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रैबीज ( जलसंत्रास ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 2 MinUpdated On February 25, 2021

परिचय- अलर्क विष, जलसंत्रास, जलांतक, रैबीज (Rabbies )

भारत में प्रत्येक साल लगभग हजारों लोग कुत्ता काटने के फल स्वरुप होने वाली जानलेवा बीमारी रैबीज के कारण मृत्यु के मुंह में समा जाते हैं. रैबीज ( जलसंत्रास ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय. कुत्ता काटने की समस्या कितनी विकराल है यह इस तथ्य से जाहिर होता है कि लगभग 30 से 40 लाख लोग हर साल रैबीज से बचने के लिए कुत्तों द्वारा काटे जाने के बाद टीका लगवाते हैं. लेकिन रैबीज से बचाव और टीकाकरण के विषय में आवश्यक जानकारी के अभाव में बहुत से लोग एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाने के बाद भ रैबीज का शिकार हो जाते हैं और अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं.

रैबीज होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय
रैबीज ( जलसंत्रास ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

पागल कुत्ते के काटने से मनुष्य में संक्रांत होने वाला यह एक तीव्र स्वरूप का ओपसर्गिक रोग है. जिसमें निगलने में कष्ट, उद्वेष्टन तथा कुत्ते के समान भोकने की ध्वनि होती है.

रैबीज होने के कारण-

रैबीज होने के मुख्य कारण पागल कुत्तों, भेड़ियों आदि के लार से उत्सर्जित होने वाला एक विषाणु होता है. पागल कुत्ता, सियार अथवा बिल्ली के काटने से या इनके द्वारा कटा हुआ चमड़ा चाटने से होता है. इनके दांत और नाखूनों से खरोच होकर उस जगह पर उसकी लार लगने से शरीर में विष फैल जाता है.

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संचय काल- कुत्ते के काटने के 17-18 दिन बाद प्रायः रोग होता है. इसका संचय काल 10 दिन से 2 वर्ष तक का है. औसतन 3 से 7 सप्ताह है. लेकिन यह रोगी की आयु तथा घाव के ऊपर भिन्न- भिन्न होता है.

रैबीज के लक्षण-

रैबीज के लक्षण पागल कुत्ते के काटने के 21 दिन बाद से 2 वर्ष के भीतर कभी भी उत्पन्न हो सकता है. इस रोग की निम्न 3 अवस्थाएं होती है.

1 .आक्रमण की अवस्था.

2 .उत्तेजना की अवस्था.

3 .अंतिम अवस्था.

1 .आक्रमण की अवस्था-

स्थानीय लक्षण- यह अवस्था एक-दो दिन तक की होती है. रोगी कटी हुई जगह पर पीड़ा तथा असुविधा अनुभव करता है. कटे हुए स्थान पर जलन तथा पीड़ा अक्षमता होती है. वह स्थान लाल हो जाता है यह सभी स्थानीय लक्षण होते हैं.

मानसिक लक्षण- मध्यम स्वरूप का बुखार, निगलने में कठिनाई, पेशियों में ऐठन, प्रकाश व शब्द सहन नहीं होना, सिर में दर्द, नींद नहीं आना, बेचैनी, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, मन की चंचलता आदि लक्षण होते हैं. इसके अलावा रोगी की नाड़ी तीब्र गति से चलती है. रोगी के नेत्र अधिक चंचल हो जाते हैं. रोगी अल्प उत्तेजना से ही उत्तेजित हो जाता है.

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2 .उत्तेजना की अवस्था-

इस अवस्था में बुखार तथा बेचैनी अधिक हो जाती है. थोड़ी सी भी उत्तेजना अनुभव होने पर मुखग्रसनिका तथा स्वर यंत्र की पेशियों में पीड़ा तथा उद्वेष्टन अनुभव होने लगता है. रोगी को निगलने में कष्ट होता है. वह गले की पीड़ा तथा ऐंठन के कारण लार तक निगलने में असमर्थ हो जाता है. बार-बार थूकता रहता है. धीरे-धीरे गर्दन की पेशियों में भी हल्का दर्द होने लग जाता है. जिससे रोगी पानी देखने, सुनने अथवा पानी के नाम सुनते ही मात्र से उसकी गले की मांसपेशियों में आक्षेप उत्पन्न होने लगते हैं. ऐसी अवस्था में पानी तथा आक्षेपों के कारण रोगी डरने लगता है.

पानी के अतिरिक्त हवा के झोंके, प्रकाश, आवाज आदि अनेक कारणों से भी उसके गले में आक्षेप उत्पन्न होने लगते हैं. कुछ समय के बाद श्वसन, मांसपेशियों तथा शरीर की अन्य पेशियों में भी आक्षेप आने लगते हैं. संपूर्ण शरीर में आक्षेप होने पर टेटनस जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं. शुरुआत में आक्षेपों की अवधि 1- 2 मिनट और तत्पश्चात 15 से 20 मिनट तक की हो सकती है. रोगी खाने- पीने की वस्तुएं लेने में पूर्णतया असमर्थ हो जाता है. गर्दन की मांसपेशियों में आक्षेपजन्य विकृति के परिणाम स्वरुप कुत्ते के भौंकने के समान आवाज होती है और रोगी के मुख से लार निकलती है. यह अवधि 2 से 3 दिन तक चलती है.

3 .अंतिम अवस्था-

इस अवस्था की शुरुआत होते ही पेशियों में उद्वेष्टन गायब होने लगते हैं और विभिन्न पेशी समूहों में अंग घात उत्पन्न होने लगता है. सबसे पहले जबड़े की पेशियों का लकवा होता है. इसके बाद क्रम अन्य शाखाओं तथा श्वसन संस्थान की अवयवों की पेशियों का लकवा हो जाता है और रोगी की तत्काल मृत्यु हो जाती है. कभी-कभी ह्रदय की क्रिया रुकने से भी मौत हो जाती है.

रोगी की अंतिम अवस्था में तापमान बढ़कर 105 से 106 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाता है.

इस अवस्था में नाड़ी की गति क्षीण तथा तीव्र गति वाली होती है. रोगी की मानसिक स्थिति अंत तक एक जैसी रहती है, बदलती नहीं है. यह अवस्था कुछ ही घंटों की होती है.

इसके साथ कुछ रोगियों में कमजोरी होकर ऐंठन,मिर्गी तथा टेटनस के लक्षण प्रकट होते हैं.

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निदान-

पागल कुत्ते के काटने का इतिहास मिलने एवं पागल कुत्ते के जल्द ही मर जाने ( 10 दिन के अंदर ) आदि से इस रोग के निर्णय में मदद मिलती है. जल को देखते ही रोगी दौरे पड़ने लगते हैं. इसे जलसंत्रास कहते हैं.

हालांकि यदि जलसंत्रास की स्थिति आ जाए तो निदान करना ही बेकार है. इससे कोई लाभ नहीं होता है क्योंकि रोग होने पर इसकी कोई चिकित्सा संभव नहीं है.

यदि चिकित्सक के पास कोई ऐसा केस आता है जिसे कुत्ते ने काट दिया है तो उसके सही निदान के लिए पागल कुत्ते का निरीक्षण करना चाहिए कि काटने वाला कुत्ता पागल है अथवा नहीं. पागल कुत्ते के काटने पर रोगी के लिए तत्काल वैक्सीनेशन की व्यवस्था करनी चाहिए.

रैबीज होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

पागल कुत्ते में पागलपन की ये लक्षण मिलते हैं-

  • कुत्ता शुरुआत में घर वालों से ही अधिक प्रेम प्रदर्शित करता है और उनके अंगों को बार-बार चाटने की कोशिश करता है.
  • कुत्ते में कुछ अकस्मात परिवर्तन आने लगते हैं, वह काल्पनिक वस्तु के पीछे दौड़ता है और भागता है, वह जानवरों अथवा कुत्तों तथा मनुष्यों को अकस्मात काटने के लिए दौड़ता है. वह दीवार और लकड़ी आदि प्रत्येक वस्तु को काटने लगता है.
  • कुत्ते की भूख अधिक हो जाती है, जिससे कि वह घास, लकड़ी, पत्थर आदि सभी अखाद्य वस्तुओं को भी खाने लगता है.
  • पागल कुत्ते का मुंह फैल जाता है. इसके मुंह से बराबर लार गिरती रहती है.
  • पागल कुत्ता बड़ी दूर- दूर तक भागा चला जाता है और उसके रास्ते में जो भी मिलता है बस उसी को काटने के लिए दौड़ता है. उसकी पूंछ बराबर लटकी हुई रहती है.
  • अंत में पैर एवं जबड़े की मांसपेशियों में लकवा होकर कुत्ता मर जाता है.
  • कुत्ते में पागलपन की अवधि 5 से 7 दिन और अधिक से अधिक 10 दिन तक की होती है.

नोट- पागल कुत्ते में जलसंत्रास जैसा कि मनुष्यों में होता है ऐसा कोई लक्षण नहीं होता है. कुत्ता अपनी इच्छा अनुसार पानी पीता है. उसे पानी से कोई डर नहीं होता है जैसा कि मनुष्य में रैबीज होने के बाद होता है.

सही और निश्चित निदान के लिए जरूरी है कि पागल कुत्ते को ना मारा जाए बल्कि उसे बांधकर रखा जाए और देखा जाए कि कुत्ते में वास्तविक लक्षण उत्पन्न होकर 7-8 या 10 दिन में मरता है अथवा नहीं.

मरे हुए पागल कुत्ते के अमाशय में लकड़ी, पत्थर, घास आदि पदार्थ मिलते हैं और उनके मस्तक की सूक्ष्म परीक्षा करने पर नेगरा बॉडील पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं.

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पूर्वानुमान- पागल कुत्ते के काटने के बाद बचाव चिकित्सा की व्यवस्था न करने पर रोक पूर्णतया असाध्य हो जाता है.

कुत्ते के काटने पर सामान्य चिकित्सा-

  • पागल कुत्ते के काटने के बाद मनुष्य में होने वाली रैबिज को हाइड्रोफोबिया कहते हैं. इस रोग से बचने में प्राथमिक उपचार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. कई परीक्षणों से यह प्रमाणित हो चुका है कि यदि कुत्ता काटने से उत्पन्न घाव का उचित स्थानिक उपचार कर दिया जाए तो रैबीज होने का खतरा को 80% तक कम किया जा सकता है.
  • कुत्ते द्वारा काटने के बाद घाव तथा खरोच पर तुरंत और पर्याप्त स्थानिक उपचार सबसे पहली आवश्यकता होती है. इसका उद्देश्य रैबीज वायरस की अधिक से अधिक संख्या को दूर करना होता है. जिससे वह घाव के स्थान से शरीर के अंदर प्रवेश न कर पाए. घाव का स्थानिक उपचार जितनी जल्दी हो जाता है. उतना ही बेहतर होता है. लेकिन यदि इसमें कुछ घंटों अथवा कई दिनों तक विलंब हो गया हो तब भी उपेक्षा नहीं करना चाहिए.
  • घाव को साबुन और पानी से खूब अच्छी तरह होना चाहिए. इसका सबसे अच्छा तरीका घाव को चलते हुए नल के नीचे 5 मिनट तक धोना है. यदि साबुन उपलब्ध ना हो तो नल से गिरते हुए पानी से अच्छी तरह से धोना चाहिए. यदि घाव गहरा हो तो उसमें कैथेटर डालकर उसे धोना चाहिए. इससे रैबीज का खतरा बहुत कम हो जाता है.
  • घाव को उचित ढंग से साफ करने के बाद शेष बच गए वायरसों को निष्क्रिय करने के लिए घाव का रासायनिक उपचार करना चाहिए. इसके लिए किसी वायरस नाशक पदार्थ जैसे- अल्कोहल टिंचर, आयोडीन के घोल अथवा बेटाडिन के घोल से धोना चाहिए. सैव्लोन और सेटवलान अब उपयुक्त नहीं समझे जाते हैं. कार्बोलिक अम्ल अथवा नाइट्रिक अम्ल से घाव को दर्द करना भी अनावश्यक है क्योंकि भद्दे निशान रह जाते हैं. घाव में पिसी मिर्च, सरसों का तेल अथवा हल्दी का पाउडर कदापि नहीं डालना चाहिए.
  • घाव में टांके नहीं लगाने चाहिए क्योंकि इससे वायरस को शरीर के भीतर प्रवेश का अवसर मिलता है. यदि घाव बड़ा है और टांके लगवाना जरूरी है तो 24 से 48 घंटे के बाद कम से कम टांके लगवाना चाहिए. टांके लगाते समय एंटी रैबीज सीरम का स्थानिक प्रयोग किया जाना चाहिए. घाव के स्थानिक उपचार में एंटी रैबीज सीरम का प्रयोग रैबीज को रोकने में बहुत प्रभावकारी सिद्ध हुआ है. लेकिन इसका प्रयोग सेंसीविटी टेस्ट के उपरांत ही करना चाहिए. घाव में संक्रमण से बचाव के लिए एंटीबायोटिक तथा टिटनेस का इंजेक्शन भी जरूर लगवाना चाहिए.

नोट- भारत में रैबीज महामारी की स्थिति को देखते हुए कुत्ते द्वारा काटे गए प्रत्येक व्यक्ति को पागल कुत्ते द्वारा काटा गया ही मानना चाहिए. यह इसलिए भी जरूरी है कि जिनको कुत्तों का टीका लग चुका है उन पालतू कुत्तों में भी रैबीज पाई जा सकती है.

रेबीज से बचाव के सर्वाधिक सुरक्षित उपाय के रूप में स्वस्थ लगने वाले कुत्ते द्वारा काटे जाने के बाद भी तुरंत ही एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाना शुरू कर देना चाहिए. इस में देर नहीं करनी चाहिए. रैबीज से बचाव में समय का बहुत महत्व होता है.

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क्या करें जब कुत्ता काट ले-

जिस कुत्ते ने काटा हो उसे 10 दिन तक निगरानी में रखना चाहिए, क्योंकि यदि कुत्ता पागल होगा तो वह 10 दिन के अंदर ही मर जाएगा.

यदि कुत्ता जीवित है तो वैक्सिंग लगवाना बंद किया जा सकता है.

इसके उपरांत भी 15 दिन तक कुत्ते की निगरानी करनी चाहिए.

यदि कुत्ते की निगरानी संभव ना हो अथवा कुत्ता 10 दिन के अंदर मर जाए तो पूरी संख्या में एंटी रैबीज वैक्सीन लगवानी चाहिए.

पहले से खुले हुए किसी घाव को पागल कुत्ते द्वारा चाटे जाने को भी रैबीज के लिए संदेहात्मक माना जाता है. इसका उपचार भी कुत्ता काटने जैसा ही करना चाहिए.

यदि किसी व्यक्ति को रैबीज हो जाए तो क्या करें ?

रैबीज हो जाने को हाइड्रोफोबिया कहते हैं. हाइड्रोफोबिया होने पर कोई उपयुक्त चिकित्सा नहीं है. केवल जब तक व्यक्ति जीवित रहता है. उसके कष्ट निवारण के लिए चिकित्सा ही की जाती है.

  • रोगी को अलग कमरे में हमेशा बंद रखें क्योंकि वह  किसी को काट ले या नाखून से खरोच दे दो उसे भी यह समस्या हो सकती है.
  • रोगी की लार से दूषित कपड़ों को उबालकर साफ करें.
  • साथ ही रोगी के पास किसी को भी बड़ी ही सावधानी के साथ जाना या रहना चाहिए.
  • रोगी को दिन में तीन बार थोड़ा-थोड़ा गुड़ खिलाएं.
  • रोगी को किसी भी औषधि से लाभ नहीं होता है अतः उसे तत्काल किसी बड़े अस्पताल में भर्ती करवा देना चाहिए.

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कुत्ते के काटने पर आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार-

1 .गीदड़ या पागल कुत्ते के काटे हुए अंश के ऊपरी भाग को अभिलंब ही डोरी या धागे से तीन स्थानों पर चार- चार अंगुल के अंतर पर कसकर बांध दें और दंशित भाग पर धारदार चीज से चीरा लगा दें अब परमैग्नेट ऑफ पोटाश अल्प पानी में घोलकर काटे हुए स्थान पर अच्छी तरह से उसे रगड़े. रगड़ने से वह स्थान काला हो जाएगा. फिर दंशित. के ऊपर कपड़े की पट्टी बांध दें तब ऊपर के धागे को खोलकर हटा दें.

2 .घीक्वार ( एलोवेरा ) के गुर्दे में सेंधा नमक मिला दें. कुत्ते के काटे हुए स्थान पर यह दवा बांध दें. 3 दिन रहने दें, इससे पागल कुत्ते का विष उतर जाएगा और रोगी की प्राण रक्षा होगी.

3 .कुत्ता काट ले तो पुराना घी पिलाना चाहिए और कटे हुए स्थान को दूध में घी मिलाकर धोना चाहिए.

4 .दूध के साथ धतूरे की जड़ पीसकर कुत्ते द्वारा काटे व्यक्ति को पिलाने से विष उतर जाता है.

5 .लहसुन पीसकर कुत्ते द्वारा काटे गए स्थान पर लगाना चाहिए और लहसुन का ही काढ़ा रोगी को पिलाना चाहिए. इससे कुत्ते का विष. उतर जाता है

6 .शर्पुन्खा की जड़ और धतूरे की जड़ चावल के साथ मिलाकर पकाएं. वह चावल कुत्ते काटे हुए व्यक्ति को खिलाएं.

7 .विषतिन्दुक बटी या चूर्ण या दूध के साथ सेवन करें.

8 .तंबाकू चूर्ण या तपासीर जख्म के ऊपर बांधने से भी लाभ होता है या तूतिया द्वारा बना हुआ मरहम लगाने से लाभ होता है.

नोट- कुत्ता या सियार के काटने पर एंटी रैबीज वैक्सीन जरूर लगवा लेना चाहिए, क्योंकि हाइड्रोफोबिया हो जाने के बाद कोई उपचार नहीं है जो व्यक्ति को बचा सके.

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Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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