ले करना, जंगली जीवो का पका हुआ मांस, गर्म हलके, रुक्ष और तीक्ष्ण पदार्थ सेवन करें तथा चिकने, भारी, मीठे, खट्टे पदार्थ, दही, दिन में सोना और बर्फ का सेवन नहीं करें. इस प्रकार दिन ऋतुचर्या के पालन करने से मनुष्य सदा निरोग और सुखी रहेगा.
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शयन- सोना-
रात्रि में सोने से थकावट दूर होती है और शरीर को बल की प्राप्ति होती है. शरीर में उत्साह बढ़ता है और अग्नि भी प्रदीप्त होती है.
अगर नींद में खर्राटे आते हो तो नींबू के पत्तों का चूर्ण मधु के साथ चाटने से खर्राटे बंद होकर नींद अच्छी आती है.
दिन में सोना नहीं चाहिए. केवल ग्रीष्म ऋतु में सोए या जो रात में जागा हो, थका हुआ हो, व्यायाम किया हो, उपवास हो, संभोग कर चुका हो, बालक, वृद्ध, बीमार और जिसे दिन में सोने की आदत हो वह सुख पूर्वक दिन में भी सो सकते हैं.
निषेध कार्य-
नंगे पांव न चलें. तीखी धूप और बरसात में छाता का उपयोग करें. अंधेरे में लकड़ी धारण करें, धूप और आग का अधिक सेवन ना करें, स्वच्छ, शीतल, सुगंधित पदार्थ का सेवन करें. मोर पंख और चँवर की वायु सबसे अच्छी होती है.
संध्या काल में निषेध कार्य-
संध्या में आहार, मैथुन, निद्रा ( सोना ) अध्ययन नही करना चाहिए. संध्या को उधान में विचरण कर के आंखों और शरीर को ताजगी देनी चाहिए.
रात्रि चर्या-
रात के प्रथम पहर में दिन की अपेक्षा कम भोजन करें और भोजन के पश्चात तुरंत ना सोयें और गुरु पदार्थ ना खाएं. चंद्रमा की चांदनी पित डाह तथा थकावट को दूर करती है. कामदेव संबंध आनंद दायक है. लोचन ( आँखों ) के लिए हितकारी है अतः चांदनी की ओर कुछ समय देखना और सेवन करना हितकारी होता है.
स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा.
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