हेल्थ डेस्क- पित्ताशय मे पथरी होने को पित्त की पथरी, गाल स्टोन, बिलिअरी कैलकुलस आदि नामों से जाना जाता है.
पित्ताशय में पथरी की उपस्थिति को पिताश्मरिता कहते हैं. सामान्यतः 5% के पित्ताशय में पथरी की उपस्थिति का अनुमान किया जाता है. एक बड़ी पथरी से लेकर 1400 छोटी-छोटी पथरियां तक पाई गई है.
पीत का पथरी रोग पित्ताशय का सबसे सामान्य रोग है कहते हैं कि पित्त पथरी रोग पित्ताशय के अन्य सभी रोगों की जननी होती है.

पित्ताशय में पथरी होने के क्या कारण है ?
पित्ताशय में पथरी निर्माण का कोई ठोस कारण नहीं ज्ञात हो सका है. फिर भी निम्न कारणों का अनुमान किया जाता है.
1 .पित्ताशय का जीर्णशोथ इसका विशेष कारण प्रतीत होती है.
2 .चयापचयी विकृति- पित्त लवणों एवं कोलेस्ट्रोल का सामान्य अनुपात 25: 1 होता है. यदि किसी प्रकार का चयापचयी विकृति के कारण यह अनुपात 13 : 1 हो जाता है तो कोलेस्ट्रोल का अवक्षेप होकर वह पित्ताशय में पथरी का रूप धारण कर लेता है.
3 .संक्रमण- इन पथरियों के निर्माण में जीवाणु संक्रमण का विशेष स्थान है. पित्ताशय के अंदर जीवाणु श्लेष्मा और पूय ( पीप ) उत्पत्ति करते हैं जिसके चारों ओर कोलेस्ट्रोल तथा अन्य पदार्थ जमा होते रहते हैं और कुछ समय बाद इन पथरियों की उत्पत्ति हो जाती है.
4 .पित्त के मार्ग में किसी प्रकार की रुकावट आने से पथरी बन जाती है.
5 .यह रोग पुरुषों की अपेक्षा उन महिलाओं में ज्यादा होता है जो 40- 45 वर्ष की मोटी शरीर एवं अधिक संतान वाली होती है तथा कार्बोहाइड्रेट तथा वसा ( फैट ) का अधिक सेवन करती है.
6 .पित्त में बिलीरुबिन की मात्रा अधिक होने पर पथरी बन सकती है.
पथरी के प्रकार-
1 .वर्णक पथरी- इस प्रकार की अनियमित आकार वाली पथरियां बहुत छोटी होती है. इस का रंग गहरा हरा अथवा काला सा होता है. यह 5 वर्षों तक अपने स्थान पर बिना कोई लक्षण उत्पन्न किए रहती है.
2 .कोलेस्ट्रोल पथरी- जैसा कि ऊपर में बतलाया जा चुका है कि इस प्रकार की पथरियां कोलेस्ट्रोल तथा लवणों के असंतुलन होने से उत्पन्न होती है. इनका रंग हल्का पीला तथा पीला सफेद होता है. इसकी विशेषता यह है कि यह हल्की होती है और पानी पर आसानी से तैर सकती है. यह गोल तथा अंडाकार होती है.
3 .मिश्रित पथरी- यह दोनों पित्त लवणों तथा कोलेस्ट्रोल दोनों से मिलकर बनती है. यह दो प्रकार की होती है.
1 .एसेप्टिक- इसमें पूय अनुपस्थित रहता है.
2 .सेप्टिक- इस प्रकार की पथरी में पूय तथा जीवाणु दोनों मौजूद रहते हैं.
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पित्ताशय में पथरी होने के लक्षण क्या हैं ?
1 .पित्ताशय में पथरी के पड़े रहने के बावजूद अनेक लोगों में कोई लक्षण उत्पन्न नहीं होती है. उसने तो शव परीक्षा ( post- mortum ) के समय पर ही पथरी मिलती है.
2 .अधिकांश रोगियों में चिरकारी पित्ताशय शोथ का इतिहास मिलता है.
3 .यदि पथरी सामान्य पित्त वाहिनी में पहुंच जाती है तो निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं.
रोगी के कुछ अंतराल पर पित्ताशयशूल का आक्रमण होता रहता है.
शूल ( दर्द ) के समय रोगी में कुछ उत्क्लेश तथा उल्टी की उपस्थिति होती है. रोगी अत्यंत व्याकुल रहता है. कुछ समय बाद दर्द ठीक हो जाता है. पुनः आक्रमण के समय दर्द फिर से शुरू हो जाता है और रोगी में उत्क्लेश तथा उल्टी के लक्षण फिर से मिलने लगते हैं.

रोगी के पित्ताशय का कष्ट आमाशय प्रक्षिप्त हुआ महसूस होता है. भोजन करने के कुछ समय बाद पेट में भारीपन तथा आध्मान के लक्षण हो जाते हैं.
अमाशय प्रदेश में अथवा उसके दाहिनी तरफ और पेट के ऊपर के भाग में हल्का- हल्का दर्द उठने लगता है. रोगी को खट्टी डकार आती है. भोजन के बाद दर्द आदि लक्षण अधिक हो जाते हैं. भोजन में घी, तेल आदि के पकवान अधिक लेने से दर्द ज्यादा हो जाता है.
जब पित्ताशय के पथरी पित्त वाहिनी में प्रवेश कर रुक जाती है तो उस नली पर इसका दबाव पड़ने पथरी शूल का दौरा प्रारंभ हो जाता है इसका दर्द आमाशय प्रदेश में होता है. यह दर्द अत्यंत दारुण होता है.
प्रायः दर्द रात्रि में अकस्मात् शुरू होता है. दर्द उदर के दाहिने यकृत के नीचे पित्ताशय के प्रांत से शुरू होता है और वहां से पीठ में पक्ष के निचले भाग में और दाहिनी तरफ स्कंधफलक तथा उसके शिखर तक फैल जाता है. ठहर- ठहर कर दर्द की लहरें ही प्रतीत होता है. दर्द की तीव्रता के कारण रोगी छटपटाता है. बिस्तर या फर्श पर लोटता है. चखने- चिल्लाने और रोने तक लगता है. ठंडा पसीना आ जाता है. उल्टी होता है. नाड़ी तीव्र और क्षीण हो जाती है. दर्द घंटों तक होता रहता है और अकस्मात् वैसे ही बंद हो जाता है जैसे शुरू हुआ था.
पथरी के पित्त वाहिनी में रुकने से इसके अंदर श्लेष्मिक शोथ हो जाने के कारण कामला ( जौंडिस ) के लक्षण पैदा हो जाते हैं.
रोगी को कभी-कभी बुखार भी हो जाता है. किसी- किसी रोगी को बुखार ठंड एवं कपकपी के साथ चढ़कर 102 डिग्री फारेनहाइट अथवा इससे भी ज्यादा पहुंच जाता है. ऐसी अवस्था में 24 घंटे के अंदर का कामला स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगता है.
यदि पथरी सामान्य पित्त वाहिनी से निकल कर ड्यूडेनम में पहुंच जाती है तो दक्षिण अधःपर्शुका प्रदेश में तीव्र दर्द की उत्पत्ति हो जाती है. यह दर्द कुछ समय के उपरांत शांत हो जाता है. प्रायः अधःपर्शुका प्रदेश में दाब- वेदना मिलती है.
दर्द के समय रोगी की परीक्षा करने पर पेट के दाहिने भाग में विशेषतया पेशियां कड़ी महसूस होती है. उस पर स्पर्शासह्यता भी मिलती है.
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पित्ताशय की पथरी दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय-
1 .दर्द के स्थान पर सेक करें. वमन ( उल्टी ) या विरेचन कराएं.
2 .तत्काल दर्द से राहत पाने के लिए जातिफलादि चूर्ण या अहिफेन के योग या एस्प्रिन आदि देवें तथा तालिमखाना का क्षार 1 ग्राम रात को पानी से दें.
3 .चंद्रप्रभा वटी दो-दो गोली दिन में तीन बार पानी में यवाक्षार और नींबूक्षार या श्वेत पर्पटी 1-1 ग्राम मिलाकर दें. दो-तीन माह तक नियमित चिकित्सा करने से पित्ताशय की पथरी चूर्ण होकर निकल जाती है.
4 .दिन में 3-4 बार 1-1 तोला नीम तेल पिलाएं.
5 . 7 काली मिर्च कूट पीसकर रस निकाल कर दें. 7 दिन में ही पित्ताशय, वृक्क तथा मूत्राशय की पथरी अवश्य निकल जाएगी.
नोट- यदि पथरी नली में अटक जाए तो तुरंत ऑपरेशन कराना चाहिए अन्यथा प्राण घातक हो सकता है.
उपर्युक्त चिकित्सा आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक से ली गई है.
पित्ताशय की पथरी का घरेलू उपाय-
1 .सेब के रस में एक बड़ा चम्मच एप्पल साइडर विनेगर को मिलाएं और इसे पी लें. ऐसा प्रतिदिन सुबह- शाम करने से इसमें मौजूद मैलिक एसिड और विनेगर लीवर को पित्त में कोलेस्ट्रोल बनाने से रोकता है. इसके सेवन से पथरी से होने वाला भयानक दर्द से राहत मिलता है.
2 .पित्ताशय की पथरी को नष्ट करने में नाशपाती एक बहुत ही अच्छा उपाय है क्योंकि इसमें पेक्टिन मौजूद होता है जोकि की पथरी को बाहर निकालने में मददगार होता है.
3 .पित्ताशय की पथरी से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन गाजर, चुकंदर और खीरे का जूस पीएं. इससे आपके पित्त की थैली साफ होती है और उसे ताकत भी मिलती है.
4 .पुदीना में टेरपेन नामक तत्व पाया जाता है जो पित्त की पथरी को गलाने में काफी मददगार होता है. पित्ताशय की पथरी से पीड़ित लोग पुदीने की चाय का सेवन कर सकते हैं.
5 .ईसबगोल की भूसी में घुलनशील फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो पित्त की पथरी के लिए आवश्यक होता है. यह फाइबर का अच्छा स्रोत होने की वजह से पित्त में कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित रखता है. यह पथरी होने से बचाता है इसलिए रात को सोने से पहले ईसबगोल की भूसी का सेवन पानी या दूध के साथ करना फायदेमंद होता है.
6 .नींबू का रस कोलेस्ट्रोल के रोगियों के लिए बहुत ही लाभदायक होता है. यह कोलेस्ट्रोल इकट्ठा होने से रोकता है प्रतिदिन 4 निंबू का रस निकालकर खाली पेट में पिएं. ऐसा 1 सप्ताह तक करने से पित्ताशय की पथरी निकल जाती है.
नोट- पित्ताशय की पथरी बहुत ही दर्दनाक स्थिति को उत्पन्न करने वाली बीमारी है. जिसके कारण पथरी से पीड़ित व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम करने से लाचार हो सकता है. यह समस्या आजकल हर उम्र के व्यक्ति में पाई जाती है इसलिए जैसे ही आपको इस पथरी के संकेत दिखे तो आपको डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए, नहीं तो यह समस्या बढ़ कर घातक हो सकती है. उपर्युक्त चिकित्सा अपनाने या प्रयोग करने से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह एक बार जरूर लें. धन्यवाद.