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गर्भवती महिलाओं को बवासीर रोग होने के कारण, लक्षण और शर्तिया आयुर्वेदिक उपाय एवं बचाव के तरीके

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 1 MinUpdated On April 7, 2022

हेल्थ डेस्क- गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई तरह की शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उन्हें गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ-साथ खुद का ख्याल रखना पड़ता है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई तरह की बीमारियों के होने की भी संभावना बनी रहती है. इन्हीं बीमारियों में से एक है गर्भवती को अर्श ( बवासीर ) रोग होना. हालांकि यह सभी गर्भवती महिलाओं में नहीं होता है बल्कि कुछ महिलाओं में ही देखा जाता है. इस लेख में गर्भवती महिलाओं को बवासीर होने के कारण, लक्षण और शर्तिया आयुर्वेदिक उपाय के बारे में बताने की कोशिश करेंगे.

गर्भवती महिलाओं को बवासीर रोग होने के कारण, लक्षण और शर्तिया आयुर्वेदिक उपाय एवं बचाव के तरीके

गर्भवती महिलाओं को बवासीर होने के कारण-

गर्भवती महिलाओं को पेट की शिराओं पर बढ़े हुए गर्भाशय के दबाव पड़ने के कारण गुदा की शिराएँ फुल जाती है और वह मस्सों के रूप में प्रकट हो जाती है. यदि महिला को पहले से ही बवासीर रोग है तो गर्भावस्था के दौरान यह और भी अधिक बढ़ जाता है. उससे कहीं अधिक मोटे हो जाते हैं जो बहुत ही कष्टदायक होती हैं.

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गर्भावस्था में बवासीर होना इतना आम क्यों हो जाता है ?

साधारण भाषा में कहा जाए तो जब कोई महिला गर्भधारण करती है तो उनके शरीर में ज्यादा रक्त संचालित हो रहा होता है. इस समय प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर रक्त वाहिकाओं की दीवारों को शिथिल बना देता है.

गर्भ में बढ़ते शिशु के वजन से इन भरी हुई नसों पर दबाव पड़ने लगता है. जिससे इनमें सूजन और खिंचाव की संभावना अधिक हो जाती है. यही कारण है कि गर्भवती होने पर महिला को बवासीर और वेरीकोज वेंस होने का खतरा अधिक हो जाता है.

इस दौरान योनि मुंह में भी नसों में सूजन हो सकती है. जिसे वल्वर वेरीकोज वेंस कहा जाता है.

गर्भावस्था के दौरान कब्ज होना आम बात हो जाती है जो बवासीर का कारण बन सकता है क्योंकि कठोर मल होने की वजह से आपको मल त्याग के लिए जोर लगाना पड़ता है जिससे बवासीर हो सकती है.

तीसरी तिमाही तक बवासीर लगभग एक तिहाई गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है. कुछ महिलाओं को बवासीर पहली बार गर्भावस्था के दौरान ही होता है. लेकिन यदि किसी महिला को गर्भ धारण करने से पहले ही बवासीर की शिकायत रहती है तो गर्भावस्था के दौरान इसे बढ़ने की आशंका अधिक हो जाती है.

बवासीर के लक्षण-

1 .बवासीर के अक्सर कोई लक्षण नही होते हैं लेकिन आप अपने गुदा के ठीक अन्दर या बहरी किनारे पर छोटे गांठे के तौर पर महसूस कर सकती हैं.कभी- कभी इनमे दर्द, जलन और टिस महसूस कर सकती हैं.

2 .गुदा के आसपास दर्द, सूजन या जलन होना जिससे मल त्याग करने में कठिनाई होना.

3 .मल त्याग के बाद म्यूकस का बहार निकलना.

4 .मल को नियंत्रित करने में असमर्थ होना जिससे कभी- कभी अंडर वियर का गन्दा हो जाना हो सकती है.

5 .मल त्याग करने के बाद भी मल त्याग करने की इच्छा होना.

6 .नितम्बों के आसपास खुजली होना.

7 .मलद्वार में खुजली खुजली होना.

8 .मल त्याग के बाद लाल चटक रंग के खून आना. जिसे आप गुदा को साफ करने और पोछने पर देख सकती हैं.

बवासीर से गर्भस्थ शिशु को कोई नुकसान नही होता है लेकिन इससे आप असहजता महसूस कर सकती हैं.

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बवासीर दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय-

1 .नीम के बीजों की गिरी मूली के रस में रगड़ का थोड़ा सा कपूर मिलाकर मस्सों पर दिन में दो-तीन बार लगाने और साथ ही सौंफ एवं मिश्री का चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में 250 मिलीलीटर गाय के दूध के साथ पिलाने से बहुत जल्दी इस समस्या से राहत मिलेगी.

2 .भांग को पानी में पिसकर गोली बना लें और गुदा पर बांधे, साथ ही मक्खन 12 ग्राम, नागकेसर 2 ग्राम, मिश्री 6 ग्राम इन सबको मिलाकर रोगी को सेवन करावें. इस चिकित्सा क्रम से गुदा में कठोरता, दर्द, शोथ एवं जलन तुरंत दूर हो जाती है.

3 .गुलकंद 12 ग्राम रात के समय दूध के साथ सेवन कराएं तथा दिन में अफीम को मलहम में मिलाकर मस्सों पर लगा लें. इससे बवासीर के मस्सों में हो रहे जलन व दर्द से राहत मिलेगा.

4 .सौंफ, जीरा, धनिया इनका क्वाथ बनाकर 50 मिलीलीटर क्वाथ में 12 ग्राम घी मिलाकर पिलाने से खुनी बवासीर में अच्छा लाभ होता है.

5 .कमल केसर 3 ग्राम, शहद 3 ग्राम, मक्खन 3 ग्राम, मिश्री 3 ग्राम, नागकेसर 3 ग्राम- इन्हें मिलाकर 15 गोलियां बना लें. अब इसमें से एक- दो गोली सुबह- शाम महिला को सेवन करावें तथा दर्द वाले हिस्से पर महाकासीसादी तेल का प्रयोग कराएं. इससे बवासीर के मस्सों में हो रहे दर्द एवं जलन आराम मिलेगा.

6 .इस रोग में महिला के मल में काफी शुष्कता और कठोरता न रहे मल नरम एवं बिना दवाव के निकल जाए ऐसा प्रयत्न करना चाहिए. इसके लिए ईसबगोल की भूसी को बादाम तेल में चिकना करके रात को सोने से पहले पानी के साथ सेवन कराएं.

7 .वायु का अवलोकन करने के लिए लवणोंत्तम चूर्ण अथवा मरिचयादि चूर्ण देना चाहिए. यदि आध्मान एवं मलबंध अधिक हो तो नाराच चूर्णदें. आध्मान की अधिकता में चिंतामणि रस अधिक फायदेमंद है.

8 .यदि बवासीर के मस्सों से रक्त अधिक आ रहा हो तो नागकेसर अथवा केसर का चूर्ण 3 ग्राम दही की मलाई एवं चीनी के साथ सेवन कराने से रक्त आना बंद हो जाता है.

9 .महिला को पथ्य में गेहूं की रोटी, मूंग की दाल, हर साग, मूली, घी, दूध, मक्खन, मट्ठा आदि का सेवन कराने से कब्ज नहीं होगा और बवासीर से आराम मिलेगा.

बवासीर का शर्तिया आयुर्वेदिक उपाय-

1 .कचनार गुग्गुल 2 वटी सुबह- शाम ठंढे पानी के साथ सेवन करें.

2 .गंधक रसायन वटी 1 वटी सुबह- शाम ठंढे पानी के साथ सेवन करें.

3 .त्रिफला चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में एक चुटकी खाने का सोडा मिलाकर रात को सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ सेवन करें.

उपर्युक्त तीनों आयुर्वेदिक औषधियों का नियमित सेवन करने से बादी एवं खुनी दोनों तरह के बवासीर मात्र तीन महीने में जड़ से ख़त्म हो जाता है. यह अजमाया हुआ आयुर्वेदिक इलाज है.

गर्भावस्था में बवासीर होने से किस तरह बचा जा सकता है ?

1 .कब्ज से करें बचाव-

कब्ज से बचाव करने के लिए डाइट में फाइबर से भरपूर आहार का सेवन करें. जिसमें पर्याप्त मात्रा में साबुत अनाज, राजमा, लोबिया, बींस, फल और सब्जियां आदि शामिल हो. प्रतिदिन लगभग 8 से 12 गिलास पानी पिएं और नियमित व्यायाम करें. यदि आपको पहले से कब्ज की समस्या है तो आपको फाइबर युक्त अनुपूरक ईसबगोल की भूसी, मल को नरम बनाने वाले स्टूल सॉफ्टनर लेने के बारे में डॉक्टर से पूछ सकती हैं.

2 .मल त्याग की इच्छा हो तो न रोके-

मल त्याग की इच्छा होने पर इंतजार ना करें बल्कि तुरंत शौचालय जाएं और शौच करते समय जोर न लगावें.

3 .शौचालय में देर तक न बैठे-

जरूरत से ज्यादा समय के लिए शौचालय में न बैठे, इससे गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ता है.

4 .प्रतिदिन करें व्यायाम-

प्रतिदिन कीगल व्यायाम करना लाभदायक होता है. इससे गुदा क्षेत्र में रक्त संचरण बढ़ता है और उसके आसपास की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है जिससे बवासीर होने की संभावना बहुत कम हो जाती है. यह योनि और मूत्र मार्ग के आसपास की मांसपेशियों को भी मजबूत और टोन करता है. इससे आपके शरीर को प्रसव के बाद उबरने में भी मदद मिल सकती है.

5 .ज्यादा लंबे समय तक ना तो बैठे और ना ही खड़े रहे-

अगर आपको ऑफिस में डेस्क पर बैठे रहना होता है तो लगभग हर आधे घंटे में कुछ मिनटों के लिए उठें और आस- पास चलें- फिरें. घर पर सोते समय, पढ़ते समय या टीवी देखते हुए करवट लेकर लेटें इससे गुदा क्षेत्र की नसों से दबाव हटता है और शरीर के निचले हिस्सों से ज्यादा रक्त वापिस आता है.

6 .उकड़ू बैठे-

यदि आपके घर में भारतीय शैली का शौचालय है तो मल त्याग के लिए इसी का इस्तेमाल करें. उकडू बैठने से मल त्याग आसानी से होती है और जल्दी निकलने में मदद मिलती है और इस तरह गुदा क्षेत्र की रक्त वाहिकाओं पर दबाव कम पड़ता है. यदि आपके घर में भारतीय शैली का शौचालय नहीं है तो आप पश्चिमी शैली शौचालय पर बैठते हुए अपने पैर को किसी छोटे स्टूल पर रख सकती हैं ताकि आपकी घुटने आपकी नाभि के स्तर से ऊपर हो.

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7 .पेरीनियम क्षेत्र की करें मालिस-

मल त्याग करने से पहले आप अपनी योनि और गुदा के बीच के मांसल स्थान को यानी पेरीनियम को अपनी अंगुलियों से दबा सकती हैं. इससे उत्तेजित होकर एक स्वाभाविक क्रिया होती है जो कि गुदा में मसल टोन बढ़ाती है और मल त्याग को आसान बना सकती है.

7 .पीठ के बल न सोयें-

पीठ के बल सोने से गर्भाशय के नीचे की नसों पर दबाव पड़ता है इसलिए पीठ के बल सोने से परहेज करें.

विशेष ज्ञातव्य- यह रोग जब गर्भवती महिला को होता है तो प्रसव के बाद अपने आप ही दूर हो जाता है. ऐसी माताओं में जो अनेक बार प्रसव चुकी है उनमे बवासीर रोग अवश्य ही मिलता है. गर्भकाल तक यह विकास पर्याप्त रूप में रहता है इसके बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है ऐसे तो घरेलू नुस्खों एवं आयुर्वेदिक औषधियों के सेवन से किसी प्रकार का नुकसान नही होता है फिर भी किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.

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The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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