गर्भवती महिलाओं का पेट दर्द दूर करने के घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

हेल्थ डेस्क- गर्भावस्था शुरू होते ही महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव और गर्भाशय का विस्तार होता हैै. इसमें शरीर के लिगामेंट फैलते हैं. ऐसेे में पेट दर्द होना स्वाभाविक भी है. हालाँकि पेट दर्द होने के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं जिसे गंभीरता से लेना आवश्यक है क्योंकि इसके कारण ग्राभ्स्राव या गर्भपात तक भी हो सकता है. इस लेख में गर्भावस्था में कब्ज के कारण होने वाले पेट दर्द से छुटकारा पाने के घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय का वर्णन करेगे.

गर्भवती महिलाओं का पेट दर्द दूर करने के घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

साधारण रूप से अनेक गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान कभी-कभी मलावरोध ( कब्ज ) आदि की समस्या हो जाती है. ऐसे में पेट दर्द होना आम बात हो जाता है. यहां तक कि कभी-कभी पेट दर्द भयंकर रूप धारण कर लेता है. इस प्रकार कई बार गर्भावस्था में पेट दर्द उत्पन्न होने के कारण गर्भस्राव एवं गर्भपात होने की संभावना अधिक हो जाती है. इसलिए यदि गर्भवती महिला को कब्ज की समस्या हो या पेट दर्द हो तो इसे तुरंत दूर करने का उपाय करना चाहिए.

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गर्भवती महिला का पेट दर्द दूर करने के घरेलू एवं आयुर्वेदिक-

1 .यदि गर्भवती महिला को पेट दर्द हो तो ऐसी चीजों का सेवन कराना चाहिए जिससे उसे कब्ज ना होने पाए.

2 .शंख भस्म 3 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ सुबह-शाम सेवन कराने से लाभ होता है.

3 .शंख वटी की 2 गोलियां खिलाने से अच्छा लाभ होता है.

4 .अजवाइन का चूर्ण 6 ग्राम अथवा अजवाइन का अर्क गर्म पानी में मिलाकर सेवन करने से पेट दर्द में अच्छा लाभ होता है.

आयुर्वेद विशेषज्ञों ने गर्भावस्था के दौरान होने वाले पेट दर्द की चिकित्सा मासानुक्रम से बतलाई है. जिसे उन्होंने गर्भशूल के नाम से दर्शाया है जो इस प्रकार है-

1 .प्रथम महीने में यदि गर्भवती महिला को गर्भशूल हो तो ऐसी अवस्था में श्वेत चंदन, शतावरी, सौंफ और मिश्री सभी को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर गाय के दूध में मिलाकर पिलाना चाहिए.

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अथवा काला तिल, पद्मकाष्ठ, कमलकंद एवं साठी चावल- इन सबको बराबर मात्रा में लेकर गाय का दूध, मिश्री एवं शहद मिलाकर पिलावें. साथ ही भोजन में केवल गाय का दूध ही दें.

2 .द्वितीय महीने में यदि गर्भवती महिला को गर्भशूल हो तो सिंघाड़ा, कमलकंद, कसेरू- सभी को बराबर मात्रा में लेकर चावल के पानी के साथ पिलाने से दर्द नष्ट होकर गर्भ स्थिर रहता है.

3 .तृतीय महीने में यदि गर्भवती महिला को गर्भशूल हो तो आंवला, काकोली, क्षीर काकली- इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर गुनगुने पानी के साथ पिलाने से गर्भशूल नष्ट होता है. भोजन में केवल महिला को दूध- भात देना चाहिए.

अथवा पद्मकाष्ठ, कमलकंद, कमल पुष्प एवं कूठ- बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर को दूध एवं मिश्री के साथ देने से गर्भशूल नष्ट होता है.

4 .यदि चौथे महीने में गर्भवती को गर्भशूल उत्पन्न हो तो कमल, कमलकंद, गोखरू और छोटी कटेरी बराबर मात्रा में लेकर पीस लें. अब महिला की जठराग्नि के अनुसार गाय के दूध के साथ इस औषधि का सेवन कराने से निश्चय दर्द दूर होता है.

अथवा गोखरू, छोटी कटेरी, सुगंध बाला, नीलोत्पल इन्हें बराबर मात्रा में लेकर गाय के दूध के साथ पीसकर महिला को पिलाने से गर्भशूल नष्ट होता है.

5 .यदि पांचवें महीने में गर्भवती को गर्भशूल उत्पन्न हो जाए तो नीलकमल, क्षीर काकोली को बराबर मात्रा में लेकर ठंडे पानी में पीसकर गाय के दूध के साथ खिलाने से गर्भशूल नष्ट होता है.

6 .यदि छठे महीने में गर्भवती महिला को पीड़ा हो तो बिजौरा के बीज, प्रियंगु पुष्प, कमल पुष्प एवं चंदन इन को बराबर मात्रा में लेकर गाय के दूध के साथ पीसकर पिलाने से गर्भशूल नष्ट होता है.

अथवा चिरौंजी, मुनक्का, धान की खील- इन्हें बराबर मात्रा में लेकर ठंडे पानी में पीसकर सेवन कराने से गर्भशूल नष्ट होता है. साथ ही ठंडे पानी एवं ठंढे आहार का सेवन कराना चाहिए.

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7 .यदि सातवें महीने में महिला को गर्भशूल हो तो शतावरी और कमलकंद बराबर मात्रा में जल के साथ पीसकर गाय के दूध के साथ सेवन कराना चाहिए.

8 .यदि आठवें महीने में गर्भशूल हो तो पलाश के कोमल पत्ते लेकर ठंडे पानी में पीसकर पिलाने से गर्भशूल नष्ट होता है. धनिया को चावल के पानी के साथ पीसकर पिलाने से भी लाभ होता है. साथ ही गर्भ स्थिर रहता है.

9 .यदि नौवें महीने में गर्भशूल पैदा हो तो अरंड मूल और काकोली को बराबर मात्रा में लेकर ठंडे पानी में पीसकर महिला को पिलाने से गर्भशूल नष्ट होता है.

10 .यदि दसवें महीने में गर्भशूल उत्पन्न हो जाए तो नीलकमल, मुलेठी, मूंग इन्हें बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर गाय के दूध एवं मिश्री के साथ पिलाने से गर्भशूल नष्ट होता है.

11 .कभी-कभी गर्भ 11वें और 12वें महीने तक भी रहता है. यदि 11वें महीने में गर्भशूल हो तो मुलेठी, कमलकंद एवं नीलकमल इन्हें बराबर मात्रा में लेकर ठंडे पानी में पीसकर गाय के दूध के साथ पिलाने से लाभ होता है.

12 .यदि 12वें महीने में गर्भशूल शुरू हो तो मिश्री, विदारीकंद, काकोली, क्षीर विदारी इन्हें बराबर मात्रा में लेकर ठंडे पानी में पीसकर गाय के दूध के साथ सेवन कराने से गर्भशूल नष्ट होता है.

गर्भावस्था में पेट दर्द को कब लेना चाहिए गंभीरता से-

यदि गर्भवती महिला को पेट दर्द के साथ बुखार, उल्टी हो या फिर ठंड लगे, योनि मार्ग से असामान्य रक्त स्राव हो तो सावधान हो जाना चाहिए. कई बार पेट दर्द के कारण चलने- बोलने यहां तक कि सांस लेना भी मुश्किल होने लगता है. ऐसा आपके साथ भी हो रहा है तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए और तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए.

गर्भावस्था में पेट दर्द होने के अन्य कारण-

गर्भपात- लगातार पेट में दर्द की समस्या से गर्भपात होने की संभावना अधिक हो जाती है. 5 से 10 मिनट में संकुचन होना, पीठ दर्द के साथ या बिना दर्द के रक्त स्राव होना, योनि में ऐठन होना गर्भपात के मुख्य लक्षण है.

लिगामेंट स्ट्रेचिंग- गर्भावस्था दूसरी तिमाही के दौरान पेट दर्द अधिक होता है इसका मुख्य कारण है कि लिगामेंट का स्ट्रेच होना. इससे पेट के निचले भाग में दर्द अधिक होता है. जब यूट्रस ( बच्चेदानी ) बढ़ता है तो यूटेरिन बॉल में खिचाव उत्पन्न होता है जिसके कारण पेट में दर्द हो सकता है.

सीने में जलन की समस्या- कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सीने में जलन की समस्या अधिक होती है. हार्ट वर्ण होने से भी पेट दर्द की समस्या कई बार होने लगती है. एसिड रिफ्लक्स भी सीने में जलन की समस्या को शुरू करता है.

एक्टोपिक प्रेगनेंसी- यह प्रेगनेंसी सही नहीं होती, इसमें निषेचित अंडे गर्भाशय के बाहर इन प्लांट हो जाते हैं जिसके कारण भी पेट दर्द की समस्या शुरू हो सकती है.

प्रीमेच्योर लेबर- प्रीमेच्योर लेबर पेन होने के कारण भी पेट दर्द हो सकता है. जब समय से पहले लेबर होने लगे तो इसे प्रीमेच्योर लेबर करते हैं. इस दौरान वेजाइनल डिसचार्ज होता है, ब्लडिंग भी हो सकती है. इस दौरान भी आपको पेट दर्द हो सकता है.

नोट- यह लेख में उपर्युक्त औषधियों के मात्रा का वर्णन नही किया गया है अतः किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.

स्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा पुस्तक.

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I am an Ayurveda doctor and treat diseases like paralysis, sciatica, arthritis, bloody and profuse piles, skin diseases, secretory diseases etc. by herbs (Ayurveda) juices, ashes.

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