वृक्क ( किडनी ) में पथरी होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार

रोग परिचय- गवीनी ( ureter ) पथरी आदि शल्य प्रवेश करने से कमर में एक तरफ अकस्मात तेज दर्द शुरू होकर जननेंद्रिय की ओर जाती है. कभी-कभी यह दर्द संगवहन के परिणाम स्वरुप स्वस्थ वृक्क में भी प्रतीत होती है. इसमें बहुमूत्रता, वमन, कंप, अत्यधिक पसीना, स्तब्धता ( shock )व निपात आदि लक्षण होते हैं. जिस तरफ के वृक्क में बीमारी होती है यह दर्द उस तरफ के वृक्क से लेकर उस तरफ के पैर के तलवा तक फैल जाता है.

वृक्क ( किडनी ) में पथरी होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार

यह अचानक उसने वाला दर्द होता है जो नीचे पेडू व मूत्राशय से आरंभ होकर कमर में पीछे को व आगे को उस तरफ के वृक्क कोष तक पहुंचता है. यह दर्द कुछ समय से लेकर कुछ घंटो तक रहता है. इसमें दर्द इतना ज्यादा होता है कि मरीज बिस्तर में एक करवट से दूसरी करवट बदलता रहता है.

वृक्क में पथरी होने के कारण-

वृक्क पथरी- यह इस रोग का प्रधान कारण है.

1 .चयापचयी में परिवर्तन.

2 .खून या पीप का थक्का बनना.

3 .संक्रमण और मूत्र मार्ग में अवरोध.

4 .इथीनोकोकस के सिस्ट.

5 .यूरेटर के अंकुरार्बूद के टुकड़े.

वृक्क में पथरी होने के लक्षण-

  • जब पथरी वृक्कों से निकलकर यूरेटर यानी मूत्र प्रणाली में जाने लगती है तो उस समय ऐठन युक्त तीव्र दर्द होता है. कमर में दर्द होता है. जिसकी टिस अंडकोषों और जांघों तक जाती है. रक्त मिश्रित पेशाब बार- बार आता है.
  • पथरी निकलने पर अत्यधिक दर्द होता है. जिससे रोगी दर्द से तड़पने लगता है.
  • दर्द का आक्रमण अकस्मात होता है और जिस तरफ के वृक्क में पथरी होता है उसी तरफ की कमर में शूल होता है.
  • आक्रमण के समय कभी-कभी शरीर कांपने लगता है. मिचली एवं बमन उपस्थित रहता है. रोगी को काफी पसीना आता है. नाड़ी की गति तीव्र और क्षीण होती है. सांसे तेज चलने लगती है. कभी-कभी बुखार 100 से 102 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाता है.

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शरीर की स्थिति-

दर्द के कारण रोगी अत्यधिक बेचैन रहता है. वह अपने शरीर को दोहरा किए हुए पड़ा रहता है अथवा विभिन्न प्रकार से अपने शरीर को तोड़ता- मरोड़ता रहता है.

पेशाब की स्थिति-

दर्द के समय रोगी को बार- बार पेशाब की प्रवृत्ति होती है. लेकिन पेशाब बूंद- बूंदकर थोड़ी मात्रा में आता है. साथ ही उसमें रक्त भी उपस्थित रहती है. कभी-कभी मूत्र के साथ पथरी के टुकड़े भी निकलते हैं. कभी मूत्र अधिक मात्रा में आता है तो कभी बिल्कुल बंद भी हो जाता है.

शूल की अवधि-

आवेग या दौरे की अवधि कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक की होती है. यह भी कभी-कभी एक-दो दिन तक भी रह सकती है.

अवधि के अनुसार दर्द की प्रकृति-

जब शूल के दौरे की अवधि कम होती है तब शूल की तीव्रता एक सी रहती है. लेकिन जब आवेग दीर्घकालीन होता है तब शूल बीच-बीच में अंशतः शांत होकर पुनः होने लगता है.

अन्य लक्षण-

शूल के समय परीक्षा करने पर कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता है. किसी किसी रोगी में वृक्क स्पर्शलभ्य मिलता है और उसमें स्पर्शा सह्यता रहती है.

दुबले-पतले रोगियों में यूरेटर में टटोलने से पथरी महसूस होती है.

दौरा समाप्त होने पर असह्य पीड़ा समाप्त हो जाती है. लेकिन कमर में थोड़ा- थोड़ा दर्द कुछ समय तक बना रहता है.

कुछ रोगियों में दर्द के आवेग बार-बार आया करते हैं. ऐसी स्थिति में यह पता नहीं चलता है कि पथरी कहां चली गई और कहां पर स्थित है. केवल इतना अनुमान किया जा सकता है कि रिनल पेल्विस में कोई बड़ी पथरी है जो बार-बार नीचे की ओर खिसक यूरेटर के मुख में अटककर शूल पैदा करती है और मोटाई के कारण नीचे आने में असमर्थ होती है.

वृक्क पथरी का संपूर्ण लक्षण एक दृष्टि में-

  • कमर व पेडू में अचानक दर्द जो जांघ व वृषण कोष की तरफ जाता है.
  • दर्द तेज होने के कारण मरीज बिस्तर में उलट-पुलट करता रहता है.
  • दर्द कुछ समय से कुछ घंटो तक रहता है.
  • कभी-कभी ठंड के साथ बुखार हो जाता है.
  • जी घबराता है और उल्टी एवं पसीना आता है.
  • चेहरे का रंग पीला हो जाता है और नाड़ी तेज चलती है.
  • पेशाब बूंद- बूंदकर दर्द के साथ आता है या रुक जाने पर पेट में भारीपन एवं दर्द बढ़ जाता है.
  • मूत्र में कास्ट, रक्त आदि उपस्थित मिलते हैं. पाशर्व छूने से होता है.

वृक्क में पथरी होने की सही अनुमान-

1 .शूल के दौरे का पूर्ण इतिहास, स्थान के अनुसार शूल की प्रकृति, वृषण की सूजन, बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा होना, मूत्र की अल्पता तथा उसमें रक्त की उपस्थिति तथा दौरे के पश्चात पेशाब में पथरी का निकलना आदि लक्षणों के आधार पर रोग का अनुमान किया जाता है.

आयुर्वेद के अनुसार संभोग करने के नियम 

आंत्र पुच्छ प्रदाह एवं पीत शूल की आशंका होना-

गुर्दे का शूल होने पर अक्सर पीत शूल अथवा अन्य पुच्छ प्रदाह की आशंका होती है. इस संदर्भ में ध्यान देने योग्य तथ्य है कि यदि गुर्दे का दर्द होगा तो उसके साथ बुखार भी हो सकता है अथवा नहीं भी हो सकता है. यदि रोगी पीतशूल का शिकार है तो पीत शूल के साथ में पीलिया रोग के लक्षण भी मौजूद पाए जाते हैं. आंत्रपुच्छ प्रदाह ( अपेंडिसाइटिस ) में रोगी को बुखार निश्चित होता है. कहने का तात्पर्य यह है कि यदि रोगी गुर्दे के शूल से पीड़ित है तो उसको पीलिया ( जॉन्डिस ) अथवा ज्वर आदि के लक्षण कदापि नहीं होते हैं. संभव है बुखार हो अथवा ना हो गुर्दे के शूल में इस तथ्य की ओर ध्यान देने से भ्रम अथवा किसी प्रकार की आशंका निर्मूल हो जाती है.

2 .पेशाब परीक्षा-

माइक्रोस्कोप से पेशाब परीक्षा करने पर मूत्र में आरबीसी ( RBC ) की उपस्थिति मिलती है.

यूरिक एसिड तथा क्रिस्टल्स की उपस्थिति पथरी का सूचक लक्षण है.

पेशाब में पथरी प्राप्त होने पर आसानी से निदान हो जाता है.

3 .एक्स-रे परीक्षा-

एक्स-रे परीक्षा से पथरी की उपस्थिति का पता चलता है. यह परीक्षा रोग निदान में पर्याप्त सहायक होती है. एब्डोमन का एक्स-रे करना पड़ता है.

4 .ब्लड कैलशियम ऐस्टीमेशन-

इस परीक्षा में ब्लड कैल्शियम फास्फोरस का परिमापन किया जाता है. रक्त में चूने की मात्रा 11 मिलीग्राम तथा फास्फोरस की मात्रा 3 मिलीग्राम से कम मिलने पर पैरा थायराइड ग्लैंड के अर्बुद का संदेह दृढ हो जाता है.

पूर्वानुमान-

यदि नियमित उचित पथ्य- पालन तथा औषधी चिकित्सा ना की जाए तो पथरी बराबर बनी रहती है. एक पथरी के रहते ही दूसरी पथरी तैयार हो जाती है. जिससे वृक्कशूल का पुनरावर्तन होता रहता है.

छोटी पथरिया बिना कष्ट पहुंचाए पेशाब के साथ बाहर निकल जाती है. लेकिन बड़ी पथरिया बहुत साल तक वृक्क अलिंद में पड़ी- पड़ी रोगी को कष्ट देती रहती है.

वृक्क पथरी तत्काल घातक नहीं होती है. लेकिन जब उसके कारण वृक्क खराब हो जाते हैं और उसमें उपसर्ग यानी इंफेक्शन हो जाता है तब वृक्क की कार्य क्षमता तथा पेशाब बिष्मयता के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती है.

कभी-कभी गुप्त मूत्र विश मेहता के कारण रोगी की मृत्यु स्कूल के बैग के समय ही हो जाती है

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वृक्क की पथरी का आयुर्वेदिक एवं उपचार-

  • रोग के मूल कारणों को दूर करें.
  • दर्द दूर करने के लिए रोगी को कमर तक गर्म टब के जल में बैठाएं.
  • कमर पर बिजली की मशीन से सिकाई करें.
  • दर्द के बैग के समय रोगी को बिस्तर पर लिटायें. दर्द कम करने के लिए गर्म पानी में टर्पेन्टाइन आयल की कुछ बूंदे डाल कर तोलिया भिगोकर गर्म सेक करें. तीसी की गरम-गरम पुल्टिस लगाई जा सकती है अथवा गर्म पानी की बोतल से सिकाई की जा सकती है.
  • यदि रोगी को अमूत्रता ना हो तब उसे अधिक से अधिक जल पिलाना चाहिए.
  • यदि पथरी कुछ समय पश्चात् मूत्र संस्थान से ना निकल पाए अथवा यूरेटर में फंस जाए तो उसे तत्काल ऑपरेशन द्वारा निकालना जरूरी हो जाता है.
  • रोगी को किसी भी हालत में मांसाहार भोजन नहीं देना चाहिए.
  • शरीर को कम से कम हिलाया- डूलाया जाना चाहिए. घोड़े की सवारी तथा साइकल पर उबड़- खाबड़ जगह में चलने से बचना चाहिए.
  • शंख भस्म और हजरत यहूद भस्म बराबर मात्रा में पानी के साथ 4-4 रति की गोली बनाकर दो-दो गोली और चंद्रप्रभा वटी दो-दो गोली दिन में तीन- चार बार पानी या सोडे के साथ सेवन कराएं या लिंग विरेचन चूर्ण 1 ग्राम लवण भास्कर चूर्ण 1 ग्राम सज्जीक्षार आधा ग्राम यवाक्षार आधा ग्राम और गोखरू गूगल दो-दो गोली दिन में तीन- चार बार गोखरू हिम में न्रिसार डालकर उसके साथ सेवन करें.
  • बमन हो तो आलूबुखारा या बर्फ चूसना चाहिए या टाटरी 1 ग्राम 20 मिलीलीटर पानी में डालकर थोड़ा-थोड़ा चम्मच से पीना चाहिए. पेडू के ऊपर कलमी सोडा का लेप लगाना चाहिए. कटीस्नान, नीरूह बस्ती, विरेचन देना भी उत्तम है.
  • गोखरू का चूर्ण 2 ग्राम मधु चाट कर ऊपर से बकरी का दूध दिन में दो बार पिएं.
  • दर्द अधिक हो तो अहिफेन युक्त गोलियां या जातिफलादि चूर्ण सेवन करें.
  • यवाक्षार या नीम की छाल क्षार न्रिसार चंदन के शरबत के साथ या कलमी शोरा 1-1 ग्राम दिन में शरबत या पानी के साथ लेने से भी पथरी तुरंत निकल जाती है. किंतु इससे पुरुषत्व कम हो जाता है.
  • गोखरू गूगल, चंद्रप्रभा वटी, चंद्रकला रस, नारियल का पानी, जौ का पानी, तरबूज, ककड़ी, बालमखीरा आदि पदार्थ सेवन करें.
  • टमाटर, पालक, आलू और बेसन से बने पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करें.
  • ऊपर बताई गई चिकित्सा में से किसी एक का नियमित दो-तीन महीना तक सेवन करते रहने से पथरी अवश्य निकल जाती है और फिर दोबारा नहीं होती है.

नोट- यदि पथरी बहुत बड़ी हो गई हो असाध्य पीड़ा हो तो ऑपरेशन कराकर इसे निकलवा देना चाहिए. लेकिन ऑपरेशन के बाद भी चंद्रप्रभा वटी 3-3 गोली सुबह- शाम और रात को गोखरू गूगल 3-3 गोली 1 महीने तक सेवन करना चाहिए. क्योंकि कई बार ऑपरेशन के बाद भी पथरी हो जाती है. लेकिन इसके सेवन से दोबारा पथरी होने की संभावना नहीं रहती है.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.

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I am an Ayurveda doctor and treat diseases like paralysis, sciatica, arthritis, bloody and profuse piles, skin diseases, secretory diseases etc. by herbs (Ayurveda) juices, ashes.

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