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राजयक्ष्मा ( टीबी ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 1 MinUpdated On April 10, 2021

राजयक्ष्मा ( टीबी ) होने के कारण-

मल, मूत्र, भूख आदि के बेग को रोकना, वीर्य, रस, रक्त, मांस आदि धातु के क्षीण होने से, अपनी शक्ति से अधिक काम करना, दौड़ना, लड़ना, बोझ उठाना आदि विषम भोजन से अर्थात समय पर ना खाना, नियम से ना खाना, कम शक्ति वाले पदार्थ खाना, भूखा रहना इन सब कारणों से तीनों दोष कुपित होकर क्षय ( Tuberculosis ) रोग उत्पन्न करते हैं. कफ अधिक बढ़कर रस के मार्ग को रोक देती है तो फेफड़ों में व्रण ( घाव ) हो जाते हैं और रक्त, मांस, शुक्र आदि धातु क्षीण होते हैं. अतः इसे क्षय रोग कहते हैं.

राजयक्ष्मा ( टीबी ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार
राजयक्ष्मा ( टीबी ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार

क्षय रोग अनुलोम और प्रतिलोम भेद से दो प्रकार का होता है.

अनुलोम क्षय में पहले रस, रक्त, मांस आदि धातुओं का क्षय होता है और प्रतिलोम क्षय में पहले वीर्य फिर मजा, अस्थि आदि क्षीण होते हैं. यह बिलासी लोगों को नारी का संग अधिक करने से, वीर्य की रक्षा ना करने से होता है. शरीर सुख जाता है, तेज बल और और भूख नष्ट हो जाती है. क्षय रोग संसर्ग अर्थात छूत का रोग है. क्षय रोग से संपर्क करने वाले कुछ हो सकता है.

क्षय की तीन श्रेणी के लक्षण-

प्रथम श्रेणी- कंधों और पसलियों में दर्द होना, हाथ- पांव में दर्द होना, बुखार आना, खांसी अधिक आए और रात को पीठ पर पसीना आता हो.

द्वितीय श्रेणी- कास, अतिसार, पसलियों में अधिक पीड़ा बुखार स्वर भेद अरुचि हो.

तृतीय श्रेणी- स्वर भेद, कंधों और पसलियों में पीड़ा, संकोच, ज्वर कास, अतिसार, खांसने से रक्त आए, सिर भारी, अरुचि, भूख ना लगे, कंठ में कांटे से हो.

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नोट- खासने से कफ के साथ खून आने से क्षय का संदेह हो सकता है. इसलिए पुरा निदान करना चाहिए. खून आने पर रोगी को क्षय है. ऐसा निर्णय बताकर उसको डराना नहीं चाहिए. बिना क्षय के गर्मी के कारण भी कफ के साथ रक्त आ सकता है. इसलिए छाती का एक्स-रे कराना चाहिए. एक्स-रे चित्र पर फेफड़ों के क्षत ( घाव ) स्पष्ट दिखाई देते हैं और उनका निर्णय शीघ्र और विश्वास पूर्वक हो जाता है.

क्षय के असाध्य लक्षण- सांस और बल क्षीण हो जाए. बहुत अच्छा खाना खाने पर भी शरीर क्षीण ( कमजोर ) हो. अतिसार हो, उदर और अंडकोष पर शोथ हो जाए, आंखें सफेद हो, अरुचि हो, मूर्च्छा हो, स्वास हो, मूत्र कष्ट से बार-बार हो तो यह क्षय असाध्य होता है.

क्षय ( टीबी ) रोग की आयुर्वेदिक चिकित्सा-

1 .स्वर्ण वसंत मालती बटी दो-दो गोली, अभ्रक भस्म 2 गूंज, प्रवालादि चूर्ण और सितोपलादि चूर्ण 1-1 ग्राम सुबह-शाम दूध या मधु के साथ सेवन करें और चवनप्राश अवलेह 10 ग्राम सवेरे और रात को सेवन करें.

2 .यदि खांसने से रक्त आता हो तो चवनप्राश के जगह पर कुष्मांडावलेह या वासावलेह या धात्री रसायन या कुष्मांड पानक का सेवन करें और एलादि वटी या भागोत्तर वटी 3-3 ग्राम और द्राक्षासव या दशमूलारिष्ट या अमृतारिष्ट या वासारिष्ट 20ml उतना ही पानी डालकर सेवन करें.

3 .बुखार अधिक हो तो त्रिभुवन वटी, सुदर्शन घनवटी दिन में दो- तीन बार सेवन करें.

4 .यदि श्वास, सर्दी हो तो श्वास कुठार रस या कफकेतु बटी आदि दिन में दो- तीन बार सेवन करें.

5 .अतिसार हो तो कर्पूर वटी या कुटज घनवटी या पंचामृत पर्पटी आदि आवश्यकता अनुसार सेवन कराएं. अतिसार को शीघ्र ही बंद करना चाहिए क्योंकि इससे कमजोरी अधिक हो जाने पर परेशानी और बढ़ सकती है.

6 .खांसी बार-बार और अधिक आती हो तो नथानी संजीवनी सुरा या ब्रांडी पिएं तथा छोटी पीपल या हल्दी दूध में डालकर पिएं.

7 .बल और सांस अधिक क्षीण हो गया हो तो छागलयादी घृत 20 मिलीलीटर सवेरे दूध के साथ तथा हरा गिलोय 50- 60 ग्राम 20 मिलीलीटर पानी में ठंडाई के समान पीसकर छानकर पिएं. यह क्षय रोग के लिए अति उत्तम योग है.

8 .नीम के पत्ते 20 ग्राम, तुलसी के पत्ते 20 ग्राम और बेल के पत्ते 20 ग्राम इनमे पानी डालकर ठंडाई की तरह पीसकर दिन में दो-तीन बार पीने से क्षय और मधुमेह में अच्छा लाभ होता है.

9 .यदि हाथ- पांव और शरीर ठंडा हो, कमजोरी ज्यादा हो गई हो, मुख की कांति क्षीण हो तो कस्तूरी भैरव रस या अन्य कस्तूरी घटित योग या चंद्रोदय आदि दें.

10 .यदि नींद नहीं आती हो तो जायफलादि चूर्ण दें. श्रृंग भस्म, स्वर्ण भस्म, मुक्ता पिष्टी, कर्पद भस्म, शंख भस्म, गोदंती भस्म आदि भी क्षय रोग में उत्तम लाभदायक है.

11 .दूध में छुहारा एक- दो या चार- पांच लहसुन की गिरी डालकर पकाकर पीने से क्षय रोग में अच्छा लाभ होता है.

12 .अडूलसे का रस 20 मिलीलीटर में मधु डालकर पीने से खांसी और खांसी में रक्त आना बंद हो जाता है.

13 .क्षय रोग में बुखार को अधिकतम करने वाली औषधियां नहीं देनी चाहिए.

14 .महालाक्षादि तेल से संपूर्ण शरीर की मालिश करना गुणकारी है.

15 .बकरी के दूध से हाथ पांव की तलियों और सिर की मालिश करने से संताप ज्वर कम होकर नींद अच्छी आती है.

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क्षय ( टीबी ) रोगियों के लिए पथ्य-

रोगी को श्वेत और स्वच्छ वस्त्र पहनायें, कमरा खुला और शुद्ध वायु युक्त हो. क्षय रोगियों के लिए पहाड़ी प्रदेश अतिउतम है. रक्त, मांस, वीर्य, मल और बल की रक्षा करना बहुत जरूरी है. पौष्टिक भोजन, दूध, घी, मांस, रस, फल- अंगूर, केला, आम, सेब, खजूर, आंवले और अंडे आदि का सेवन करना उत्तम है.

क्षय रोगियों के लिए बकरियों की बाड़ी में साथ रहना, बकरी का दूध पीना, बकरी का मांस खाना अति उत्तम होता है.

क्षय रोगियों के लिए अपथ्य-

उपवास, परिश्रम, धूप में फिरना, रेचन लेना, उष्ण, तीक्ष्ण पदार्थों, दही, केला लौकी, बासी चीजों आदि का सेवन करना अहितकर है. क्षय रोगियों को स्त्री संभोग करना भी अहितकर होता है

अनुभव की मोती-

क्षय रोग की किसी भी अवस्था में-

धातु पौष्टिक चूर्ण- 5 ग्राम सुबह-शाम दूध के साथ.

गंधक रसायन वटी- दो-दो गोली सुबह-शाम पानी के साथ.

सितोपलादि चूर्ण- एक चौथाई चम्मच शहद के साथ सुबह- शाम.

धातु पौष्टिक चूर्ण, गंधक रसायन वटी और सितोपलादि चूर्ण के नियमित सेवन करने से कुछ ही दिनों में क्षय रोग जड़ से खत्म हो जाता है. यह मेरा अपना अनुभव है. इससे कई रोगी स्वस्थ हो चुके हैं.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.

स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा. 

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Hashtag: क्षय ( टीबी ) रोग की आयुर्वेदिक चिकित्सा- क्षय ( टीबी ) रोगियों के लिए पथ्य- क्षय रोग की किसी भी अवस्था में- राजयक्ष्मा ( टीबी ) होने के कारण लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार

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-: Note :-

The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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