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जानिए- पागलपन के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 1 MinUpdated On March 5, 2022

HELTH DESK- पागलपन को उन्माद, विक्षिप्त आदि नामों से जाना जाता है. इसे अंग्रेजी भाषा मनिया ( Mania ) या Insanity कहा जाता है.

जानिए- पागलपन के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

पागलपन क्या है ?

मन की स्वाभाविक अवस्था में गड़बड़ी हो जाने को ही मेनिया कहते हैं. यह रोग युवावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक अधिक होता है. यदि कोई व्यक्ति स्वाभाविक काम को छोड़कर कोई ऐसा काम करने लगे जिससे कोई लाभ ना हो, खुद ही चलते- फिरते उल्टा- सीधा बड़बड़ करने लगे, अपने मन के मुताबिक कोई भी काम में लगा रहे चाहे उससे फायदा हो या नुकसान हो. किसी का कहना ना माने वैसी अवस्था को पागलपन कहते हैं.

पागलपन होने के कारण क्या है ?

आकारिकी पूर्व प्रवृत्ति- यह इसका मुख्य कारण है अर्थात ज्यादा परिश्रम करना, उद्वेग, अधिक खाना-पीना, इंद्रिय परिचालन, शराब तथा गांजा का अधिक सेवन करना, स्वास्थ्य हानि, निराशा एवं मिर्गी आदि के कारण पागलपन होता है.

पूर्वप्रवर्तक कारण- पूर्व पुरुषों को उन्माद रोग रहना, मस्तिष्क या मेरुदंड की यांत्रिक खराबी, शारीरिक गहरी चोट लगना, भयानक घटना वाले उपन्यास आदि का पढ़ना, अनुचित शिक्षा, किसी नजदीकी की मृत्यु हो जाना, भय, क्रोध, शोक इत्यादि के कारण पागलपन समस्या हो जाती है.

पागलपन के लक्षण क्या है ?

एलिवेशन ऑफ मूड

बेकार ही हाथ- पैरों को चलाना अथवा बेकार ही बोलना.

चेहरे तथा अंगों की भाव भंगिमा बदलती हुई होना.

गलत देखना, गलत बोलना, अंड- संड बकना तथा बड़बड़ाना.

नींद ना आना और ऊँचे- ऊँचे विचारों को लेकर उड़ना.

रोगी की बुद्धि विकृत हो जाती है उसका किसी काम में मन नहीं लगता है.

क्रोध, भय, प्रसंता, शोक, रोना आदि मानसिक भाव की अधिकता.

अपनी इच्छाशक्ति को काबू में ना रखना.

आत्मदाह करने की इच्छा होना.

रोगी भोजन तथा अपनी कपड़े पहनने की परवाह नहीं करता है. वह कुछ भी खा लेता है और कैसा भी कपड़ा पहन लेता है.

रोगी बातों का क्रम योजनाबद्ध रूप से प्रारंभ करता है और बिना एक को समाप्त किए हैं कुद कर दूसरी बातों पर चला जाता है.

दिनोदिन रोगी धीरे - धीरे दुर्बल होता चला जाता है.

प्रिय जनों का अनादर करना बड़ो का इज्जत नहीं करना छोटों को प्यार नहीं देना.

लगातार प्रलाप करना यानी हमेशा कुछ न कुछ बोलते रहना.

कृशता यानि हमेशा शरीर सुखा हुआ महसूस होना.

नींद ना आना एवं खाने की इच्छा ना होना पागलपन के मुख्य लक्षणों में से एक हैं.

पागलपन कितने प्रकार की होती हैं ?

पागलपन सामान्यतः तीन प्रकार की होती हैं.

1 .साधारण पागलपन-

साधारण पागलपन में रोगी में स्वयं का संतुलन समाप्त हो जाता है, उसकी निर्णय करने की शक्ति खत्म हो जाती है, वह बहुत ही बातूनी हो जाता है. किसी के साथ बातचीत करने लगता है तो लगातार घंटों तक बोलता ही रहता है.

2 .तीव्र पागलपन-

तीव्र पागलपन होने पर रोग एकाएक कुछ रोगों के आक्षेप की अवस्था में अथवा सेंट्रल नर्वस सिस्टम के रोगों में जैसे डीपीआई अथवा कुछ मनोवैज्ञानिक विचारों आदि में उत्पन्न हो जाता है. रोगी बराबर बेचैन रहता है अथवा चिरकालिक अवस्था में बदल जाता है. रोगी को नींद नहीं आती है. वह रात- रातभर जगा ही रहता है. रोगी कुछ माह बाद स्वस्थ हो जाता है अथवा चिरकालिक पागलपन में बदल जाता है.

3 .चिरकालिक पागलपन-

चिरकालिक पागलपन विशेष रूप से मध्यम आयु में मिलता है. इसमें बेचैनी, उत्तेजना आदि उपस्थित रहते हैं. इस अवस्था के रोगी क्षुधा पुनः लौट आती है. श्रवण विभ्रम प्रायः उपस्थित रहता है.

कैसे जाने कि व्यक्ति पागलपन का शिकार हो चुका है ?

रोगी के कार्यकलाप तथा विचार शक्ति भ्रम, विभ्रम, भ्रांत विश्वास आदि लक्षणों के द्वारा इसे आसानी से पहचाना जा सकता है यानी उपर्युक्त लक्षण मिले तो वह पागलपन का शिकार हो चुका है.

पागलपन का सामान्य चिकित्सा क्या है ?

पागलपन के रोगी को किसी मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती करा देना उचित है.

शय्या ( बेड ) पर विश्राम, अच्छी भोजन व्यवस्था जिसमें पौष्टिक आहार में शामिल हो. उसे खुली हवा में रखना फायदेमंद होता है.

जिस कारण से वह पागलपन का शिकार हुआ है उस कारण को दूर करना आवश्यक है.

उसे ऐसी चीजों का सेवन कराया जाना चाहिए जिससे नाड़ी संस्थान को ताकत मिले और उसे उत्तेजित करें.

रोगी को हल्का- फुल्का काम कराकर उसे बराबर किसी न किसी काम में लगाए रखना चाहिए.

पागलपन से ग्रसित व्यक्ति को शीतल जल से स्नान कराना लाभदायक होता है.

रोगी के चारों तरफ के लोगों को सावधान करा देना चाहिए कि वे रोगी के आसपास के वातावरण को शांत रखें जिससे रोगी उत्तेजित न हो.

पागलपन का आयुर्वेदिक उपाय-

1 .पागलपन के रोगी को पहले वामन व विरेचन कराना चाहिए.

2 .सारस्वत चूर्ण या ब्राम्ही चूर्ण 2 ग्राम, अभ्रक भस्म 2 गूंज और कस्तूरी वटी 1 गूंज ऐसी एक मात्रा सुबह- शान शहद के साथ सेवन कराएँ.

3 .अष्टांग घृत या अश्वगंधा घृत या ब्राम्ही घृत 10 ग्राम कि मात्रा में सुबह- शाम दूध के साथ सेवन कराएँ.

4 .सरस्वती वटी 3-3 वटी दिन में 3 बार और सारस्वतारिष्ट दिन में 3 बार पिलायें.

5 .कुष्मांड का रस या ब्राम्ही का रस २० ml उतनाही पानी मिलाकर दिन में एक बार पिलायें.

6 .सिर पर महालाक्षादी तेल या ब्राम्ही तेल कि मालिस कराएँ.

7 .नाक में गो घृत या शुद्ध सरसों का तेल डालें.

8 .समयानुसार रोगी को बांधना, डराना, भय देना भी उचित है इससे भी पागलपन में लाभ होता है.

9 .अगर रोगी को नींद नही आती है तो जातिफल चूर्ण या निद्रोदय वटी या पिपलामूल का चूर्ण रात को सोने से पहले सेवन करायें.

10 .स्वर्णब्राम्ही वटी, बृहत्वात चिंतामणि रस, धात्री रसायन भी स्वान कराना पागलपन के रोग में लाभदायक है.

नोट- उपर्युक्त चिकित्सा किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक कि देख- रेख में करने से पागलपन की समस्या से छुटकारा दिलाता है.

चिकित्सा स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक.

पागलपन का घरेलू उपाय-

1 .15 ग्राम अनार के ताजे हरी पत्ती, 15 ग्राम गुलाब के ताजे फूल को 500 ग्राम पानी में उबालें. उबलते-उबलते जब पानी 125 ग्राम रह जाए तो उसमे 20 ग्राम देशी घी मिलाकर रोगी को पिलाएं. इससे पागलपन के दौरे में लाभ होता है.

2 .आधा चम्मच अजवाइन का चूर्ण  और 4-5 मुनक्का को पानी पीसकर सुबह खाली पेट पिलायें. इसका लंबे समय तक सेवन करने से पागलपन दूर होता है.

3 .गर्मी के कारण पागलपन हुआ हो तो रात को 1 छटांक चने को पानी में भिगो दें सुबह पीसकर खांड मिलाकर  पीने से लाभ होता है. चने की भीगी हुई दाल का पानी पिलाने से भी पागलपन में लाभ होता है.

4 .12 काली मिर्च, 3 ग्राम ब्राम्ही की पत्तियां पीसकर आधा गिलास पानी में छानकर दिन में दो बार रोगी को पिलाने से पागलपन में लाभ होता है.

5 .यदि वहम की तीव्रता से पागलपन हो तो तरबूज का रस एक कप, दूध एक कप, मिश्री 30 ग्राम मिलाकर बोतल में भरकर रात को खुले चांदनी रख दें. सुबह खाली पेट रोगी को पिला दें. ऐसा 21 दिन करने से वहम का पागलपन दूर हो जाएगा और पागलपन की समस्या से छुटकारा मिलेगी.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.

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Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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