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सभी रोगों के लिए एक औषधि है तुलसी, जाने इस्तेमाल करने के तरीके और धार्मिक महत्व

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 2 MinUpdated On March 29, 2022

हेल्थ डेस्क- तुलसी शब्द का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि जिस वनस्पति की किसी से भी तुलना न की जा सके वह तुलसी है. तुलसी को हिंदू धर्म में जगत जननी का पद प्राप्त है. उसे वृंदा भी कहा जाता है. तुलसी के महत्व व कारण शक्ति के सूक्ष्म प्रभाव से पुराणों के अध्याय भरे पड़े हैं. सर्व रोग निवारण तथा जीवनी शक्ति वर्धक इस औषधि को संभवत प्रत्यक्ष देव माना जाना इसी तथ्य पर आधारित है कि ऐसी शक्ति सुलभ सुंदर उपयोगी वनस्पति मनुष्य समुदाय के लिए और कोई नहीं है.

तुलसी का पौधा सदाहरित रहता है.. साधारण मार्च से जून तक इसे लगाते हैं सितंबर और अक्टूबर में खिलता है सारा पौधा सुगंधित मंजरियों से लद जाता है. जाड़े के दिनों में इसके बीज पकते हैं. यह 12 महीना किसी न किसी रूप में प्राप्त किया जा सकता है.

तुलसी की कई प्रजातियां पाई जाती है. लेकिन ज्यादातर 2 प्रजातियां ही देखी जाती है.

1 .श्री तुलसी- जिसकी पत्तियां हरी होती है. जिसकी पत्तियां नीला कुछ बैगनी रंग लिए होती है. श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएं श्वेताभ होते हैं. जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं. गुणधर्म के दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है.

तुलसी का पौधा गुल्म के समान 1 से 3 फुट ऊंचा, शाखायुक्त रोमस बैगनी आभा लिए होता है. पत्र 1-2 इंच लंबे अंडाकार या आयताकार होते हैं. प्रत्येक पत्र में एक प्रकार की तीव्र सुगंध होती है. पुष्प मंजरी अति कोमल, इसकी 8 इंच लंबी और अनेक रंग छटाओं से मंडित होती है. इस पर बैगनी या रक्त सी आभा लिए बहुत छोटे-छोटे पुष्प क्रमों में लगते हैं. कों पुष्पक प्रायः ह्रदयवत होते हैं. बीज चपटी पीत वर्ण के छोटे काले चिन्हों से युक्त अंडाकार होते हैं. पुष्प शीतकाल में आते हैं.

उपयोग के लिए संग्रह एवं संरक्षण-

पत्र, मूल, बीज उपयोगी अंग हैं. इन्हें सुखाकर मुख बंद पात्रों में सूखे शीतल स्थानों पर रखा जाता है. इन्हें 1 वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है. सर्वत्र एवं सर्वदा सुलभ होने से पत्रों का व्यवहार ताजी अवस्था में करने से अच्छा लाभ होता है.

तुलसी के उपयोग एवं फायदे-

  • सभी प्रकार के कफ व वात विकारों में तुलसी उपयोगी है. स्थानीय लेप के रूप में व्रणों, शोथ, संधि पीड़ा, मोच आदि में इसका लेप करते हैं.
सभी रोगों के लिए एक औषधि है तुलसी, जाने इस्तेमाल करने के तरीके और धार्मिक महत्व
  • अवसाद एवं न्यून रक्तचाप की स्थिति में इसे त्वचा पर मलने से तुरंत स्नायु संस्थान सक्रिय होता है. शरीर के बाहर कृमियों में भी इसका लेप करते हैं.
  • महर्षि चरक के अनुसार यह अग्निमन्दता, किसी भी प्रकार के उदर शूल तथा आंतों के कृमियों में उपयोगी है. बीज प्रवाहिका में देने पर तुरंत लाभ होता है.
  • तुलसी हृदयोतेजक है तथा रक्त विकारों का शोधन करता है. खांसी, दमा तथा इस कारण मांस पेशियों व रीढ़ की हड्डी के जकड़न में इसका स्वरूप बहुत उपयोगी होता है.
  • आचार्य शर्मा के अनुसार मूत्रदाह व विसर्जन में कठिनाई तथा ब्लैडर की सूजन व पथरी में तुलसी के बीज का चूर्ण तुरंत लाभ करता है. कुष्ठ की यह सर्वश्रेष्ठ औषध है. यह विषम ज्वर को मिटाती है किसी भी प्रकार के बुखार के चक्र को यह तुरंत तोड़ती है.
  • राज्यक्षमा ( टीबी ) में भी इसके प्रयोग सफल रहे हैं. जीवनी शक्ति ( प्रतिरोधक क्षमता ) बढ़ाकर यह जीवाणुओं को बढ़ने नहीं देती है.
  • तुलसी मलेरिया विरोधी है. घर के आस-पास लगाने से मच्छर समीप नहीं आते, इसके  स्वरस का लेप करने से वे काटते नहीं तथा मुख द्वारा ग्रहण किए जाने पर उन्हें इसके सक्रिय संघटक नष्ट कर देते हैं. तुलसी का बीज रसायन है तथा दुर्बलता का नाश करता है.
  • श्वेत तुलसी उष्ण व पाचक है. यह बालकों के प्रतिश्याय तथा कब्ज रोगों में उपयोगी होता है. काली तुलसी कफ निस्तारक एवं ज्वरनाशक है. सूखे पत्तों का चूर्ण पीनस ( साइनोसाइटिस ) के लिए लाभदायक होता है.
  • तुलसी का सिद्ध किया हुआ तेल कान के दर्द को मिटाता है.
  • तुलसी रस में मलेरिया ज्वर के कारण प्रोटोजोआ पैरासाइट तथा मच्छरों को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता है. पहली बार सन 1907 में इंग्लैंड में इंटीरियर मेडिकल कांफ्रेंस में इस बात का रहस्योद्घाटन किया गया कि काली तुलसी से मलेरिया का उपद्रव बहुत कम हो जाता है. इसके बाद बहुत से अनुसंधान इस क्षेत्र में हुए हैं, व बड़े सफल रहे हैं सभी में पाया गया है कि तुलसी पत्रों से स्पर्श की हुई वायु में ऐसे गुण होते हैं कि मच्छर उस पूरे परिसर के आसपास भटकते भी नहीं है. वैज्ञानिकों ने तुलसी के अंदर एक ऐसा उड़नशील तेल पाया है जो हवा में मिलकर ज्वर उत्पन्न करने वाले सब कीटाणुओं को नष्ट कर देता है.
  • सर्दी से चढ़ने वाले बुखार में विशेषकर ट्रॉपिकल क्षेत्रों के ज्वर में यह पाया गया है. इसके सेवन से सर्दी छाती में उतरने नहीं पाती तथा छाती में बैठा कफ सांस मार्ग से बाहर निकल जाता है. इसके रस में इतनी सामर्थ्य है कि इससे कृमि तुरंत मर जाते हैं और दस्त साफ होता है. उल्टी का तुरंत शमन होता है.
  • डॉक्टर जी नादकर्णी के अनुसार तुलसी में कुछ ऐसे गुण हैं जिनके कारण यह शरीर की विद्धुतीय संरचना को सीधे प्रभावित करती है. तुलसी की लकड़ी से बने दानों की माला गले में पहनने से शरीर में विद्युत शक्ति का प्रवाह बढ़ता है तथा जीवकोषों द्वारा उनको धारण करने की सामर्थ्य में वृद्धि होती है. बहुत से रोग इस प्रभाव से आक्रमण करने के पूर्व ही समाप्त हो जाते हैं तथा व्यक्ति की जीवन अवधि बढ़ती है.
  • अगर कमजोर व्यक्ति यदि स्वल्प मात्रा में ही तुलसी की जड़ को सुबह-शम घी के साथ सेवन करे तो उनका ओजस ( धातु ) बढ़ता है.
  • डॉक्टर गजेंद्र नाथ बसु ने कहा है कि तुलसी का थोड़ा सा भी शरीर से संपर्क संक्रामक व्याधियों को निरस्त कर देता है. तुलसी गुल्म के नीचे की मिट्टी को खाकर और उसे शरीर में लगाकर लोग व्याधि मुक्त होते पाए गए हैं. इस कथन में कितनी सत्यता है इसका विश्लेषण तो वैज्ञानिक शोध प्रक्रिया द्वारा ही संभव है. संभवत इसी कारण मंदिर, मस्जिदों तथा गिरजा घरों के आसपास तुलसी के पौधे लगाए जाने का प्रावधान रहा हो.
  • तुलसी में अनेकों जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं. जिनमें टैनिन, सैपोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं. हालाँकि अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है. तुलसी के बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8% की मात्रा में पाया जाता है. इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेराल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक और लिनोलेनिक अम्ल. तेल के अलावा बीजों में श्लैष्मक प्रचुर मात्रा में होता है. इस म्युलेज के प्रमुख घटक हैं- पेंटोस, हेक्जा, यूरोनिक अम्ल और राख. राख लगभग 2% होती है.
  • इंडियन ड्रग्स पत्रिका ( अगस्त 1977 ) के अनुसार तुलसी में विधमान रसायन वस्तुतः उतने ही गुणकारी हैं जिनका वर्णन शास्त्र में किया गया है. यह कीटनाशक है कीट प्रतिकारक तथा प्रचंड जीवाणु नाशक है. विशेषकर एनाफिलीज जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीट नाशी प्रभाव उल्लेखनीय है. डॉक्टर पुष्पधन एवं सोवती ने अपने खोजपूर्ण लेख में बड़े विस्तार से विश्वभर में चल रहे प्रयासों की जानकारी दी है.
  • तुलसी का इथर निष्कर्ष टीबी के जीवाणु माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस का बढ़ना रोक देती है. सभी आधुनिकतम औषधियों की तुलना में यह निष्कर्ष अधिक सांद्रता में श्रेष्ठ बैठता है
  • श्री रामा स्वामी एवं सिरसी द्वारा दिए गए शोध परिणामों द इंडियन जनरल ऑफ फार्मेसी मई 1967 के अनुसार तुलसी की टीबी नाशक क्षमता ह्यूमन स्ट्रेन की वृद्धि को यह भी यह औषधि रोकती है.
  • वेल्थ ऑफ इंडिया के अनुसार तुलसी का स्वरस तथा निष्कर्ष कई अन्य जीवाणुओं के विरुद्ध भी सक्रिय पाया गया है. इनमें प्रमुख है स्टेफिलोकोक्कस ऑरियस, सालमोनेला टाइफोसा और एक्केरेशिया कोलाई. इसकी जीवाणुनाशी क्षमता कार्बोलिक अम्ल से 6 गुणा अधिक है. नवीनतम शोधों में तुलसी की जीवाणु नाशी सक्रियता अन्यान्य जीवाणुओं के विरुद्ध भी सिद्ध की गई है.
  • डॉक्टर कौल एवं डॉक्टर निगम जनरल ऑफ रिसर्च इन इंडियन मेडिसिन के अनुसार क्लेब्सिला, कैंडिडा आदि सभी पर उत्पत तेल का प्रभाव मारक होता है. इसका जड़, पत्र, बीज व पंचांग प्रयुक्त होते हैं.
  • खांसी तथा गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपारी की तरह चुसी जाती है. काली तुलसी का स्वरस लगभग डेढ़ चम्मच काली मिर्च के साथ देने से खांसी का वेग एकदम शांत हो जाता है. फेफड़ों में खरखराहट की आवाज आने व खांसी होने पर तुलसी की सूखी पत्तियां 4 ग्राम मिश्री के साथ सेवन कराया जाता है. हिचकी एवं श्वास रोग में एक चम्मच तुलसी पत्र स्वरस दो चम्मच शहद के साथ दिया जाता है.
  • सांस रोग में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुंह में रखने से आराम मिलता है. जुकाम में तुलसी का पंचांग व अदरक समान भाग लेकर क्वाथ बनाकर दिन में तीन बार पीने से लाभ होता है.
  • यदि बुखार विषम प्रकार का हो तो तुलसी पत्र का क्वाथ 3-3 घंटे पश्चात सेवन करने का विधान है अथवा आधा चम्मच रस शहद के साथ तीन-तीन घंटे में सेवन कराएं. हल्के बुखार में कब्ज भी हो तो काली तुलसी का स्वरस दो चम्मच एवं गाय का घी 10 ग्राम दोनों को एक साथ कटोरी में गुनगुना करके इस पूरी मात्रा को दिन में दो-तीन बार सेवन करने से कब्ज से भी राहत मिलता है और बुखार से भी.
  • तुलसी की जड़ का काढ़ा भी आधे ओंस की मात्रा में 2 बार सेवन करने से बुखार में लाभ होता है. एक सामान्य नियम सभी प्रकार के बुखार के लिए यह है कि 20 तुलसी के पत्ते दस काली मिर्च मिलाकर क्वाथ बनाकर पिलाने से बुखार तुरंत उतर जाता है. मोतीझरा यानी टाइफाइड में 10 तुलसी के पत्ते एक माशा जावित्री के साथ पानी में पीसकर शहद के साथ दिन में 4 बार सेवन करना लाभदायक होता है.
  • उल्टी की स्थिति में तुलसी का रस शहद के साथ प्रातः काल व जब जरूरत हो पिलाते हैं. पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए अपच रोगों के लिए तथा बालकों के यकृत प्लीहा संबंधी रोगों के लिए तुलसी के पत्तों का फांट पिलाते हैं. छोटी इलायची, अदरक का रस और तुलसी पत्ते का रस मिलाकर देने पर उल्टी की स्थिति को शांत करते हैं.
  • दस्त होने पर एक माशा भुने जीरे के साथ 10 तुलसी पत्ती शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से लाभ होता है. अपच में मंजरी को काले नमक के साथ सेवन कराया जाता है.
  • बवासीर रोग में तुलसी के पत्ते का रस मुंह में लेने पर तथा स्थानीय लेप के रूप में प्रयोग करने से तुरंत लाभ होता है.
  • बालकों के संक्रामक अतिसार रोग में तुलसी के बीज पीसकर गाय के दूध में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है. प्रवाहिका में तुलसी के पत्ते का रस दो चम्मच सुबह खाली पेट लेने से रोग आगे नहीं बढ़ता है.
  • कृमि रोगों में तुलसी के पत्तों का फांट सेवन करने से कृमि जन्य सभी उपद्रव शांत हो जाती हैं.
  • पेट में दर्द हो तो तुलसी के पत्तों को मिश्री के साथ सेवन कराया जाता है तथा संग्रहणी में तुलसी बीज चूर्ण 3 ग्राम सुबह-शाम मिश्री के साथ और बवासीर में इसी चूर्ण को दही के साथ भी सेवन कराया जाता है.
  • कुष्ठ रोग में तुलसी पत्ते का रस प्रतिदिन सुबह खाली पेट पीने से लाभ होता है. दाद, छाजन व खाज में तुलसी का पंचांग नींबू के रस में मिलाकर लेप करते हैं.
  • उठते हुए फोड़ों में तुलसी के बीज एक माशा तथा दो गुलाब के फूल एक साथ पीसकर ठंडाई बनाकर पीते हैं. पीती निकलने पर मंजरी व पुनर्नवा की पत्ती बराबर मात्रा में लेकर संतरे का रस मिलाकर रात को चेहरा धोकर अच्छी तरह से लेप करते हैं. व्रणों के शीघ्र भरने तथा संक्रमण ग्रस्त जख्मों को धोने के लिए तुलसी के पत्तों का क्वाथ बनाकर उसका ठंडा लेप करते हैं.
  • रक्त विकारों में तुलसी व गिलोय का 3-3 माशा के मात्रा में क्वाथ बनाकर दिन में दो बार मिश्री के साथ सेवन करना लाभदायक होता है.
  • आधासीसी के दर्द में तुलसी की छाया में सुखाई हुई मंजरी 2 ग्राम शहद के साथ सेवन कराया जाता है. मेधावर्धन हेतु तुलसी के 5 पत्ते जल के साथ प्रतिदिन लेना चाहिए. असाध्य सिर दर्द में तुलसी पत्ते और रस कपूर मिलाकर सिर पर लेप करने पर तुरंत आराम मिलता है.
  • संधिशोथ में अथवा गठिया के दर्द में तुलसी का पंचांग चूर्ण 4 माह तक गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन कराया जाता है.
  • साइटिका रोग में तुलसी के पत्ते का क्वाथ से रोग ग्रस्त वातनाड़ी का सेक करने से अच्छा लाभ होता है. इससे दर्द से राहत मिलता है.
  • मूत्रकृच्छ, पेशाब में जलन होना में तुलसी बीज 6 ग्राम 15 ग्राम जल में रात्रि में भिगोकर इस जल को सुबह खाली पेट पीने से लाभ होता है. तुलसी के पत्ते का रस मिश्री के साथ सुबह-शाम सेवन करने से भी जलन से राहत मिलता है.
  • धातु दुर्बलता में तुलसी के बीज एक माशा गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करना लाभदायक होता है. नपुंसकता में तुलसी का बीज चूर्ण अथवा मूल संभाग पुराने गुड़ के साथ खिलाने पर तथा नित्य डेढ़ से 3 ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ 5 सप्ताह तक सेवन करने से लाभ होता है.
  • महिलाओं के प्रदर रोग में तुलसी पत्ते को अशोक के पत्ते के रस के साथ तथा मासिक धर्म की पीड़ा में क्वाथ को बार-बार देने से लाभ होता है.

मात्रा- तुलसी के रस दो-तीन चम्मच, बीज का चूर्ण 1 से 2 ग्राम और क्वाथ एक से दो ऑन्स सेवन करना चाहिए.

तुलसी की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि-

तुलसी को दैवी गुणों से अभिपूरित मानते हुए इसके विषय में अध्यात्म ग्रंथों में काफी कुछ लिखा है. इसे संस्कृत में हरीप्रिया कहते हैं. इस औषधि की उत्पत्ति से भगवान विष्णु का मन संताप दूर हुआ इसी कारण यह नाम इसे दिया गया है. ऐसा विश्वास है कि तुलसी की जड़ में सभी तीर्थ, मध्य में सभी देवी- देवताओं और उपरी शाखाओं में सभी वेद स्थित हैं. इस पौधे की पूजा विशेषकर महिलाएं करती हैं. वैसे वर्षभर तुलसी के गमले का पूजन होता है. लेकिन इसे कार्तिक महीने में विशेष पूजा किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि जिसके मृत शरीर का दहन तुलसी की लकड़ी की अग्नि से किया जाता है वह मोक्ष को प्राप्त होते हैं उनका पुनर्जन्म नहीं होता है.

पद्म पुराण में लिखा है कि जहां तुलसी का एक पौधा होता है वहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश सभी निवास करते हैं. आगे वर्णन में आता है कि तुलसी की सेवा करने से महापाप भी उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे सूर्य के उदय होने से अंधकार नष्ट हो जाता है. कहते हैं कि जिस प्रसाद में तुलसी नहीं होती है उसे भगवान स्वीकार नहीं करते हैं.

वनस्पति को प्रत्यक्ष देव मानने और घर-घर में उसके लगाने पूजा करने के पीछे संभवत यही कारण है कि यह सर्व दोष निवारक औषधि, सर्व सुलभ तथा सर्वोपरि है. वातावरण में पवित्रता, प्रदूषण का शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मजबूत करने, श्रद्धा तत्व को जीवित करने जैसे अनेकों लाभ तुलसी के हैं. तुलसी की सूक्ष्म और कारण शक्ति अद्वितीय है. यह आत्म नदी का पथ प्रशस्त करती है तथा गुणों की दृष्टि से भी तुलसी संजीवनी बूटी है.

नोट- यह लेख शैक्षिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.

स्रोत- जड़ी-बूटी चिकित्सा एक संदर्शिका.

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Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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