अल्जाइमर रोग होने के कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपचार

रोग परिचय- वृद्धावस्था में वृद्धि और दिमागी कार्य क्षमता कम हो जाना बहुत ही आम समस्या है. इस दशा को डिमेंशिया कहते हैं. बृद्धि और याददाश्त कम होने के अनेक कारण हो सकते हैं, पर सबसे प्रमुख कारण है अल्जाइमर का रोग.

अल्जाइमर रोग होने के कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपचार
अल्जाइमर रोग होने के कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपचार

इस बीमारी का कारण अज्ञात है. इसमें प्रमस्तिष्क के कॉर्टेक्स की कोशिकाओं का व्यपजनन होता है तथा उसमें एमिलायड पिंड पाए जाते हैं. यह रोग 50 वर्ष से कम उम्र में होता है. इसमें धीरे-धीरे याददाश्त शक्ति और बुद्धि क्षमता में कमी आने लगती है. इसमें अवसाद की स्थिति जुड़ी हो सकती है. तदनुसार पादताल परिवर्तन प्रसार हो जाते हैं तथा पार्किंसनता के लक्षण या चिन्ह मिल सकते हैं. आक्षेपी दौरे भी पड़ सकते हैं.

औसत आयु बढ़ने तथा आबादी में वृद्धों का प्रतिशत बढ़ने के कारण विश्वभर में अल्जाइमर की बीमारी से ग्रसित रोगियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है. रोग बढ़ जाने पर वह भी परिवार तथा समाज पर बोझ से बन जाते हैं. प्रायः इन रोगियों को लोग सनकी पागल करार करने की अपेक्षा करते हैं और इनकी देखभाल में कोताही बरतते हैं.

अनुमान है कि भारत में कुल जनसंख्या का लगभग 0.6 से 1.6 प्रतिशत अल्जाइमर के रोग से ग्रसित तथा प्रति वर्ष 60 वर्ष से अधिक आयु का 1%. 65 से 70 वर्ष आयु का 2% तथा 80 से अधिक उम्र का लगभग 20% इस रोग से ग्रसित हो जाती है.

इस रोग की शुरुआत अत्यंत ही धीमी गति से होती है. जिसका ज्यादा एहसास ना मरीज को होता है और ना ही परिवार के अन्य सदस्यों को हो पाता है. रोग का प्रारंभ 40 से 90 वर्ष की आयु में कभी भी हो सकता है. लेकिन 65 वर्ष की आयु के बाद इसकी संभावना अधिक हो जाती है.

इस रोग का प्रकोप महिलाओं में पुरुषों की तुलना में 2 से 3 गुना अधिक होने की संभावना रहती है.

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अल्जाइमर रोग होने के कारण-

  • अल्जाइमर रोग होने के कारण का अभी पूरा ज्ञात नहीं हुआ है. लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि जटिल प्रक्रिया के द्वारा वातावरण की अनेक अवयव कई गुणसूत्रों( मुख्यता गुणसूत्र संख्या 1,14, 29) को प्रभावित कर उनमें बदलाव लाकर पैदा करते हैं. जिन व्यक्तियों में गुणसूत्रों क्रोमोसोम्स में बदलाव आ गया है उनमें मस्तिष्क की मामूली सी बीमारी, शारीरिक बीमारी, मानसिक रोग, बेहोशी की दवा या मानसिक तनाव अल्जाइमर रोग की शुरुआत का कारण बन सकते हैं.
  • अक्सर देखा जाता है कि वृद्धावस्था में जीवन साथी की मृत्यु की बाद इस रोग की होने की संभावना अधिक हो जाती है.
  • वैसे अल्जाइमर रूप में मस्तिष्क के वेसल गैंग्लियन एवं अन्य भागों में एसीटिलकोलिन स्रवित करने वाले स्नायु सिकुड़ जाते हैं जिससे उनमें एसीटिलकोलिन रसायन प्रवृत्त नहीं होता है.

अल्जाइमर रोग के लक्षण-

  • अल्जाइमर रोग की प्रारंभिक अवस्था में दिमागी अवस्था कुछ गड़बड़ा जाती है जिससे परिणाम स्वरुप कार्य क्षमता में कमी आने लगती है.
  • व्यक्ति को नया काम या तकनीक सीखने में सफलता नहीं मिल पाती है.
  • व्यक्ति की याददाश्त शक्ति धीरे-धीरे कम होने लगती है. वह वर्तमान में घटित घटना क्रम को याद नहीं रख पाते हैं. पर उनकी पुरानी स्मरण शक्ति बरकरार रहती है.
  • मरीज अपने बचपन एवं युवा अवस्था में घटित घटनाओं तथा हादसों को विस्तार से बार-बार वर्णन करते हैं. लेकिन उसी दिन या कुछ समय पहले भी बात याद नहीं रहती है.
  • स्मरण शक्ति कम होने के कारण व्यक्ति समय, तारीख, स्थान को याद नहीं रख पाते, वे अक्सर यह भी भूल जाते हैं खाना खाया है या नहीं.
  • यदि व्यक्ति को कोई काम करना है या कहीं जाना है तो उसे भूल जाते हैं. हिसाब- किताब भी नहीं कर पाते, इस कारण खरीदारी में परेशानी होती है.
  • वे सोच समझकर निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं और निर्णय की स्थिति में बने रहने के कारण वे अपने कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाते हैं
  • स्मरण शक्ति कम होने के कारण अल्जाइमर से ग्रसित अपने काम हो या कहीं बात को भूल जाते हैं. जिससे एक ही काम या बात को बार-बार दोहराते हैं. अक्सर रोगी को जानकार लोगों को पहचानने में भी दिक्कत हो सकती है.

अल्जाइमर की दूसरी अवस्था-

  • बीमारी तेजी से बढ़ कर यह बुद्धि और स्मरण शक्ति को और ज्यादा कम कर देती है. व्यक्ति में परिवर्तन होने लगते हैं. व्यक्ति को खाने-पीने बोलने यहां तक कि हाथ- पैर चलाने में भी परेशानी होती है. रोगी सही समय पर सही शब्द का प्रयोग करने में असमर्थ होता है. प्रायः शुरुआत में किसी विषय पर अपने विचार बहुत घुमा फिरा कर कहने की कोशिश करता है, खुद बनाए नए अर्थहीन शब्दों से अपने विचार प्रकट करने की कोशिश करता है, वाक्य पूरे नहीं बोल पाता है और विचार प्रकट करने में परेशानी का अनुभव करता है. अंत में बोलना ही बंद कर देता है.
  • व्यक्ति अपने शरीर को बहुत कम चलाने की कोशिश करता है. जैसे- हाथ मिलाना, टाटा करना, किसी वस्तु की आवश्यकता होने पर मांगने या मना करने के लिए इशारा तक करने में असमर्थ होता है. बोलते समय उसके चेहरे के भाव नहीं बदलते, उन्हें पेन पकड़ने या माचिस की तीली जलाने में भी परेशानी होती है. व्यक्तित्व एवं मानसिक स्थिति में बदलाव के कारण मरीज का काम के प्रति रुझान भी कम हो जाता है. यहां तक कि वह स्वयं की देखभाल में भी लापरवाही बरतने लगता है. समाज में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता तथा एकाकी जीवन व्यतीत करने लगता है. रोगी दैनिक कार्यों एवं नित्य क्रियाएं जैसे- ब्रश करना, दाढ़ी बनाना, नहाना, कपड़े पहनना, भोजन इत्यादि करने में कोताही बरतने लगता है और अंत में उसकी देखभाल की जिम्मेदारी घरवालों को ही करनी पड़ती है.
  • अल्जाइमर से ग्रसित रोगी में आवाज सुनकर व्यक्ति को या अन्य वस्तुओं को पहचानने की क्षमता कम हो जाती है. यदि उसको दर्द हो रहा है तो दर्द कहां हो रहा है वह बताने में असमर्थ होता है. साथ ही हाथों में कंपन, कड़ापन, खड़े होने में परेशानी या शरीर में ऐंठन की समस्या हो सकती है.
  • अल्जाइमर के रूप में छोटे बच्चों वाली हरकतें फिर से लौट आती है. जैसे- किसी वस्तु को पकड़ने में मुट्ठी बंद हो जाना, मुंह में कुछ रखते ही मुंह चलाना या अपने आप ही मुंह चलाना आदि.

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अल्जाइमर की तीसरी एवं अंतिम अवस्था-

  • मरीज हिलना डुलना बंद कर देता है. किसी बात का उत्तर नहीं देता स्वयं बात भी शुरू नहीं करता, बिस्तर पर ही मल- मूत्र कर सकता है. खाना स्वयं नहीं खाता दूसरों के हाथ से खिलाना पड़ता है अथवा नाक से पेट में नली डालकर खिलाया जाता है. उसे झटके आ सकते हैं. बराबर लेटे रहने के कारण संक्रमण या अपोषण के कारण मृत्यु तक भी हो सकती है.
  • बीमारी शुरू होने से अंत तक का औसतन समय 5 से 8 वर्ष होता है. लेकिन यह समय उपचार तथा मरीज की मानसिक तथा शारीरिक दशाओं के अनुसार कम या ज्यादा हो सकता है. अल्जाइमर से ग्रसित मरीज को तो कष्ट होता ही है साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों को पर भी आर्थिक तथा मानसिक प्रभाव पड़ता है.

अल्जाइमर का घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपचार-

अल्जाइमर रोग का अभी तक कोई इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाएं संज्ञानात्मक और उनके व्यवहारों में बदलाव ला सकती है. इसलिए उनके लक्षणों के आधार पर दवाइयां दी जा सकती है.

  • अल्जाइमर रोग का अभी तक कोई सफल उपचार उपलब्ध नहीं है, मरीज की सहायता के लिए परिवार, पड़ोसी, दोस्त, डॉक्टर, हेल्थ वर्कर सभी की सहायता जरूरी होती है.
  • रोगी की समस्या को समझ कर उससे सद्भावना पूर्ण व्यवहार करना चाहिए ना कि पागल यह सनकी समझ कर उपेक्षित या निरादर करें. रोगी की दिनचर्या निर्धारित करें, ध्यान रखें कि मरीज दैनिक क्रिया में दांत साफ करना, सेव करना, नहाना, कपड़े बदलना, बाल सवारना, कुल्ला करना इत्यादि कर रहा है या नहीं. रोगी बच्चे की तरह व्यवहार करता है अतः माता-पिता जैसे बच्चों की हर तरह से देखभाल करते हैं वैसे ही परिवार के सदस्यों का कर्तव्य है कि अल्जाइमर ग्रसित रोगी की देखभाल करें.
  • मरीज को सुने या दिमाग शांत करने की दवाइयां दी जा सकती है.
  • यदि रोगी किसी अन्य बीमारी से ग्रसित है या हो जाता है तो उस रोग का उपचार करवाए.
  • रोगी के पोषण का विशेष ध्यान रखना जरूरी है. यदि मुंह से पर्याप्त पोषण लेने में असमर्थ है तो उसे नली द्वारा या शिरा द्वारा पोषण देने की व्यवस्था करनी चाहिए.
  • ब्राह्मी चूर्ण- 2 से 4 ग्राम की मात्रा में शहद या दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करना अल्जाइमर रोगियों के लिए फायदेमंद होता है. इसके सेवन से मस्तिष्क को ताकत मिलती है जिससे बुद्धि और स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है.
  • सारस्वतारिष्ट- 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम पानी के साथ पीना फायदेमंद होता है. इसके सेवन से हिस्टीरिया, उन्माद, अपस्मार, भ्रम, दिमाग की कमजोरी आदि दूर होती है. स्मरण शक्ति बढ़ती है और नींद भी अच्छी आती है.
  • रसायन चूर्ण- गिलोय, गोखरू, आंवला संभाग मिलाकर चूर्ण करें. अब इसमें से 2 से 4 ग्राम की मात्रा में घी और शक्कर के साथ सेवन करना फायदेमंद होता है. यह शरीर की व्यर्थ गर्मी को दूर कर दिमाग को ताकत प्रदान करता है.
  • अश्वगंधारिष्ट 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम अल्जाइमर मरीजों के लिए फायदेमंद होता है.

इसके सेवन से मूर्छा, महिलाओं का हिस्टीरिया रोग, दिल की धड़कन, बेचैनी, चित्त की घबराहट, भ्रम, यादाश्त की कमी, बहुमूत्र, मंदाग्नि, बवासीर, कब्जियत, सिरदर्द, काम में मन न लगना, स्नायु दुर्बलता, हर प्रकार की कमजोरी, बुढ़ापे की शिथिलता आदि रोग नष्ट होकर बल वीर्य एवं शक्ति की वृद्धि होती है. दिमाग की विकृति या कमजोरी दूर करने के लिए अभ्रक भस्म सुबह- शाम मधु के साथ और भोजन के बाद अश्वगंधारिष्ट पीना विशेष फायदेमंद होता है. दिमागी मेहनत करने वालों को यह तो हमेशा पीना चाहिए. यह मानसिक थकावट को दूर कर शरीर में एक तरह की स्फूर्ति पैदा कर दिमाग को तरोताजा बना देता है. इसलिए थकावट मालूम नहीं पड़ती है. दिमाग को पुष्ट करने की यह एक अच्छी दवा है. इसलिए अल्जाइमर रोगियों को पिलाना फायदेमंद हो सकता है.

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I am an Ayurveda doctor and treat diseases like paralysis, sciatica, arthritis, bloody and profuse piles, skin diseases, secretory diseases etc. by herbs (Ayurveda) juices, ashes.

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