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A- महिला में बांझपन होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 2 MinUpdated On March 28, 2022

हेल्थ डेस्क- पुरुष में अगर कोई दोष ना हो और शादी के बाद लगभग 5 वर्ष तक नियमित शारीरिक संबंध के बावजूद भी महिला गर्भधारण नहीं करे तो उसे बांझ समझना चाहिए. अंग्रेजी में दो शब्द आते हैं 1 स्टेरिलिटी तथा 2 इनफर्टिलिटी. यह दोनों शब्द एक दूसरे के पर्याय हैं. फिर भी एक- दूसरे में पर्याप्त में अंतर है. सामान्यतया इनफर्टिलिटी अथवा वंध्यत्व गर्भाधान की असफलता का घोतक है. स्टेरिलिटी पूर्ण वंध्यात्व का बोधक है. इनफर्टिलिटी में महिला को गर्भ धारण हो सकता है लेकिन गर्भ सफल नहीं होता है. स्टेरिलिटी में महिला या पुरुष दोनों के कारण कभी भी बीज के सफल होने या गर्भधारण होने की संभावना नहीं रहती है. उसे जीवन पर्यंत बांझपन का ही अनुभव करना होता है. आधुनिक चिकित्सकों ने वंध्यत्व के दो प्रकार बताए हैं.

महिला में बांझपन होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

1 .प्राथमिक वंध्यत्व- जब गर्भाधान बिल्कुल ही नहीं हो तो उसे प्राथमिक वंध्यत्व कहते हैं.

2 .द्वितीयक वंध्यत्व- जब गर्भाधान होकर एक बार बच्चा उत्पन्न हो गया हो अथवा बीच में ही गर्भपात हो गया हो और इसके बाद फिर कभी गर्भधारण ना हो तो उसे द्वितीयक वंध्यत्व कहते हैं.

एक बार बच्चा होने के बाद वंध्यत्व कारण किसी आरोही उपसर्ग का प्रसुति काल में बीजवाहिनियों तक जाकर उनका मुंह बंद कर देना है. जैसा कि पूयमह ( गनोरिया ) में अधिकांश रूप से होता है. इसी प्रकार एक बार गर्भपात हो जाने के बाद आंतरिक बीज वाहिनीपाक उत्पन्न होकर बिज वाहिनियोंके मूख को अवरुद्ध कर देता है. जिससे भविष्य में फिर आगे गर्भधारण नहीं होता है.

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प्रजनन असमर्थता को बांझपन कहते हैं. साधारण भाषा में बंध्या या बांझ उस महिला को कहते हैं जिसमें किसी कारण जीने योग्य संतान पैदा करने की क्षमता नहीं होती है. आयुर्वेद में बांझपन के कई प्रकार बताए गए हैं जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है.

1 .आदि बंध्या- जो महिला प्रारंभ से बांझ हो अर्थात उसे कभी भी गर्भाधान न हुआ हो उसे आदि बंध्या कहते है.

2 .काक बंध्या- एक बार गर्भधारण होकर बच्चे के जन्म के पश्चात पुनः गर्भधारण ना हो तो उसे काक वंध्या कहते हैं. इसका मतलब यह है कि प्रथम प्रसव के अनंतर कोई ऐसा उपद्रव पैदा हो गया हो जिसके कारण पुनः दूसरा गर्भ नहीं ठहर रहा हो.

3 .गर्भश्रावणी वंध्या- इसमें महिला को गर्भाधान तो होता है लेकिन भ्रूण के पूर्ण अवस्था प्राप्त करने से पहले स्राव या पात हो जाया करता है.

बांझपन के क्या कारण है ?

बांझपन की दो प्रकार के कारण आयुर्वेद में बताए गए हैं.

1 .जन्मजात कारण-

महिला में जन्म से ही गर्भाशय का ना होना अथवा गर्भाशय का छोटा होना, जननपथ का आंशिक या पूर्णतया विकास ना होना- जैसे योनि का अभाव अथवा योनि की नली का पूर्ण रुप से बंद होना अथवा उसका अंतिम भाग बंद या बहुत अधिक संकरा होना, फैलोपियन ट्यूब का ना होना या बंद होना, डिम्बवह स्रोतमें मृदुलोमांकुरों का अभाव जिसके कारण ओवम गर्भाशय की ओर नहीं आ पाता, फल स्वरुप गर्भाधान का होना कठिन हो जाता है. डिम्बाशय का अभाव या उसका बंद होना, गर्भाशय का पूर्ण रुप से बंद होना, डिम्ब के अभाव आदि कारणों से स्त्री में वंध्या का रोग हो जाता है. अंतः स्रावी ग्रंथियों द्वारा ठीक से स्राव के न होने से भी महिला बाँझ हो जाती है. इसमें डिम्ब ग्रंथियों या पिट्यूटरी की क्रिया में बिषमता आ जाती है. अवटुका ( थायराइड ) की प्रिया का बराबर ना होना, अति अथवा हीनक्रिया, एड्रीनल का अपूर्ण कार्य आदि भी वंध्यता में सहायक होता है.

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2 .अन्य कारण-

भगद्वार के ओष्ठों का आपस में जुड़ जाना, गर्भाशय में सूजन होना, गर्भाशय का उलट- पलट जाना, गर्भाशय में अधिक चर्बी जमा हो जाना, गर्भाशय का कठोर हो जाना, डिम्बाशय पर अप्राकृतिक झिल्ली का उत्पन्न हो जाना तथा उसकी रचना में विकृति उत्पन्न हो जाना, फैलोपियन ट्यूब के झालर वाले सिरे का नष्ट हो जाना, उपदंश ( सुजाक ) श्वेत प्रदर, गर्भाशय के अंदर दूषिततरल का जमा हो जाना, प्रदर विकार, गर्भाशय के घाव एवं कैंसर, गर्भाशय में सर्दी- गर्मी, खुश्की एवं तरलता की अधिकता, गर्भाशय में वायु का एकत्र हो जाना या पानी का पड़ जाना, खून की कमी होना, गर्भाशय का बवासीर, मोटापा, गर्भाशय के तरल में अधिक अम्लता का पैदा हो जाना, गर्भाशय के विभिन्न रोग आदि कारणों से महिला में बांझपन हो जाता है. श्वेत प्रदर, ग्रीवाशोथ, क्षयज गर्भाशयांत, कलाशोथ, योनिशोथ, भगशोथ आदि कारणों से योनिगत स्राव की प्रतिक्रिया बदल जाती है.

शुक्र'कीट क्षारीय स्रावों में बढ़ोतरी करते हैं किन्तु अम्ल प्रतिक्रिया के स्राव में थोड़े समय तक ही क्रियाशील रहते हैं और कुछ समय के बाद ही नष्ट हो जाते हैं.जिससे शुक्र कीट का ओवम से मिलन नही होता है और गर्भधारण की क्रिया संपन्न नही हो पति है.

ग्रीवा शोथ की अवस्था में स्राव जब पूयश्लेष्मल हो जाता है तो शुक्रकीट ऊपर की तरफ गमन नही कर पाते, फलस्वरूप गर्भधारण की क्रिया संपन्न नही होती है और महिला बाँझ हो जाती है.

कई बार भगशोथ होकर मैथुन के दौरान दर्द होने से पूर्ण मैथुन नही हो पाता है जिसके फलस्वरूप गर्भधारण नही हो पाता है

तन्तुपेशी अर्बुद से युक्त गर्भाशय वाली महिला में गर्भधारण प्रायः बहुत कम होता है.

गर्भाशय के कैंसर, मांसार्बुदों की उपस्थिति से इस प्रकार के स्राव होते हैं जिससे शुक्रकीट मर जाते हैं जिसके कारण गर्भधारण नही हो पाता है. अतः अर्बुदों की उपस्थिति से वंध्यात्व उत्पन्न हो जाता है. फिर भी यदि गर्भधारण हो जाता है तो पूर्ण होने से पहले ही गर्भस्राव या गर्भपात हो जाता है.

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आहार में विटामिन ई की कमी भी महिला को बांझ बनाने में सहायक होता है.

तम्बाकू, शराब अथवा अहिफेन का अधिक मात्रा में सेवन भी महिला को बाँझ बना देता है.

गर्भनिरोधक साधनों का भी अधिक प्रयोग करने से भी महिला को बाँझ बना सकता है.

सीसा, पारद, क्ष- किरण ( x- ray ) एवं रेडियम का कुप्रभाव भी महिला को बाँझ बना सकता है.

आचार्य चरक के मुताबिक किसी भी प्रकार के योनि रोग महिला को बाँझ बनाने में सहायक होता है.

नोट- अगर महिला में कोई रोग न हो फिर भी गर्भधारण में परेशानी हो रही है तो उसके पति का निरिक्षण करना आवश्यक हो जाता है कि उसको कोई संक्रामक रोग जैसे- सुजाक एवं उपदंश तो नही है.

यदि पुरुष जननेंद्रिय में कोई खराबी प्रतीत न हो तो उसके वीर्य की जांच करनी चाहिए. इसके लिए पति को सम्भोग से 3-4 दिन रोक कर रखना चाहिए इसके बाद उसके वीर्य की जांच करनी चाहिए.

महिला बांझपन के लक्षण क्या हैं ?

इस रोग में महिला का मासिक धर्म ठीक प्रकार से नहीं होता है. गर्भ मार्ग में सुइयां चुभती है साथ ही मीठा- मीठा दर्द होता रहता है. शारीरिक संबंध बनाते हुए भी महिला को गर्भ धारण नहीं होता है. बांझ महिला की कुचायें प्रायः बहुत कम उठी हुई होती है अथवा बिल्कुल ही उठी हुई नहीं हो सकती, गर्भ ग्रहण करने का मार्ग प्रायः शुष्क होता है.

कमजोर महिला में आर्तव- प्रवाह का पूर्णतया अभाव रहता है. अपने पति की तरुण अवस्था के कारण गर्भमार्ग लंबा- चौड़ा हो जाता है. महिला के गर्भमार्ग में जलन, खुजलाहट, फुंसियां, सूजन एवं सुई चुभने के समान पीड़ा की अनुभूति होती है.

यदि बांझपन का कारण जन्म से ही हो तो निरीक्षण से इसका पता चल जाता है. कुमारीपर्दा एवं योनि के बंद होने की अवस्था में संभोग नहीं किया जा सकता, डिम्बाशय के अभाव में अथवा उसकी रचना विकृत होने पर महिला को आनंद प्रतीत ना होने के कारण उसमें संबंध बनाने की इच्छा उत्पन्न नहीं होती है और ना ही संबंध के समय पुरुष के वीर्य की भांति तरल निकलता है और ना आनंद आता है. लेकिन डिम्बाशय पर अप्राकृतिक झिल्ली उत्पन्न हो जाने, फैलोपियन प्रणालियों के बंद हो जाने अथवा उनके ना होने पर महिला को शारीरिक संबंध में आनंद तो आता है लेकिन तरल पदार्थ नहीं निकलता है. यदि गर्भाशय के किसी अन्य रोग के कारण बांझपन हो तो महिला को इस रोग का ज्ञान हो जाता है.

यदि वृक्कों के ऊपर की ग्रंथियों एवं डिम्बाशय में रसौली हो जाए तो महिलाओं में मर्दाना गुण भी पैदा हो जाता है और उनको दाढ़ी एवं मूंछें भी निकल आती है. साथ ही ऐसी महिला को छाती, पेट, हाथों तथा पैरों पर पर्याप्त मात्रा में बाल निकल आते हैं. महिला के स्तन छोटे एवं कड़े हो जाते हैं. महिला का काम केंद्र- भग्नशिश्नका सामान्य आकार के बड़ा हो जाता है साथ ही महिला का स्वर ( आवाज ) पुरुषों की भांति भारी हो जाता है.

 बंध्या महिला में चिकित्सा सिद्धांत क्या होना चाहिए ?

1 .महिला चिकित्सक अथवा योग्य अनुभवी नर्स को दिखाकर यह मालूम करें कि किस कारण से रोग है. मूल कारण को जानकर चिकित्सा करना चाहिए. साथ ही कारण का पूर्ण रुप से निराकरण करें.

2 .महिला के पति की भी पूर्ण परीक्षा की जानी चाहिए. यदि उसमें वीर्य संबंधित कोई दोष है तो उसे दूर करने का उपाय करना चाहिए.

3 .यदि महिला में कोई जन्मजात दोष है तो उसकी चिकित्सा असंभव है. लेकिन गर्भाशय संबंधित अन्य रोग के कारण बांझपन को दूर चिकित्सा से उन्हें दूर किया जा सकता है.

4 .यदि महिला को प्रदर की शिकायत हो तो सबसे पहले उसे ठीक करने का उपाय करना चाहिए.

5 .यदि गर्भाशय के तरल में अम्लीयता अथवा खारापन की अधिकता है तो उसे दूर करने का उपाय करना चाहिए.

6 .बांझपन की समस्या से पीड़ित महिला को संभोग अधिक नहीं करना चाहिए.

7 .गर्भवती का योग्य समय उनको बता देना चाहिए जो कि ऋतुकाल प्रारंभ होने के 14 दिन पूर्व होता है.

8 .यदि संभोग के समय वीर्य योनि से बाहर आता हो तो महिला को चाहिए कि संभोग के पश्चात अपने नितंब को ऊंचा कर ले. आयुर्वेद में तुरंत शीतल जल पीने के लिए बताया गया है.

9 .पति के पूर्ण स्वस्थ होने पर केवल महिला की ही चिकित्सा करनी चाहिए.

10 .स्वस्थ्य बीज की उत्पत्ति में जो दोष हो उसे दूर करना चाहिए.

11 .स्त्री बीज प्रणाली में प्रविष्ट होने में यदि कोई रुकावट हो तो उसकी चिकित्सा की जानी चाहिए. इसी प्रकार शुक्राणु प्रवेश में कोई रुकावट हो तो उसे दूर करें.

12 .स्त्रीबीज यदि स्थिर न होता हो तो उसकी चिकित्सा करनी चाहिए.

13 .कोई एन्द्रिक कारण हो तो उसकी चिकित्सा की जानी चाहिए. योनि में ट्राईकोमोनस के कारण प्रायः योनि शोथ होता है. योनि में अत्यधिक अम्लता का होना जिसमें पीसे हुए चावलों जैसा स्राव होता है तथा एस्ट्रीन की क्रिया के बढ़ने से पीएच कम हो तब संभोग से 2 घंटा पहले सोडाबाइ कार्ब की उदरबस्ति देनी चाहिए.

13 .गर्भाशय ग्रीवा का व्रण एवं गर्भाशय शोथ प्रायः वंध्यात्व का कारण होता है इस अवस्था में विधुत से अंतर्दाह एवं विस्तार ( फैलाव ) श्रेष्ठ है.

14 .यदि गर्भाशय ग्रीवा में पतली श्लेष्मा उपस्थित ना हो जैसा कि जिस स्त्रीबीज के उत्पन्न होने के समय होता है तब रक्त संचार में एस्ट्रोजन की मात्रा न्यून समझनी चाहिए. इसके लिए स्टीलवोस्ट्राल की मात्रा क्रमशः बढ़ाते हुए देनी चाहिए.

15 .चिकित्सा शोथ के आधार पर की जानी चाहिए.

16 .सामान्य चिकित्सा में पति-पत्नी के साधारण स्वास्थ्य को बढ़ाना चाहिए, उन्हें जीवनी बाहुल्य द्रव्यक पूर्ण व्यवस्था करनी चाहिए.

17 .यदि स्थौल्य यानी अधिक चर्बी के कारण मोटापा हो और गर्भधारण में परेशानी आ रही हो तो उसका उपाय करना चाहिए. इनके लिए स्निग्घ पदार्थों का निषेध, थायराइड ग्रंथि सत्व का उपयोग लाभदायक होता है.

18 .चिकित्सक के द्वारा महिला को पूर्ण आश्वासन दिया जाना चाहिए कि उसमे कोई रोग नहीं है. क्योंकि आश्वासन कभी-कभी रोगिणी में आश्चर्यजनक सफलता प्रदान करता है. ऐसी चिंतातुर महिला चिंता मुक्त होते ही गर्भ धारण कर लेती है और आगे गर्भवती होने में समर्थ रहती है.

19 .यदि प्रजनन अंगों में कहीं भी कोई उपसर्ग हो तो उसकी चिकित्सा की जानी चाहिए.

20 .महिला को शारीरिक संबंध के विषय में जानकारी देनी चाहिए. उपयुक्त समय की जानकारी भी वंध्यत्व रोकने में सहायक होती है. प्रायः मासिकधर्म दर्शन के 14वें दिन बीज स्फोट होता है इसलिए इसी दिन संबंध बनाना उपयुक्त होता है. जिससे गर्भधारण की संभावना अधिक हो जाती है. कभी-कभी बीज स्फोट एक-दो दिन आगे पीछे भी होता है अतः शारीरिक संबंध भी इसी क्रम में बनाना चाहिए.

21 .शारीरिक संबंध किस आसन में किया जाए यह भी बांझपन रोकने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. महिला को जानु वक्षासन में करके फिर ऊपर से पुरुष द्वारा संबंध बनाना अधिक प्रभावशाली होता है. लेकिन इसमें महिला को अधिक कष्ट होता है. साथ ही यदि पुरुष महिला के बराबर अथवा कुछ अधिक लंबे कद का नहीं है तो पुरुष के लिए भी यह कार्य कठिन नहीं होता है. महिला को अधिक से अधिक झुकाकर व्यवस्था की जा सकती है. संबंध के पश्चात इसी आसन में कुछ समय तक महिला को पूर्ववत बना रहना चाहिए. यदि यह आसन ना बन सके तो महिला नीचे और पुरुष ऊपर जो प्रायः प्रचलित विधि है उसी का उपयोग करना चाहिए.

22 .अगर महिला में अधिक कमजोरी एवं खून की कमी के कारण गर्भधारण में परेशानी हो रही है तो विटामिन एवं लौह युक्त टॉनिक का उपयोग करना चाहिए.

बांझपन का आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-

1 .पहले योनि दोष को दूर करने के लिए फलघृत अपर का सेवन 12-12 ग्राम की मात्रा में मिश्री युक्त दूध के साथ सुबह-शाम एवं रात्रि को सोते समय 2 माह तक निरंतर कराते रहें. इससे योनि के समस्त विकार दूर हो जाते हैं. तत्पश्चात अश्विप्रोक्त फल घृत अथवा फल कल्याण घृत का प्रयोग पूर्व विधि से 1 वर्ष तक लगातार कराते रहें. इससे गर्भाशय पुष्ट हो जाता है तथा गर्भधारण होकर संतान की उत्पत्ति होती है.

2 .कुमार कल्पद्रुम घृत 12 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिले बकरी के धारोष्ण दूध के साथ सुबह- शाम एवं रात्रि के समय सेवन कराते हैं. 1 वर्ष तक इसी प्रकार निरंतर सेवन कराने से जन्मजात बांझपन भी दूर होकर संतान उत्पन्न हो सकती है. यदि भाग्य दोष प्रबल ना हो.

उपर्युक्त चिकित्सा के साथ-साथ बांझपन का कोई स्पष्ट कारण सामने दिखाई दे तो उसे भी चिकित्सा से दूर करें इतना करने के पश्चात महिला तो स्वतः गर्भधारण होने लगता है, अथवा किसी गर्भधान कारक योग प्रयोग करें गर्भधान कारक योगों को आगे दिया जा रहा है-

3 .कस्तूरी 240 मिलीग्राम, केसर 2 ग्राम, अफीम 2 ग्राम, जायफल 2 ग्राम, भांग के पत्ते 2 ग्राम, गुड़ 240 मिलीग्राम तथा सफेद कत्था 5 ग्राम, सुपारी 2 ग्राम, लौंग 2 ग्राम सभी को पीसकर कर झरबेरी के फल के बराबर गोलियां बना कर सुरक्षित रखें.

मात्रा- एक- एक गोली सुबह- शाम मासिक धर्म की समाप्ति के पश्चात 5 दिनों तक महिला को खिलाना चाहिए.

इसके सेवन से जिस महिला को 40 वर्ष की अवस्था तक गर्भ धारण नहीं हुआ हो उनको भी गर्भधारण हो जाता है. यदि इसके सेवन से प्रथम मास में गर्भधारण ना हो तो इन गोलियों को दूसरे एवं तीसरे महीने में भी 5 दिनों तक सेवन कराएं. यह पूर्ण परीक्षित योग है.

4 .अश्वगंध, दारूहल्दी, कुटकी, मेदा, लाल चंदन, दाख, श्वेत चंदन, नीलकमल, काकोली, खरैटी, कूठ, मुलेठी, त्रिफला, हल्दी, हींग, अजवाइन, क्षीर काकोली, सफेद विदारीकंद, मजीठ सभी को 24- 24 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लुग्दी बना लें. अब शतावर 16 किलो, गाय का घी 4 किलो, काली गाय का दूध 16 लीटर और उपर्युक्त संपूर्ण लुगदी सबको मिलाकर पकावें. जब 4 किलो शेष रह जाए तब उतारकर सुरक्षित रख लें. यह शतावरी घृत है.

मात्रा एवं उपयोग- 12 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से बांझपन की समस्या दूर हो जाती है.

5 .मासिक धर्म खत्म होने पर स्नान करने के पश्चात क्षीरपाक विधि से नागौरी असगंध से भावित दूध में थोड़ा गोघृत अथवा फलघृत पिलाते रहने से गर्भधारण होता है.

6 .नागौरी असगंध 24 ग्राम गाय के दूध के साथ पीसकर लुग्दी बना लें. इसके बाद 250 ग्राम गाय का दूध, 12 ग्राम गाय का घी, 24 ग्राम लुगदी सबको लेकर एक कलीदार कड़ाही में पकावें इसे मासिक धर्म के पश्चात चौथे दिन महिला को पिलाकर दूध भात खिला कर महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाए, निश्चित ही गर्भ ठहरेगा.

महिला में बांझपन होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

7 .मोर के पंख के अंदर के नौ सुंदर गोल चांद लेकर गर्म तवे पर भून लें. इसके बाद उसे बारीक पीसकर पुराने गुड़ में घोटकर 9 गोलियां बना लें.-

मात्रा एवं उपयोग- मासिक धर्म के दिनों में एक एक गोली प्रातः गाय के दूध के साथ 9 दिन तक सेवन कराने और पति- पत्नी शारीरिक संबंध बनाए तो अवश्य ही गर्भ ठहर जाता है. यदि पहले माह में गर्भधारण ना हो तो दूसरे- तीसरे माह में भी इन गोलियों का प्रयोग करना चाहिए.

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8 .शीतल कल्याण घृत- कुमुद के फूल, पद्माख, खास, मुद्गपर्णी, क्षीर काकोली अथवा शतावरी, गंभारी, मुलेठी, बला, अतिबला, नीलोफर, बिदारी, सोया, सालपर्णी, जीरा, त्रिफला खीरे के बीज, कच्चा केला सभी को 30 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें. अब 1 किलो गाय का घी, 4 किलो दूध, 2 किलो पानी सब को मिलाकर घृतपाक विधि से तैयार करें.

मात्रा एवं सेवन विधि- 12 ग्राम की मात्रा में सुबह- शाम सेवन करने से बांझपन की समस्या दूर होकर गर्भधारण होता है.

महिला में बांझपन होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

9 .बटांकुर योग- वटवृक्ष के अंकुर, नीलोफर, धातकी को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें. अब इसमें से 3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन कराने से बांझपन की समस्या दूर हो जाती है.

10 .विधारा की जड़ 12 ग्राम, पकड़िया वृक्ष की जटा 24 ग्राम लेकर 700 मिलीलीटर पानी में पकावें. जब 60 मिलीलीटर शेष रहे तब उतारकर छान लें. इसे मासिक धर्म के समय नित्य पिलाने से महिला को गर्भधारण होता है. इस औषधि का सेवन महिला को कम से कम 1 वर्ष तक अवश्य कराना चाहिए.

11 .पीपल वृक्ष की जटा 6 ग्राम, नागकेसर 6 ग्राम, हाथी दांत का बुरादा 12 ग्राम, असगंध 3 ग्राम, कायफल 3 ग्राम इन सभी को बारीक पीसकर 24 ग्राम गुड़ मिलाकर और सुरक्षित रख लें. अब इसमें से 6 से 9 ग्राम और प्रतिदिन सोते समय सेवन करें. इस औषधि को मासिक धर्म के पश्चात 5 दिन तक सेवन कराएं और पति- पत्नी संबंध बनाए तो गर्भधारण होता है. यदि पहले महीने में गर्भधारण ना हो तो इसी प्रकार दो-तीन महीने तक इसका सेवन कराना चाहिए.

12 .फिटकरी की खिल, जायफल, बड़ीमाई, अनार का छिलका सबको बराबर मात्रा में लेकर पीसकर पानी मिलाकर बत्तियां बना लें. मासिक धर्म के पांचवें दिन से एक बत्ती दिन के समय गर्भाशय के निकट रखें और रात्रि के समय इस बत्ती को निकालकर शारीरिक संबंध बनाए. इस प्रयोग से गर्भधरण होने की संभावना अधिक हो जाती है.

13 .सुपारी पाक- यह पाक अत्यंत ही बाजीकर एवं पुष्टिकारक है. इसके सेवन से स्त्रियों के योनि से होने वाले नाना प्रकार के स्राव नष्ट होते हैं तथा महिला एवं पुरुष दोनों को वंध्यत्व दोष को नष्ट करके उन्हें संतानोत्पत्ति के योग्य बना देता है. यह गर्भाशय को शक्ति देता है तथा योनि को संकुचित करता है. प्रसूता स्त्रियों के लिए यह विशेष लाभकारी होती है. इसके सेवन से प्रौढ़ा महिलाएं भी कांति एवं लावण्ययुक्त होकर  नवयुवती जैसी हो जाती है. इसका सेवन 12 से 24 ग्राम सुबह- शाम गाय के दूध के साथ करना चाहिए.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.

स्रोत- स्त्रीरोग चिकित्सा.

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-: Note :-

The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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