हेल्थ डेस्क– फाइलेरिया रोग को फिलपाँव, श्लीपद, हांथीपाँव, हस्तिचर्मता, श्लीपद ज्वर, हाथीपगा, Elephantiasis आदि नामों से जाना जाता है. आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे- फाइलेरिया रोग क्या है ? फाइलेरिया रोग होने के कारण क्या है ? फाइलेरिया रोग के लक्षण क्या है? और ठीक करने के आयुर्वेदिक उपाय इत्यादि.

फाइलेरिया रोग क्या है ? What is Filariasis?
फाइलेरिया एक जीवाणुजन्य संक्रमण है जो क्युलेक्स मच्छर के दंश द्वारा शरीर में फाइलेरिया बैंक्रफ्टाई के प्रविष्ट होने से उत्पन्न होता है. इस रोग के शुरुआत में हाथ- पैरों तथा वृषणों में सूजन और लालिमा उत्पन्न हो जाती है. ठंढ लगकर 15 दिनों पर एक बार बुखार आता है.रक्त में इसकी प्रविष्टि शाम के 6 बजे से शुरू होकर आधी रात तक समस्त शरीर में फ़ैल जाता है.
जिसके फलस्वरुप लसिका वाहिनियों में रुकावट होकर लटकने वाले अंगों में लसिका जमा हो जाता है. पैरों, अण्डकोषों, हाथों में विचित्र सूजन एवं त्वचा की स्थूलता, जो धीरे- धीरे बढ़कर स्थायी हो जाता है और बाद में पुराना होकर पैर और हाथ सूजकर हाथी के पैर के समान मोटा हो जाता है.
फाइलेरिया रोग होने के क्या कारण है ? What are the causes of filarial disease?
क्युलेक्स मच्छर के दंश द्वारा शरीर में फाइलेरिया बैंक्रफ्टाई नामक कृमि से रोग की उत्पत्ति होती है.
फाइलेरिया किस उम्र के लोगों को अधिक होता है?
फाइलेरिया प्रायः मध्यम उम्र वाले लोगों में अधिक देखने को मिलता है. यह महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है. यह रोग भारत के समुद्रवर्ती क्षेत्रों में जैसे असम, बंगाल. महाराष्ट्र, तथा तमिलनाडु आदि में अधिक देखा जाता है. बिहार तथा पूर्वी उतरप्रदेश के कई जिलों में भी अधिक देखने को मिलता है. इसका प्रकोप पूर्णिमा और अमावस्या को अधिक होता है.
फाइलेरिया रोग के लक्षण क्या है ? What are the symptoms of Filariasis?
फाइलेरिया के कारण विशिष्ट प्रकार के विकृतिजन्य निम्न लक्षण उत्पन्न होते है.
1 .रोगी को ठंढ लगकर बुखार आता है तथा बुखार 101 से 104 डिग्री फारेनहाईटतक रहता है.यह सन्तत या अर्धविसर्गीय रूप होता है.
2 .बुखार के आक्रमण के कुछ घंटे बाद शरीर के किसी विशेष भाग में दर्द के लक्षण उत्पन्न होते हैं.
3 . शाखाओं में दर्द तथा लसग्रंथियों की वृद्धि होती है यह वृद्धि वंक्षण, कक्षा तथा जांघ एवं प्रकोष्ठ के भीतरी भाग में होती है.
4 .इसके विपरीत कुछ व्यक्तियों में बुखार संताप की सीमा तक पहुंच कर गंभीर विषमयता के लक्षण पैदा हो जाती हैं.
5 .रोगी में मलेरिया के समान अधिक ठंड और कंप होता है.
6 .बुखार कम होने पर रोगी को बहुत पसीना आता है. प्रायः 3 से 5 दिन के अंदर बुखार खुद ही शांत हो जाता है.
7 .द्वितीय संक्रमण की स्थिति में विकृत भाग में विद्रधि उत्पन्न हो जाती है. जिससे बुखार एक लंबे समय तक चलता रहता है. कुछ रोगियों में कई महीनों तक जीर्ण बुखार के लक्षण मिलते रहते हैं.
8 .इसमें टांगों के ऊपर की त्वचा में सूजन होकर उसका रंग गहरा हो जाता है. आक्रांत टांग दुगनी- तिगुनी मोटी हो जाती है लेकिन वहां पर अंगुली का दबाव डालने पर गड्ढे नहीं पड़ते हैं.
9 .लसिकावाहिनियों के फूलने से कई जगह उभार बन जाते हैं जिससे दूधिया जल के सदृश तरल बहता है.
10 .रोग का प्रभाव अंडकोष में होने से अंडकोष 40 किलोग्राम तक भारी हो सकता है.
11 .रोग का आक्रमण बार-बार होता रहता है. प्रत्येक आक्रमण के बाद टांग पहले की अपेक्षा स्थूल होती जाती है.
नोट- फाइलेरिया में बुखार के अनेक रूप मिल सकते हैं जैसे प्रतिदिन बुखार का कम या अधिक होना, लसवाहिनी शोथ के कारण बुखार का निरंतर बने रहना, विद्रधि के कारण बुखार के प्रारंभ में जाड़ा लगना और बाद में पसीना आने से बुखार का कम हो जाना, बुखार प्रायः सूजन या अनुर्जता के कारण होता है.
फाइलेरिया का अनुमानित निदान कैसे करें ? How to make an approximate diagnosis of filariasis?
1 .फाइलेरिया प्रधान स्थानों में निवास करना.
2 .ठंड लगकर बुखार का आक्रमण होना.
3 .अमावस्या या पूर्णिमा के समय आक्रमण अधिक होना.
4 .बुखार आक्रमण के समय शरीर के किसी अंग में विशेष दर्द होना तथा पैरों में सूजन की उत्पत्ति होना.
5 .बुखार के बाद किसी विशेष अंग में सूजन का होना.
6 .समवृद्ध लसिका वाहिनी अथवा लस ग्रंथियों की वृद्धि एवं दर्द.
7 .पसीने के साथ बुखार उतर जाना इत्यादि लक्षणों के आधार पर फाइलेरिया का अनुमान किया जाता है.
फाइलेरिया रोग का सामान्य चिकित्सा- General therapy of filarial disease-
1 .रोगी को पूर्ण विश्राम जरूरी है.
2 .आक्रांत भाग को तकिया पर ऊंचा करके रखें तथा गर्म रुई से सिकाई करें अथवा लैंड लोशन में कपड़ा भिगोकर सूजन के स्थान पर रखें.
3 .कान, नाक, गला, गर्भाशय आदि अंगों की पूर्णतया सफाई करें.
4 .रोगी को काफी गर्म किया हुआ पानी पिलायें तथा गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर शरीर को कई बार पोछते रहे.
5 .कोष्ठ की सुधि बहुत जरूरी है इसलिए पेट साफ होने वाले आहार दें.
6 .बुखार के समय रोगी का चलना- फिरना तथा स्नान करना पूर्णतया बंद रखें.
7 .अमावस्या, पूर्णिमा, ग्रहण तथा वर्षा के समय रोग का आक्रमण तीव्र स्वरूप का होता है. अतः ऐसे समय नियमित जीवन, लघु आहार तथा पेट साफ रखने की उचित व्यवस्था करें.
8 .बुखार उतरने के बाद नीचे से ऊपर की ओर सूखे कपड़े से शरीर को मलना लाभदायक होता है.
9 .बुखार मुक्ति के बाद चलते- फिरते समय पैरों तथा वृषणों पर पट्टी बांधनी चाहिए. साथ ही रात्रि में सोते समय इनके नीचे तकिया रखना चाहिए.
10 .प्रसार की अवस्था में केवल लाक्षणिक चिकित्सा की जाती है.
फाइलेरिया रोग का आयुर्वेदिक उपाय- Ayurvedic remedy for filarial disease-
1 .फाइलेरिया रोग में लंघन, विरेचन ( पेट साफ रखना ) रक्तशोधन ( खून की सफाई ) सेंक, लेप, स्वेदन और कफ नाशक चिकित्सा करनी चाहिए.
2 .धनुष्क, एरंड, निर्गुन्डी, पुनर्नवा और सहजन इनको पीसकर लेप लगाना चाहिए.
3 .हर्रे, बहेड़ा, आंवला, पुनर्नवा, हल्दी, पीपल सभी को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण करके 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सेवन करें.
4 .अमृतादि गुग्गुल 3-3 गोली सुबह- शाम पानी के साथ सेवन करें.
5 .चेतकी चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में सुबह 10 ml गौमूत्र के साथ सेवन करें.
नोट- उपर्युक्त आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन नियमित 6 माह से 1 साल तक करने से पुराना फाइलेरिया भी ठीक हो जाता है.
स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक.
फाइलेरिया का घरेलू उपाय- Home remedies for filariasis
1 .लौंग-

फाइलेरिया के उपचार के लिए लौंग बहुत ही असरदार घरेलू नुस्खा है. इसमें मौजूद इंजाइम परजीवी के पनपते ही उसे नष्ट कर देते हैं और बहुत ही प्रभावी तरीके से परजीवी को से नष्ट कर देते हैं इसलिए फाइलेरिया से ग्रसित व्यक्ति को लौंग से तैयार चाय का सेवन करना लाभदायक होता है.
2 .अदरक-

फाइलेरिया से निजात पाने के लिए सूखे अदरक का पाउडर या सोठ का प्रतिदिन गर्म पानी के साथ सेवन करना लाभदायक होता है. इसके सेवन से शरीर में मौजूद परजीवी नष्ट होते हैं और मरीज को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है.
4 .शंखपुष्पी और सोठ-
शंखपुष्पी और सोठ के पाउडर में रॉकसाल्ट मिलाकर एक चुटकी प्रतिदिन गर्म पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने की फाइलेरिया में लाभ होता है.
5 .लहसुन-

लहसुन एंटीबायोटिक गुणों से भरपूर होता है. इसलिए यह परजीवी को मारने में सक्षम होता है. फाइलेरिया से ग्रसित व्यक्ति को प्रतिदिन लहसुन का सेवन करना फायदेमंद होता है इसके लिए सुबह खाली पेट लहसुन की एक- दो कलियां चबाकर पानी के साथ खाना चाहिए.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है किसी बीमारी के इलाज का विकल्प नहीं है. इसलिए किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.