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मासिक धर्म किस उम्र तक चलता है ? इस दौरान कितनी मात्रा में खून निकलना चाहिए ? जाने विस्तार से

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 1 MinUpdated On April 14, 2022

हेल्थ डेस्क- अनेक कारण भी हैं जिनका प्रभाव मासिक धर्म पर पड़ता है. जैसे- एकाएक जलवायु का बदल जाना, नए स्थान तथा नई परिस्थितियों में आ जाना तथा मानसिक कारण इत्यादि. कुछ महिलाओं को एक बार मासिक धर्म आकर फिर कुछ दिनों तक नहीं आता है और लंबे समय के अंतर फिर से आने लगता है. मासिक धर्म प्रायः 13- 14 वर्ष की उम्र से शुरू होकर 45 से 50 वर्ष की उम्र तक नियमित रूप से होता रहता है, इस उम्र के पश्चात इसका आना स्वयं बंद हो जाता है. कुछ ऐसी भी महिलाएं देखी जाती हैं जिनको इससे अधिक उम्र तक मासिक धर्म होते देखा गया है. इसी प्रकार ऐसी महिलाओं की संख्या भी कम नहीं है जिनका मासिक धर्म 35 साल की उम्र पहुंचते-पहुंचते बंद हो जाता है. संतान हीन महिलाओं में मासिक धर्म अपेक्षाकृत कम समय तक ही स्थाई रूप से रहता है. जिन महिलाओं को मासिक धर्म देर से शुरू होता है उनमें वह शीघ्र समाप्त भी हो जाता है. गर्म देश की महिलाओं में मासिक धर्म अपेक्षाकृत शीघ्र आरंभ होकर शीघ्र ही खत्म भी हो जाता है. मासिक धर्म बंद होने की अवस्था को आर्तवक्षय या अवस्था का बदलना कहते हैं.

मासिक धर्म किस उम्र तक चलता है ? इस दौरान कितनी मात्रा में खून निकलना चाहिए ? जाने विस्तार से

मासिक धर्म की मात्रा एवं संगठन-

1 .स्वस्थ अवस्था में मासिक धर्म निकलने वाले रक्त की कुल मात्रा 55 से 165 ग्राम तक की होती है. इससे कम या अधिक रक्त निकलना मासिक धर्म संबंधी रोग का संकेत होता है.

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2 .मासिक स्राव में गर्भाशय की श्लेष्मल कला का स्राव या श्लेष्मरहित होता है. प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली के जनक लुई- कुने का कहना है कि मासिक धर्म इस शरीर में उत्पन्न होने वाले रसों की अधिकता प्रकट करता है. यह मासिक मिला हुआ स्राव होता है जो गर्भाशय से निकलता है. मासिकस्राव की एक निजी दुर्गंध होती है. कारण कि यह केवल गर्भाशय के निकला हुआ रक्त ही नहीं होता है बल्कि मार्ग में उनके साथ मुत्रादि चीजें मिल जाती है. जिससे वह दुर्गंध युक्त हो जाता है.

मासिक धर्म संबंधी विशिष्ट नैदानिक ज्ञान-

1 .मासिक स्त्राव 12 से 14 वर्ष की अवस्था से शुरू होकर 45 से 50 वर्ष की उम्र पर रजोनिवृत्ति काल में समाप्त होता है.

2 .आर्तव चक्र सामान्य रूप से 28 दिन में पूरा होता है. कभी-कभी यह 3 सप्ताह या 5 सप्ताह में भी पूरा होता है.

3 .मासिक स्राव की अवधि सामान्य रूप से 3 से 5 दिन तक होती है.

4 .शुरू का आर्तव थोड़ा चिपचिपा होता है साथ ही काला का जो बाद में चमकदार लाल खरगोश के रक्त के समान हो जाता है. अंत में उसका रंग ब्राउनिस हो जाता है.

5 .आर्तव में Cellular Delris,Partially Heamolysed blood तथा श्लेष्मा का मिश्रण होता है. इसमें फाइब्रिनोजन की मात्रा कम रहती है. साथ ही प्रोथ्रोम्बिन का पूर्ण अभाव होता है. श्वेत कणों की अधिक मात्रा खून में मिली रहती है.

6 .आर्तव में प्रायः छोटे-छोटे थक्के मिलते हैं.

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7 .आर्तव स्राव से थोड़ा पहले गर्भाशय में उत्तेजनशीलता बढ़ जाती है. साथ ही गर्भाशय कुछ तन सा जाता है. मासिक स्राव के शुरू होने पर गर्भाशय में संकुचन बढ़ जाता है जो स्राव काल के आखिर तक रहता है.

8 .जिन महिलाओं के संतान नहीं होती उनकी नाभि के नीचे उदर भाग में ऐठन युक्त दर्द होता है.

9 .मासिक स्राव से पहले या स्राव काल में एक या दो दिन तक मासिक स्राव सूचक लक्षण जैसे सिर दर्द, कमर में दर्द, स्तनों में गुदगुदी या झुनझुनी, व्याकुलता या घबराहट आदि पैदा हो जाती है.

10 .किसी- किसी महिला में मासिक स्राव से पहले कुछ खास लक्षण मिलते हैं जो प्रायः आर्तव पूर्व तनाव के कारण होते हैं यह लक्षण मासिक धर्म से 8- 10 दिन पहले ही प्रकट होने लगते हैं.

आर्तव पूर्ण तनाव में निम्न लक्षण मिलते हैं.

थकावट, अवसाद हल्लास या जी मिचलाना, उल्टी, चक्कर, चिंता, क्षुब्द्धता, अनिद्रा, स्तनों में सूजन, कंधों में दर्द, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, बारंबार मूत्र त्याग, पेट में गड़बड़, मलावरोध, फुल जाने की अनुभूति होना, नासा अधिरक्तता, 1 से 5 किलो तक भार की वृद्धि, पैरों का सूजन युक्त होना, स्तनों को छूने पर दर्द की अनुभूति होना, अर्धावभेदक अर्थात आधासीसी का दर्द यानी माइग्रेन. किसी- किसी स्त्री के मुख पर पिदिकाएं ( मुहासे ) भी निकल आती है.

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उपर्युक्त आर्तव पूर्ण तनाव संबंधी संरक्षण वैज्ञानिकों के विचार से भिन्न भिन्न कारणों से होते हैं. कुछ वैज्ञानिकों का विचार है कि इस्ट्रोजन से अधिक मात्रा में स्रावित होने के कारण शरीर में जल संचय होने से बनते हैं. कुछ विद्वान प्रोजेस्टेरोन के कारण मानते हैं. कुछ मनोवैज्ञानिक आधारजन्य मानते हैं जबकि कुछ वैज्ञानिक एड्रेनल कोर्टेक्स प्राकृतिक कार्य में बाधा पड़ने के कारण मानते हैं.

मासिक धर्म और स्वास्थ्य-

शास्त्रकारों ने मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के लिए अनेक आदेश, उपदेश तथा निषेध बतलायें हैं. ऋतुमति महिलाओं को रहन-सहन, खान-पान आदि विषयों में विशेष सावधानी रखनी चाहिए. ऐसी महिला को अधिक परिश्रम से बचना चाहिए साथ ही उसे अपने को गर्मी एवं सर्दी की अधिकता से भी बचाना चाहिए.

शास्त्रकारों ने मासिक धर्म के दौरान स्न्नान का भी निषेध किया है. यह भी बताया है कि उसे अधिक भारी चीज नहीं उठानी चाहिए. जिस महिला या लड़की को मासिक धर्म हुआ है उसे अलग रखने का आदेश है. प्राचीन काल में लोगों को विश्वास था कि अधिक खून निकलने से महिला को कोई भी विपत्ति या उत्सर्ग लग सकता है. इसलिए उसे 3 दिन तक विश्राम एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अपवित्र माना जाता था.

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आधुनिक चिकित्सा विज्ञान उपर्युक्त अधिकार तथ्यहीन विचारों एवं निर्देशों को निर्मूल सिद्ध कर दिया है. उनके अनुसार मासिक धर्म एक नितांत प्राकृतिक क्रिया है. जब तक महिला को तीव्र वेदना अथवा अधिक रक्तस्राव ना हो उसे अपने दैनिक कार्य भली-भांति करते रहना चाहिए. उसे व्यायाम एवं आसन आदि भी करते रहना चाहिए. साथ ही श्रोनिस्थ अंगों में अधिरक्तता हटाने के लिए हल्का विरेचन देना चाहिए. महिला को प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात कपड़े पहनने चाहिए. महिला को आर्तव स्राव समय सैनिटरी पैड बांधे रखना चाहिए. मैंले कपड़े कभी भी इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए. पैड भींगने पर बदलते रहना चाहिए. यदि उन्हें समय से नहीं बदला गया तो महिला की योनि से बहुत ही दुर्गंध आने लगता है. योनि के अंदर कोई कपड़ा नहीं रखनी चाहिए. इससे एक तो गंदगी का विस्तार होता है और दूसरी कुमारी लड़कियों की झिल्ली के प्रवेश से फट जाती है. यदि किसी कारणवश पैड का व्यवहार संभाव न हो तो कम से कम स्वच्छ मुलायम कपड़े को गर्म पानी में उबालकर एवं सुखाकर प्रयोग में लाना चाहिए.

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नोट- जिस समय मासिक स्राव चलता रहता है उस समय गर्भाशय में किसी उपसर्ग यानी इंफेक्शन के प्रवेश होने की संभावना नहीं रहती है इसीलिए आर्तव स्राव के साथ अधिक संख्या में रक्त के श्वेत कणोंका भी उत्सर्जन आर्तव रक्त में होता रहता है.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है अधिक जानकारी के लिए योग्य स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह लें. धन्यवाद.

स्रोत- स्त्रीरोग चिकित्सा पुस्तक.

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The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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