हेल्थ डेस्क- मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो लड़कियों ( महिलाओं ) में 12 से 14 वर्ष की उम्र में शुरू होकर 45 से 50 वर्ष की उम्र तक चलता है. इसे माहवारी, रजोधर्म, मेंसट्रूअल साइकिल, एमसी, आर्तव और पीरियड के नाम से जाना जाता है. यह महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलाव की वजह से गर्भाशय के रक्त और अंदरूनी हिस्से से होने वाला स्राव को मासिक धर्म कहते हैं. हालांकि, मासिक धर्म सबको एक की उम्र में नहीं होता है. कुछ लड़कियों को 8 से 17 वर्ष तक की उम्र में भी हो सकता है तो कुछ विकसित देशों में लड़कियों को 12 या 13 साल की उम्र में पहला मासिक धर्म होता है. वैसे सामान्य तौर पर 11 से 13 वर्ष की उम्र में लड़कियों का मासिक धर्म शुरू हो जाता है.

मासिक धर्म किस उम्र में शुरू होगा यह कई बातों पर निर्भर करता है. लड़की की जींस की रचना, खान-पान, काम करने का तरीका, वह जिस जगह पर रहती है उस स्थान की ऊंचाई कितनी है आदि मासिक धर्म के लिए मायने रखते हैं.
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मासिक धर्म महीने में एक बार आता है. यह चक्र सामान्य तौर पर 28 से 35 दिनों का होता है. महिला जब तक गर्भवती न हो जाए यह प्रक्रिया हर महीने होती रहती है. कुछ लड़कियों या महिलाओं को मासिक धर्म 3 से 5 दिनों तक रहती है तो कुछ को 2 से 7 दिनों तक ही रह सकती है.
मासिक धर्म आने के पहले महिला के शरीर में कुछ लक्षण भी दिखाएं पड़ते हैं जैसे- मासिक धर्म से पहले पेट में दर्द और ऐंठन की समस्या, मासिक धर्म शुरू होने के साथ डायरिया, दस्त या उल्टी की समस्या होती है. मासिक धर्म शुरू होने के बाद में समस्या के अलावा खाने पीने की इच्छा बढ़ जाती है. सामान्य दिनों की तुलना मासिक धर्म के दिनों में महिलाएं ज्यादा खाने लगती है. मासिक धर्म के दौरान कई बार वजन बढ़ने की संभावना भी रहती है.
मासिक धर्म कैसे शुरू होता है ?
जब कोई लड़की किशोरावस्था में पहुंचती है तब उसके अंडाशय एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन पैदा करने लगते हैं. इन हार्मोन की वजह से हर महीने गर्भाशय की परत मोटी होने लगती है. कुछ अन्य हार्मोन अंडाशय को अनिषेचित डिम्ब उत्पन्न एवं उत्सर्जित करने का संकेत देते हैं. सामान्यतः अगर लड़की मासिक धर्म के आसपास यौन संबंध नहीं बनाती है तो गर्भाशय की वह परत जो मोटी होकर गर्भाशय के लिए तैयार हो रही थी टूटकर रक्त स्राव के रूप में बाहर निकल जाती है. इसे ही मासिक धर्म के नाम से जाना जाता है.
महिलाओं को मासिक धर्म होना क्यों जरूरी है ?
मासिक धर्म क्यों होता है ? मासिक धर्म की वजह से ऐसे हार्मोन बनते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार होते हैं. प्रत्येक महीने हार्मोन शरीर को गर्भधारण के लिए तैयार कर देते हैं. मासिक चक्र के गिनती मासिक धर्म शुरू होने के पहले अगले मासिक धर्म शुरू होने के पहले दिन तक की जाती है. लड़कियों में मासिक चक्र 21 से 45 दिन तक का भी हो सकता है. सामान्य तौर पर मासिक चक्र 28 से 35 दिन का होता है.
मासिक धर्म के दौरान हार्मोन्स में क्या परिवर्तन होते हैं ?
मासिक चक्र के शुरू के दिनों में एस्ट्रोजन नामक हार्मोन बढ़ना शुरू होता है. यह हार्मोन शरीर को स्वस्थ रखता है खासतौर पर हड्डियों को यह हार्मोन मजबूत बनाने का काम करता है. साथ ही इस हार्मोन के कारण गर्भाशय की अंदरूनी दीवार पर रक्त और टिशूज की एक मखमली परत बनती है ताकि वहां भ्रूण पोषण पाकर तेजी से विकास कर सके. यह परत रक्त और टिशूज से बनी होती है.
मासिक धर्म से निकलने वाले रक्त में क्या शामिल होते हैं ?
मासिक धर्म के समय अक्सर मन में यह सवाल आता है कि रक्त स्राव कितने दिन तक होना चाहिए और कितनी मात्रा में होना चाहिए कि जिसे सामान्य माना जाए. मासिक धर्म के समय निकलने वाला स्राव सिर्फ रक्त ही नहीं होता है बल्कि इसमें नष्ट हो चुके टिशूज भी शामिल होते हैं अगर रक्त की बात की जाए तो इसकी मात्रा लगभग 50 मिलीलीटर तक ही होती है.
लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि स्वस्थ मासिक धर्म होने के बाद भी कई बार जब मासिक धर्म खत्म हो जाते हैं तो रक्त स्राव होने की समस्या हो जाती है तो आज हम इस लेख में आपको मासिक धर्म खत्म होने के बाद रक्तस्राव होने के कारण, लक्षण और उपाय के बारे में बताएंगे.
महिलाओं का मासिक धर्म बंद होने के बाद पुनः रक्त स्राव लगता है और वह 5-6 महीने तक लगातार बना रहता है. रजोनिवृत्ति के समय आर्तव अनियमित अथवा अत्यधिक हो सकता है. संभवत यह डिंब क्षरण हीन चक्र होते हैं. कभी-कभी कई सप्ताहों तक रह सकता है.
मासिक धर्म खत्म होने के बाद रक्तस्राव होने के कारण क्या है ?
मासिक धर्म बंद होने के बाद रक्तस्राव होने के निम्न कारण हो सकते हैं-
1 .सामान्य कारण- जिनका संबंध रक्त जनित विकारों से होता है.
2 .औषधाभावी कारण- रजोनिवृत्ति काल के लक्षणों की शांति के लिए जब एस्ट्रोजन का प्रयोग पर्याप्त मात्रा में किया जाता है और जब उनका देना बंद कर दिया जाता है तो औषधाभावी रक्त स्राव शुरू हो जाता है.
3 .मारात्मक रोगजन्य कारण- इनमें कैंसर ऑफ सर्विस सेंटर ऑफ बॉडी ऑफ यूट्रस, योनि एवं भाग के कैंसर तथा बीज ग्रंथियों के मारात्मक अर्बुद वे रोग हैं जिनके कारण रजोनिवृत्ति के बाद रक्तस्राव हो सकता है. किंतु बीज वाहिनी के कैंसर में रक्त स्राव मिल सकता है.
4 .सुदम विकार- इनमें मूत्र मार्ग के मांसांकुर सेनाइल वेजीनाइटिस, सेनाइल इंडोमेट्राइटिस, सर्वाइकल इरोजन, सिस्टिक हाइपरप्लेशिया, अधिक देर तक रहने वाले गर्भाशय भ्रंश के कारण योनि तथा सर्विक्स में अल्सरेशन होता है.
मासिक धर्म खत्म होने के बाद रक्तस्राव के लक्षण क्या हैं ?
इसके लक्षण प्रायः रक्तस्रावी गर्भाशय विकृति से समता रखते हैं. अत्यधिक एवं कई सप्ताहों तक निरंतर चलता रहता है.
रोग का निदान-
यदि कोई महिला चिकित्सक के पास रजोनिवृत्ति के पश्चात रक्त स्राव से पीड़ित पहुंचती है तो चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह महिला के रोग का पूरा इतिहास मालूम करें. इसके बाद ऊपर लिखे कारणों की ओर ध्यान दें. रजोनिवृत्ति के सभी अनियमितताओं में गर्भाशय के कैंसर की संभावना ध्यान में रखनी आवश्यक है और उसकी संपूर्ण खोज करनी चाहिए. गर्भाशय के आलेखन से इसका निदान हो सकता है.
महिला का रक्तचाप भी बड़ी सावधानी के साथ चेक करना चाहिए. ध्यान रहे कि कहीं रक्तचाप की अधिकता के कारण रक्त स्राव तो नहीं हो रहा है. साथ ही योनि तथा प्रजनन अंगों का प्रत्यक्ष दर्शन करना भी आवश्यक है. करद्वय परीक्षा तथा योनि परीक्षा द्वारा भी सहायता लेनी चाहिए. मारात्मक रोग में योनि तथा सर्विक्स की परीक्षाएं विशेष सहायक होती है. कभी-कभी बस्ती एवं मलाशय दर्शन परीक्षा भी करनी पड़ सकती है.
मासिक धर्म बंद होने के बाद रक्त स्राव की आयुर्वेदिक चिकित्सा-
1 .इस रोग की चिकित्सा कारणों के अनुसार की जाती है. कैंसर ना रहने पर हार्मोन्स की चिकित्सा का प्रयोग किया जा सकता है. मेट्रोपेथिया हेमोरेजिका के समान होनी चाहिए. लाभ होने पर बीच-बीच में चिकित्सा रोक कर देखना चाहिए कि रजोनिवृत्ति पूरी हो गई है या स्वयंभू आर्तव चक्र प्रारंभ हो गया है. चिकित्सा प्रायः सफल नहीं होती है जब कोई कारण भी स्पष्ट नहीं होता है और रक्त स्राव बराबर एवं पर्याप्त मात्रा में निकलता है तो ऐसी अवस्था में गर्भाशयोच्छेदन अथवा कृत्रिम रजोनिवृत्ति करानी पड़ती है.
2 .इन सब उपर्युक्त व्यवस्थाओं के साथ का महिला को पूर्ण विश्राम देना चाहिए. साथ ही बलवर्धक औषधियां एवं लौह के योगों का प्रयोग करना चाहिए.
3 .चिकित्सा प्रायः पूर्ण संतोषजनक नहीं होती है. इसकी चिकित्सा अत्यार्तव एवं मेट्रोपेथिया हेमोरेजिका के सामान की जाती है. साथ ही बलवर्धक एवं लौह प्रधान आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग करना लाभदायक होता है.
4 .अशोकारिष्ट का सेवन कराना इस रोग में फायदेमंद होता है. इसके लिए 20 मिलीलीटर अशोकारिष्ट में 20 मिलीलीटर पानी मिलाकर सुबह-शाम महिला को पिलाना चाहिए.
5 .प्रदरांतक चूर्ण- मीठी सुपारी, माजूफल, चौलाई की जड़, सोनागिरी, मोचरस, नागकेसर, शतावर, सिंघाड़ा, कमल केसर को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें अब इस चूर्ण में 4- 6 ग्राम की मात्रा में चावल के धोवन के साथ कुछ दिन सेवन करने से लाल व सफेद प्रदर नष्ट हो जाता है.
6 .बोलबद्ध रस की एक- दो गोली सुबह- शाम ठंडे पानी के साथ सेवन करने से रक्तस्राव आना बंद हो जाता है.
7 .अशोक की छाल का क्वाथ दूध और मिश्री मिलाकर पीने से रक्तस्राव शांत हो जाता है.
8 .नागकेसर का चूर्ण 2 से 3 ग्राम की मात्रा में चावल के धोवन के साथ सेवन कराने से रक्त स्राव आना बंद होता है. यदि श्वेत प्रदर की भी शिकायत हो तो वह भी दूर होती है.
9 .आंवले का रस शहद के साथ सेवन कराने से लाभ होता है.
10 .ऊनी कंबल की निर्धूम राख शहद के साथ खिलाने रक्त स्राव रुक जाता है.
11 .गूलर के फलों का रस शहद के साथ खाने से रक्त स्राव आना कम हो जाता है और धीरे-धीरे बंद हो जाता है.
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12 .अशोक घृत 10 से 20 ग्राम की मात्रा में बलानुसार सेवन करने से रक्तदोष युक्तप्रदर कुक्षीशूल दोष, कटिंग अरुचि, पांडु तथा दुर्बलता दूर होती है.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. अधिक जानकारी के लिए और किसी भी औषधि प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.