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जानिए- गर्भावस्था में मधुमेह होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 2 MinUpdated On April 2, 2022

हेल्थ डेस्क- गर्भावस्था में महिलाओं के लिए 9 महीने काफी चुनौती भरे दिन होते है और इन 9 महीनों में महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. इन्हीं बदलावों के कारण कुछ शारीरिक समस्याएं होती है जिन्हें नजरअंदाज करना कभी-कभी भारी पड़ जाता है. इन्हीं समस्याओं में से एक है गर्भावस्था में मधुमेह यानी शुगर होना. अंग्रेजी भाषा में इसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है. गर्भावस्था के दौरान कई महिलाओं को गर्भावती मधुमेह में पाया जाता है जिसका इलाज समय पर करवाना जरूरी है.

जानिए- गर्भावस्था में मधुमेह होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

चलिए जानते हैं विस्तार से

गर्भावस्था में वास्तविक मधुमेह नहीं पाया जाता है. गर्भावस्था में इस रोग में अधिकतर दुग्धशर्करा पाई जाती है जो स्थानीय दुग्ध से रक्त में आ जाती है. इस प्रकार की शर्करा से कोई हानि की संभावना नहीं रहती है.

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वास्तविक मधुमेह में द्राक्षाशर्करा पाई जाती है. इस प्रकार के वास्तविक मधुमेह की अवस्था यदि गर्भावस्था के पूर्व से ही उपस्थित हो और यह दुर्बलता, बहुमूत्रता आदि विकारों से युक्त हो तो माता की अपेक्षा गर्भ के लिए यह अत्यंत हानिकारक होती है.

मधुमेह के अतिरिक्त गर्भावस्था में मूत्र शर्करा दो अन्य कारणों से भी मिलती है. 1 . वृक्कज शर्करामेह 2 .शर्करा सह्यता की क्षणिक कमी.

1 . वृक्कज शर्करामेह- इसमें वृक्क की प्रभाव सीमा सामान्य से कम हो जाती है. जिससे खून में शर्करा की वृद्धि न होते हुए भी उससे शर्करा निकल जाती है. साथ ही प्रसव के पश्चात इसका निकलना बंद हो जाता है. वृक्क की प्रभाव सीमा अल्पता का निदान शर्करासह्यता परीक्षण द्वारा किया जाता है. इसकी चिकित्सा में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटा दी जाती है. रोगिणी को पथ्यानुसार भोजन दिया जाता है.

2 .शर्करा सह्यता की क्षणिक कमी- एक सामान्य स्वरूप महिला- पुरुष पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पचाने में समर्थ होते हैं. लेकिन गर्भावस्था में इनका Assimilation भली प्रकार से नहीं हो पाता है. जिससे गर्भिणी के मूत्र में शर्करा आने लगती है. इस प्रकार उत्सर्जित शर्करा की मात्रा अत्यधिक 10 से 50 ग्राम प्रति दिन से अधिक नहीं होती है. ऐसी अवस्था अत्यधिक चिंता एवं अत्यधिक परिश्रम से भी उत्पन्न हो जाती है.

इसका निदान रोगिणी को 25 से 50 ग्राम तक द्राक्षाशर्करा खिलाकर उसके रक्तगत शर्करा का परिणाम देखकर किया जाता है. इससे शर्करा सह्यता की कमी का ज्ञान हो जाता है.

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इसकी चिकित्सा में भी कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटा दी जाती है. रोगिणी को चीनी खिलाना बिल्कुल बंद कर दिया जाता है. साथ ही पथ्य अनुसार भोजन की व्यवस्था की जाती है. यदि फिर भी पूर्ण सफलता न मिले तो चीनी का सेवन बिल्कुल बंद कराकर इंसुलिन 5-10 यूनिट की मात्रा में प्रतिदिन देना चाहिए.

वास्तविक मधुमेह- जब रोगी को वास्तविक मधुमेह होता है तब उसे इस रोग से स्थाई विकार युक्त समझना चाहिए. इसकी रोगिणी में प्यास एवं क्षुधा की अधिकता रहती है. रोगिणी में अक्सर दुर्बलता रहती है. शर्करा की मात्रा प्राकृत से कहीं अधिक बढ़ जाती है.

जब इंसुलिन चिकित्सा का प्रसार नहीं था तब मधुमेह से ग्रस्त रोगी को अत्यधिक कष्ट होता था. अधिकांश रूप से गर्भपात एवं मृतगर्भ पैदा होते थे. साथ ही कभी-कभी गर्भिणी का जीवन भी संकट में पड़ जाता था. जिससे गर्भ नष्ट करने की क्रिया अपनानी पड़ती थी.

जानिए- गर्भावस्था में मधुमेह होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

गर्भावस्था का मधुमेह पर प्रभाव-

अधिकांश रोगियों में गर्भ काल में मधुमेह नियंत्रण के लिए इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाती है साथ ही इंसुलिन की मात्रा बढ़ानी पड़ती है.

मधुमेह का गर्भिणी एवं उसके गर्भ पर प्रभाव-

मधुमेह के कारण गर्भवती महिला का गर्भपात हो जाता है. यह मधुमेह से ग्रसित रोगियों में 19% पाया जाता है. अधिकांश रूप से गर्भ की मृत्यु हो जाती है जो गर्भावस्था के अंतिम 3 महीनों में अधिकांश रूप से होता है. गर्भ मृत्यु की संभावना उस समय अधिक होती है जबकि मधुमेह की उचित चिकित्सा व्यवस्था नहीं की जाती है.

मधुमेह की बीमारी से गर्भ का भार अत्यधिक बढ़ जाता है. साथ ही अपरा ( Placenta ) भी बड़ी हो जाती है. इस व्याधि से गर्भ कुरचनाओं की संभावना अधिक रहती है. गर्भ के बड़े होने के कारण प्रसव के समय योनि में भी पर्याप्त कठिनाई होती है.

मधुमेह की गंभीर रोगियों को अतिरिक्त रक्तचाप, एल्ब्यूमिन मूत्रता तथा दृष्टिपटलशोथ तक हो जाता है जिसके कारण गर्भ मृत्यु की संभावना और भी ज्यादा हो जाती है.

जानिए- गर्भावस्था में मधुमेह होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण-

अगर आप गर्भवती महिला हैं और आपको गर्भावधि मधुमेह के बारे में जागरूक रहना है तो इन लक्षणों पर ध्यान देना आवश्यक है. ये लक्षण गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण हो सकते हैं.

  • बहुत जल्दी थक जाना.
  • बार-बार प्यास लगना.
  • जल्दी- जल्दी पेशाब जाने की आवश्यकता पड़ना.
  • जी मिचलाना.
  • आंखों की रोशनी में परिवर्तन होना, धुंधला दिखाई देना.
  • योनि, मूत्राशय और त्वचा का लगातार संक्रमित होना.

अगर किसी गर्भवती महिला में ऊपर बताए गए लक्षण दिखते हैं तो उन्हें डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. ताकि समय रहते उसका उचित इलाज किया जा सके.

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गर्भावस्था में मधुमेह नियंत्रित करने के आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-

चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य मधुमेह को नियंत्रित रखना है. साथ ही अंतः गर्भाशय को गर्भ मृत्यु होने के पहले ही प्रसव संपन्न करना है. गर्भावस्था के मध्य में कई बार रक्तशर्करा का परीक्षण करवा लेना चाहिए. क्योंकि रक्त शर्करा का स्तर गर्भावस्था में समय-समय पर बदलता रहता है. यह देखा गया है कि अधिकांश रोगियों में गर्भावस्था के समय मधुमेह अधिक बढ़ जाता है. कभी-कभी कुछ रोगिनियों में वृक्कशर्करा की प्रभाव सीमा कम होने के कारण स्थिति और भी गंभीर हो जाती है.

मधुमेह भगशोथ-

मधुमेह पीड़ित गर्भिणी में भगशोथ का उपद्रव विशेष कष्टदायक होता है जो अति तीव्र स्वरूप का होता है. विशेष रूप से मधुमेह के रोगियों में मोनालिया संक्रमण के फल स्वरुप उनका संपूर्ण भग प्रदेश गुलाबी रंग का तथा उत्तेजित हो जाता है. इसकी चिकित्सा मधुमेह नियंत्रण लेप एवं योनि में पेसरी रखकर की जाती है.

1 .महिला को पूर्ण आराम दिया जाता है. इस रोग में रुक्ष, शोषक जैसे- त्रिफला, त्रिवंग, नीम, करेला, लोध्र, बिल्व पत्र तथा सालसारादि वर्ग और न्योग्रोधादि वर्ग की औषधियों का प्रयोग करना अच्छा रहता है. इनसे मूत्र में शर्करा की निकासी कम हो जाती है.

2 .रोगिनी को जामुन के फल की मज्जा 4 भाग, नीम पत्र 4 भाग, आंवला 4 भाग गुड़मार पत्र 2 भाग, बिल्वपत्र 2 भाग और सूखा करेला 8 भाग. इन सबका चूर्ण बनाकर 2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो-तीन बार देने से एक माह में पूर्ण लाभ हो जाता है.

3 .जामुन फल के मज्जा में करेले, नीम, आंवले एवं बिल्वपत्र के चूर्ण को मिलाकर गोलियां बनाकर दिन में चार- छह गोलियां तक दी जाती है. इस औषधि के साथ-साथ लौह भस्म, त्रिवंग भस्म, अभ्रक भस्म, शुक्ति- रजत भस्म ये 6 औषधियां 1-1 भाग, शिलाजीत 2 भाग, अहिफेन आधा भाग की 120 मिलीग्राम की मात्रा में गोली बनाकर दिन में 2 बार सेवन कराने की गर्भावस्था में मधुमेह में अच्छा लाभ होता है.

4 .वसंत कुसुमाकर रस, स्वर्ण घटित चंद्रकांत रस आदि में से किसी का प्रयोग दिन में एक बार करने से रोगिणी की प्राण शक्ति बढ़ती है.

5 .शिलाजीत को चंद्रप्रभा वटी के साथ अथवा अकेले ही 480 मिलीग्राम की मात्रा देने से मूत्र शर्करा की मात्रा कम हो जाती है.

6 .सूखा करेला 4 भाग, जामुन 2 भाग, त्रिवंग भस्म 2 भाग, अभ्रक भस्म 1 भाग, लौह भस्म 1 भाग, शिलाजीत 2 भाग और अफीम आधा भाग. इन सबको मिलाकर गोली बनालें. दो गोली 240 मिलीग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन कराने से गर्भवती महिला का मधुमेह नियंत्रित हो जाता है.

7 .मधुमेह से ग्रसित महिला को दोनों समय जौ और गेहूं की बनी रोटी तथा हरी सब्जियां देनी चाहिए. रोटी की मात्रा 100 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए. चिकनाई रहित मट्ठे का प्रयोग करना लाभकारी होता है.

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नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.

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The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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