हेल्थ डेस्क- गर्भावस्था के दौरान उल्टी होना बहुत ही आम समस्या है. इस दौरान ज्यादातर महिलाओं को मिचली एवं उल्टी का सामना करना पड़ता है. आज हम इस लेख के माध्यम से गर्भावस्था के दौरान मिचली एवं उल्टी होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे.

गर्भावस्था के दौरान लगभग 50% महिलाओं को गर्भावस्था के प्रथम 3 महीने में मिचली एवं थोड़ा बहुत उल्टी होता है जो गर्भवती होने की सही जानकारी देता है. साथ ही यह स्वभाविक भी माना जाता है. मिचली एवं उल्टी के लक्षण 14 सप्ताह तक समाप्त हो जाते हैं. कभी-कभी यह लक्षण बड़े ही कष्टदायक हो जाते हैं साथ ही बारंबार कतथा अति उल्टी होने के कारण गर्भिणी कमजोर एवं कृश हो जाती है. उसके निर्जलीकरण होने एवं चयापचय असंतुलित होने पर उसकी दशा कभी-कभी गंभीर हो जाती है. साथ ही महिला ( रोगिणी ) का जीवन संकट में पड़ जाता है. उल्टी की अधिकता के कारण रोगिणी अपना कार्य करने में पूर्णतया असमर्थ हो जाती है. गर्भावस्था में अति उल्टी का रोग प्रायः कम ही होता है.
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गर्भावस्था में उल्टी होने के क्या कारण हैं ?
गर्भावस्था में उल्टी होने के क्या कारण है इसका अभी तक सही- सही पता नहीं चल पाया है. इसके कारणों के विषय में भिन्न-भिन्न विद्वान भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत करते हैं. जिनमें से कुछ नीचे दिए जा रहे हैं-
अधिकांश विद्वानों का मत है कि अल्प मात्रा में स्वाभाविक उल्टी चयापचय कारणों से होता है तथा दीर्घकाल तक चलने वाला अस्थाई अति उल्टी मानसिक कारणों से, स्वभाविक उल्टी की अतिवृद्धि हो जाने से होता है. ऐसा विचार है कि गर्भिणी के अवचेतन मन को गर्भ से छुटकारा पाने की इच्छा उल्टी के रूप में प्रकट होती है. मानसिक कारण की पुष्टि इसलिए होती है कि ऐसी रोगिनियों में अधिकांश का उल्टी उन्हें शांत वातावरण में लाते रुक जाता है.
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अंतः स्रावी अथवा एंडोक्राइन मत-
प्रोजेस्टेरोन तथा एस्ट्रोजन की अधिकता भी अति उल्टी का कारण माना गया है. इसका कारण यह है कि गर्भावस्था के प्रारंभिक 3 महीनों में प्रोजेस्टेरोन अर्थात जरायु जनन ग्रंथि पोषक हार्मोन की अधिक उत्पत्ति होती है और अति उल्टी भी प्रथम तीन महीनों में ही होता है. यमल गर्भ एवं हाईडेटियोंफार्म मोल की रोगिनियों में अधिकांश रूप से अधिक उल्टी होता है. इन रोगिनियों में इस समय जरायुजनन ग्रंथि- पोषक हार्मोन भी अधिक मात्रा में बनता है.
अति उल्टी के प्रारंभ में शरीर में कोई भी विषैला पदार्थ विदधमान नहीं रहता. जीव रासायनिक परिवर्तन तथा शरीर के आवश्यक भीतरी अंगों की विकृति उल्टी एवं उपवास के कारण होती है. कार्बोहाइड्रेट की कमी के कारण अभिरक्तता, किटोसिस, विटामिन की अल्पता, उत्तक निर्जलीकरण तथा इलेक्ट्रोलाइट डिफ्लेशन हो जाते हैं.
निर्जलीकरण के कारण निम्न लक्षण उत्पन्न होते हैं-
शरीर के भार में कमी होना.
जीभ का शुष्क रहना.
आंखों का अंदर घस जाना.
रक्तचाप न्यूनता
मूत्र में कमी होना.
मलावरोध ( कब्ज ) होना.
अनशन के कारण निम्न लक्षण उत्पन्न होते हैं-
भार में कमी एवं पेशी दुर्बलता.
अवसन्नता.
उल्टी के कारण कार्बोहाइड्रेट की अल्पता अति शीघ्र उत्पन्न हो जाती है. जिसके कारण शरीर में सुरक्षित वसा का उपयोग ऊर्जा उत्पति के लिए होने लगता है. इस प्रकार वसा के विघटन से एसीटोएसिटिक एसिड एवं एसीटोन खून में जमा हो जाते हैं. श्वास से एसीटोन की गंध आती है.
गर्भावस्था के दौरान अधिक उल्टी होने के लक्षण-
गर्भावस्था के दौरान अधिक उल्टी 3 प्रकार के हो सकते हैं ?
1 .साधारण अथवा हल्के प्रकार का उल्टी- इस प्रकार के उल्टी के कारण महिला का शारीरिक भार कम हो जाता है लेकिन महिला के शरीर में निर्जलीकरण नहीं होता है.
2 .मध्यम वर्ग का अति उल्टी- इस प्रकार की उल्टी में निर्जलीकरण एवं परिसंचरण परिवर्तन हो जाते हैं.
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3 .गंभीर प्रकार का अति उल्टी- गंभीर प्रकार के उल्टी में निर्जलीकरण परिसंचरण परिवर्तन तो पाए ही जाते हैं साथ ही निम्नलिखित जीव रासायनिक परिवर्तन भी हो जाते हैं-
1 .दैनिक मूत्र निकासी की मात्रा प्रायः कम हो जाती है. साथ ही मूत्र का गुरुत्वाकर्षण अधिक हो जाता है.
2 .मूत्र में बार-बार एल्ब्यूमिन आता है.
3 .मूत्र में एसटोन की मात्रा अधिक रहती है.
4 .कभी-कभी मूत्र में पीत भी आता है जो महिला की गंभीर स्थिति को दर्शाता है.
5 .महिला के मूत्र में क्लोराइड की मात्रा कम हो जाती है. यहां तक कि कभी-कभी मूत्र में क्लोराइड का पूर्णतया अभाव रहता है.
6 .गंभीर रोगियों में उनके मूत्र के अंतर्गत यूरिया की मात्रा पर्याप्त बढ़ जाती है
रोग निदान- रोगिणी के पूर्व इतिहास का पता लगाने से रोग का पता लग जाता है. मूत्र परीक्षा भी रोग निदान में पर्याप्त मददगार होती हैं.
साध्यसाध्यता- उचित समय पर निदान तथा चिकित्सा से यह शीघ्र ही स्वस्थ हो जाती है. लेकिन गंभीर प्रकार के रोग में महिला की प्राण रक्षा हेतु गर्भपात कराने की भी आवश्यकता पड़ सकती है.
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गर्भावस्था में उल्टी का चिकित्सा सिद्धांत-
1 .मध्यम वर्ग की गंभीरता तथा अति गंभीर गर्भिणी अति उल्टी की रोगियों को अपने घर तथा आत्मीयजनों से अलग कर देना चाहिए.
2 .अगर उल्टी के साथ मलावरोध और सिर दर्द तथा जीभ मलावृत हो तो महिला को हल्का सा विरेचन देना चाहिए. इससे महिला का पेट साफ हो जाता है साथ ही उल्टी भी दूर हो जाता है.
3 .मध्यम तथा गंभीर रोगियों को 24 से 48 घंटे तक कुछ भी भोजन नहीं देना चाहिए. केवल बर्फ चुसवाना चाहिए. जब रोजीणी की दशा में पर्याप्त सुधार हो जाए तब कार्बोहाइड्रेट यथा शक्कर, टोस्ट, बिस्कुट आदि देना चाहिए. तत्पश्चात उल्टी बंद होने पर अल्प मात्रा में बार-बार क्रमशः बढ़ाते हुए उबला हुआ दूध, चावल, अंडा एवं फल देना चाहिए. इस बात का ध्यान रखा जाए कि भोजन में वसा की मात्रा कम हो.
4 .निर्जलीकरण का पूर्ण रुप से निराकरण किया जाना चाहिए.
5 .गंभीर रोगियों में यकृत क्षति की पूर्ण रूप से रक्षा की जानी चाहिए.
6 .प्रत्येक उल्टी के पश्चात मुख को किसी प्रतिरोधक औषधि जैसे- लिस्टरीन आदि से धोना चाहिए. जिससे कर्णपूर्वग्रंथि शोथ न होने पाए.
7 .महिला की दिन में दो-तीन बार नाड़ी की गति एवं रक्तदाब की परीक्षा करनी चाहिए.
8 .;गंभीर रोगियों में उनके मूत्र के द्वारा एसीटोन, एल्बुमिन तथा पीत की परीक्षा दिन में दो-तीन बार करनी चाहिए.
9 .गर्भ का अंत अत्यंत विरल रोगिनियों में ही करना पड़ता है. उचित समय में उचित चिकित्सा करने पर भी जब महिला की दशा ( स्थिति ) में सुधार नहीं होता है और दशा निरंतर बिगड़ती ही चली जाती है तब गर्भ का अंत कराने की आवश्यकता पड़ती है. लेकिन ऐसी परिस्थिति बहुत कम ही आती है.
गर्भावस्था के दौरान अति उल्टी दूर करने के आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-
1 .आयुर्वेद अनुसार गर्भिणी को अति उल्टी में लंघन कराने के पश्चात अन्य औषधि चिकित्सा की जाती है. लंघन 1 दिन से अधिक नहीं कराना चाहिए अथवा कफ, पित्त नाशक संशोधन देना चाहिए. यदि मलावरोध हो तो हल्का विरेचक देकर पेट साफ करें. इसके बाद प्रिय अभीष्ट वस्तु खिलाकर चिकित्सा करें.
2 .उल्टी होने पर परवल के रस, बेदाना अनार के रस अथवा अनार के रस शहद के साथ सेवन कराएं. उल्टी के साथ मलबंध ( कब्ज ) हो तो लाजा के पानी के साथ दें.
3 .गर्भवती महिला को अधिक उल्टी हो रही हो तो संतरा, मीठा नींबू आदि फलों के सेवन से राहत मिलता है. भोजन कम और सुपाच्य तथा दिन में तीन- चार बार देना चाहिए. उत्तेजक पदार्थ बिल्कुल भी नहीं सेवन कराना चाहिए.
4 .जब महिला अधिक कमजोर एवं व्याकुल हो गई हो तथा जल की एक घूंट पीने पर भी बाहर निकल जाती हो तो ऐसी अवस्था में सूतशेखर रस 120 मिलीग्राम, कामदुधा वटी 240 मिलीग्राम और दुग्ध शर्करा 1 ग्राम 560 मिलीग्राम मिलाकर 8 पुड़िया बना लें. अब आधा-आधा घंटे पर अथवा उल्टी होने पर एक एक पुडिया देते जाएं. लेकिन पानी पीने को ना दें. ऐसा दिन 4 घंटे तक करने पर उल्टी की उग्रता पर रोक लगाया जा सकता है.
5 .किसी- किसी समय उल्टी इतना भयंकर रूप धारण कर लेता है कि किसी औषधि से शांति नहीं मिलती है. ऐसी अवस्था में ठंडा पानी, बर्फ, चावल का माड़ आदि से लाभ होता है. औषधि का अधिक उपयोग हो जाने से अमाशय में ऐसी उत्तेजना आ जाती है कि कोई भी औषधि लेने के साथ उल्टी हो जाती है.
6 .आमाशय की वातवाहिनियों की उग्रता का निग्रह करने के लिए अफीम तुरंत लाभ पहुंचाती है. इसलिए अनेक समय मल प्रधान औषधि जैसे मल्लभस्म, सितोपलादि मल्लमिश्रण, मल्लादि वटी आदि कम मात्रा में देने से आश्चर्यजनक लाभ होता है.
7 .गर्भवती महिलाओं को कष्टप्रद उल्टी और मिचली आने पर प्रवाल पिष्टी, गर्भ चिंतामणि रस, गर्भपाल रस, कामदुधा अथवा अभ्रक भस्म सितोपलादि चूर्ण या ऐलादी चूर्ण के साथ दिन में तीन- चार बार कुछ दिनों तक नियमित सेवन कराना चाहिए.
8 .खरैटी के मूल का क्वाथ बनाकर पिलाने से गर्भावस्था के दौरान हो रही उल्टी में अच्छा लाभ होता है.
9 .नागर मोथा, धनिया, सोठ एवं मिश्री का क्वाथ पिलाने से साधारण प्रकार के हो रहे उल्टी दूर होता है.
10 .घी में भुने हुए कुचले का चूर्ण 30 मिलीग्राम से 60 मिलीग्राम दिन में दो-तीन बार देने से अच्छा लाभ होता है.
11 .मुनक्का बीज रहित 10 ग्राम, छोटी इलायची के दाने 10 ग्राम, बादाम की गिरी 10 ग्राम इन सब औषधियों को पीसकर चने के बराबर गोलियां बना लें. अब इसकी एक गोली मुख में रखकर चूसने को दें. इससे उल्टी रुक जाता है.
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12 .चावल के धोवन में जायफल घिसकर इसमें नींबू का रस मिलाकर पिलाने से गर्भवती महिलाओं का तीव्र उल्टी दूर हो जाता है.
13 .भुनी हुई इलायची के बीज का चूर्ण 500 मिलीग्राम शहद के साथ चटाने से अच्छा लाभ होता है. इस औषधि का दिन में 4-5 बार प्रयोग करना चाहिए.
14 .कपूर, पिपरमेंट एवं पुदीने के सत्व का संभाग घोल 5 बूंद चीनी में डालकर सेवन करावें. इससे उल्टी से राहत मिलेगी.
15 .एलादि वटी चूसने को दें तथा ऐलादी चूर्ण शहद के साथ दिन में कई बार चटावें. ऐसा करने से उल्टी से राहत मिलेगी.
16 .अगर 6वें अथवा 7वें महीने में उल्टी शुरू हो तो प्रवाल पिष्टी सौंफ के अर्क के साथ दिन में दो-तीन बार दें.
17 .गर्भवती महिला को सुबह के समय गर्म चाय अथवा गरम-गरम मीठा दूध पिला देने से उल्टी दूर हो जाता है. खुश्क धनिया में गुड़ मिलाकर खाने से गर्भवती का उल्टी दूर हो जाता है.
18 .आमाशय के ऊपर राई का लेप लगा देने से भी उल्टी एवं मिचली दूर हो जाती है.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.
स्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा.