हेल्थ डेस्क- सोम रोग में महिला की योनि से निर्मल, शीतल, गंध रहित, साफ, सफेद और पीड़ारहित पानी अत्यधिक मात्रा में स्रावित होते रहता है. महिला पानी को रोकने में असमर्थ रहती है. हमेशा इस पानी को आते रहने के कारण महिला कमजोर हो जाती है और कमजोरी के कारण बेचैन रहती है. माथा शिथिल हो जाता है. मुंह एवं तालू सूख जाते हैं. महिला में बेहोशी, जम्हाई, चमड़े में रूखापन, प्रलाप तथा खाने-पीने की वस्तुओं से कभी तृप्ति नहीं होती है. इन लक्षणों से युक्त महिला सोम रोग से पीड़ित होती है क्योंकि इस रोग में सोम धातु का नाश होता जाता है इसलिए इसे सोम रोग कहा जाता है.

सोम रोग को सामान्य भाषा में बहुमूत्र या डायबिटीज इंसीपिड्स कहते है. प्रदर की तरह ही यह रोग महिलाओं होता है.
सोम रोग होने के क्या कारण हैं ?
अत्यधिक मैथुन, शोक, चिंता, अत्यधिक परिश्रम, बुखार का दोष, ऐसे पदार्थों के सेवन से जिनसे कृत्रिम बिष बन जाता हो, अत्यधिक अतिसार उत्पन्न करने वाली औषधियों के प्रयोग से संपूर्ण शरीर की सोम धातु क्षुभित होकर अपने स्थान से निकलकर वस्ति स्थान में आ जाती है और मूत्र मार्ग से बाहर आने लगती है.
सोम रोग के लक्षण क्या है ?
सोम रोग में जो स्राव निकलता है वह स्वच्छ, निर्मल, शीतल, गंध रहित, पीड़ारहित और सफेद होता है. रोग के बढ़ने पर महिला अतिशय कमजोर हो जाती है. उसका वस्ति इतना दुर्बल हो जाता है कि वह मूत्र के वेग को नहीं रोक पाती है. उसे सुख नहीं मिलता है. उसका सिर शिथिल हो जाता है और तालू सूखने लगते हैं. मूर्च्छा, जम्हाई, तथा प्रलाप होता है. त्वचा अत्यंत रूखापन हो जाती है. भक्ष्य, भोज्य तथा पेय पदार्थों से तृप्ति नहीं होती है. रोग के अतिशय बढ़ जाने पर महिला पेशाब के वेग को 1 मिनट के लिए भी नहीं रोक पाती है. उठते- उठते ही पेशाब निकल आता है और कपड़ा गीला हो सकता है.
जब महिला का यह पुराना हो जाता है तब वह मुत्रातिसार में परिवर्तित हो जाता है. पहले तो सोम रोग की दशा में पानी जैसा पदार्थ बहता रहता है लेकिन बाद में बारंबार पेशाब होता रहता है. पेशाब की मात्रा भी अधिक होती है. यदि महिला अल्प समय के लिए पेशाब को रोकना चाहे तो वह रोकने में भी पूर्ण रूप से असमर्थ हो जाती है. इस प्रकार महिला की संपूर्ण शक्ति नष्ट हो जाती है और वह मृत्यु को प्राप्त हो जाती है.
सोम रोग का निदान-
प्रदर की भांति सोम रोग भी महिलाओं में मिलने वाला रोग है. श्वेत प्रदर में अपत्य मार्ग से जल आता है. गर्भाशय और योनि में इससे संबंधित विकार रहते हैं लेकिन सोम रोग में ऐसा नहीं होता है. सोम रोग पेशाब का एक शुद्ध रोग है यह वस्ति से मूत्र मार्ग द्वारा निकलता है. सोम रोग में महिला अधिक कमजोर हो जाती है. उसका स्वास्थ्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता है. मूत्र त्याग के समय पीड़ा का अनुभव होता है. सोम रोग के समय प्यास के जो लक्षण मिलते हैं वे आगे चलकर मुत्रातिसार में बदल जाते हैं.
सोम रोग दूर करने के आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-
1 .सबसे पहले रोग के कारणों की चिकित्सा करके उसे दूर करनी चाहिए, मैथुन, चिंता, शोक आदि का त्याग किया जाए. रक्त की अम्लता को दूर करने के लिए दो-चार दिन फलाहार पर महिला को रखकर एनिमा आदि से पेट साफ करके चिकित्सा करने पर अच्छा लाभ होता है.
2 .इस रोग में वसंत कुसुमाकर रस 120 मिलीग्राम और जामुन के बीज का चूर्ण 1 ग्राम को शहद के साथ देने से उत्तम लाभ होता है.
3 .रस रत्नाकर की इंदु बटी 240 मिलीग्राम तथा छोटी इलायची का चूर्ण 240 मिलीग्राम की मात्रा में मिलाकर शहद के साथ सेवन कराने से सोम रोग में अच्छा लाभ होता है.
3 .वंगाष्टक भस्म 240 मिलीग्राम की मात्रा में दिन में दो बार शहद के साथ दें. इसके बाद ऊपर से हल्दी का चूर्ण 1 ग्राम और शहद 6 ग्राम मिलाकर आंवला के रस के साथ सेवन कराएं. यह सोम रोग दूर करने का अत्यंत प्रभावकारी उपाय है.
4 .शतावरी घृत 12 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद एवं मिश्री के साथ सेवन करें. इससे सोम रोग दूर होकर शरीर हृष्ट- पुष्ट और बलवान बनता है.
5 .बृहत सोमनाथ की 1-2 गोली शहद, पक्का केला और आंवला के रस के साथ सेवन कराने से अच्छा लाभ होता है.
6 .सोमनाथ रस 1-2 गोली दिन में दो बार सुबह और रात्रि में पके केले तथा शहद मिले आंवले के रस या लोध्रासव के साथ सेवन कराएं.
7 .रस सिंदूर 120 मिलीग्राम, शहद 24 ग्राम और आमलकी रस 2 ऑंस- ऐसी एक मात्रा सुबह-शाम सेवन कराने से सोम रोग दूर होता है.
8 .लौह भस्म 60 से 120 मिलीग्राम की मात्रा में चटा कर ऊपर गिलोय और त्रिफला का क्वाथ पिलाएं.
9 .भिंडी की जड़, सूखा पिंडारू, सूखे आंवले, विदारीकंद- सभी औषधि 48 ग्राम, उड़द का चूर्ण 24 ग्राम, मुलेठी 24 ग्राम लें. सबको पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें. अब इस चूर्ण में से 6 ग्राम की मात्रा में महिला को सेवन कराएं तथा ऊपर से मिश्री मिला हुआ गाय का दूध पिलाएं. इसके सेवन से सोम रोग निश्चित ही दूर हो जाता है.
10 .पका हुआ केला, आंवला का रस, शहद और मिश्री सबको मिलाकर खाने से सोम रोग में अच्छा लाभ होता है.
11 .शतावर का चूर्ण दूध के साथ सेवन करने से सोम रोग में अच्छा लाभ होता है.
12 .विदारीकंद, उड़द का आटा, मुलेठी, शहद और मिश्री सबको बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह- शाम 10 ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ सेवन करने से सोम रोग दूर हो जाता है.
13 .नागकेसर को मट्ठा के साथ पीसकर पीने से और मट्ठा तथा भात का सेवन करने की सोम रोग का नाश होता है.
14 .यदि दर्द के साथ सोम रोग हो तो शराब में तेजपत्ता और इलायची का चूर्ण मिलाकर पिलाएं. इसमें लोध्रासव का प्रयोग भी फायदेमंद होता है.
15 .आंवले की गुठली को पानी से पीकर कल्प बना लें और उसमें शहद मिलाकर सेवन करें. इससे सोम रोग तथा श्वेत प्रदर दोनों ही खत्म हो जाते हैं.
16 .काला जीरा 36 ग्राम, काला नमक 12 ग्राम, कालीमिर्च 6 ग्राम, तुलसी का पत्ता 24 ग्राम- सबको पिसकर झरवेरी के बराबर गोली बना लें. अब एक- एक गोली सुबह- शाम ताजे पानी के साथ सेवन करने से सोम रोग में अच्छा लाभ होता है.
17 .पका हुआ केला, विदारीकंद और शतावर- इन सब को दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सोम रोग नष्ट होता है.
18 .कटसरैया का चूर्ण तिल के तेल में मिलाकर 7 दिन तक सेवन करने से श्वेत प्रदर तथा सोम रोग नष्ट हो जाता है.
19 .जामुन के बीज का चूर्ण 2 ग्राम, शहद में मिलाकर सेवन कराएं और गाय का दूध पिलाएं. इससे सोम रोग नष्ट होता है.
20 .गूलर के सूखे फल को चूर्ण बनाकर 3 ग्राम की मात्रा में दिन में 5- 6 बार सेवन करने से सोम रोग निश्चित ही ठीक हो जाता है.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. और यह लेख पसंद आए तो शेयर जरूर करें. धन्यवाद.
स्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा पुस्तक.