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आमाशय व्रण ( पेप्टिक अल्सर ) क्या है ? जाने कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 2 MinUpdated On December 22, 2021

हेल्थ डेस्क- पेप्टिक अल्सर को आमाशय व्रण, पेप्टिक व्रण, परिणामशूल, ग्रह्न्याशय व्रण, प्रपाचीय व्रण भी कहते हैं.

आमाशय व्रण ( पेप्टिक अल्सर ) क्या है ?

पेप्टिक अल्सर पाचन तंत्र का आम रोग है जो लगभग 1% रोगियों को प्रभावित करता है. पेप्टिक अल्सर छोटी आंत के ऊपरी भाग ड्यूडिनम, आमाशय तथा भोजन नली के निचले भाग में बनने वाले घाव को कहते हैं. इसे क्रमशः ड्यूडिनल अल्सर, गैस्ट्रिक अल्सर तथा इसोफेजल अल्सर कहते हैं.

आमाशय व्रण ( पेप्टिक अल्सर ) क्या है ? जाने कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

विकृति विज्ञान- स्वस्थ आमाशय की म्यूकस मेम्ब्रेन सदैव आमाशय रस से भींगी हुई रहती है. आमाशय रस में अधिक भाग स्वतंत्र हाइड्रोक्लोरिक एसिड का होता है. इसमें पाचक रस, एंजाइम्स, पेप्सिन मिला हुआ रहता है. सामान्य अवस्था में आमाशय रस केवल आमाशय में आये हुए आहार पर ही क्रिया करता है. लेकिन यदि हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा ज्यादा बनने लगती है या गाढ़ा हो जाता है तो यह भोजन के साथ - साथ आमाशय की दिवार पर क्रिया करने लगता है जिसके कारण आमाशय की दिवार में कहीं पर श्लेष्मीय स्तर का थोडा सा हिस्सा उखड़ जाता है जिसके परिणाम स्वरुप वहां पर व्रण ( घाव ) बन जाता है. ऐसे घाव को आमाशयिक व्रण या गैस्ट्रिक अल्सर कहते हैं.

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कभी- कभी आमाशय के आगे ड्यूडेनम में भी उसके प्रथम डेढ़ इंच के भाग में घाव बन जाता है जिसे ड्यूडेनल अल्सर कहते हैं.

पेप्टिक व्रण का मतलब क्या है ?

इन दोनों में से किसी भी स्थान में हुए घाव से है. यह मुख्यतः छोटी आंत के उपरी भाग में , आमाशय में अथवा भोजन निगलने के नली के निचे बन जाता है.

आमाशय व्रण ( पेप्टिक अल्सर ) होने के क्या कारण हो सकते हैं ?

1 .ऐसे 10% व्यक्तियों में अधिक मात्रा में और तेज हाइड्रोक्लोरिक एसिड पैदा करने की जन्म से ही प्रवृति होती है और आगे चलकर यही व्यक्ति पेप्टिक अल्सर से ग्रसित हो जाते हैं.

2 .चिंता, अधिक धूम्रपान, मानसिक परेशानियाँ और तनाव इस बीमारी में सहायक होते हैं.

3 .रुखी- सुखी रोटी प्याज या चटनी के साथ खाने से भी अमाशय का स्तर छिल जाता है जिसके कारण पेप्टिक व्रण का निर्माण हो जाता है.

4 .ज्यादा मसालेदार भोजन करने से आमाशय में क्षोभ उत्पन्न होकर आमाशय व्रण का कारण बनता है.

5 .कुछ ऐसे औषधियां भी आमाशय व्रण का कारण बनते हैं. सिगरेट पिने वाले लोगों को भी आमाशय व्रण का खतरा अधिक रहता है.

6 .आमाशायिक व्रण पुरुषों में अधिक होते हैं. इसके विपरीत गृहणी व्रण पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक मिलते हैं.

7 .जब आमाशय और आंत्र में ऑपरेशन द्वारा सीधा सम्बन्ध स्थापित किया जाता है तब जिस स्थान पर आमाशय तथा आंत्र काटकर जोड़े जाते हैं उस स्थान पर व्रण की उत्पत्ति हो सकती है.

8 .यह रोग प्रायः युवावस्था में 25 से 40 वर्ष की उम्र में विशेषकर पुरुषों में होता है.

9 आहार- विपर्यय, अनियमित दिनचर्या, चाय का ज्यादा सेवन, प्रत्येक काम में जल्दी- विशेषकर भोजन के समय, कब्ज, विटामिन सी की कमी, आघात, विषमयता, पायरिया रोग, दरिद्रता, व्यापक दग्धव्रण, खाली पेट धूम्रपान करना इत्यादि इस रोग के लिए मुख्य भूमिका निभाते हैं.

10 .रोग के पुनरावर्तन, उपसर्ग, अनियमित आहार और शीतऋतू आदि से भी इसका सम्बन्ध प्रतीत होता है.

11 .एम्फिसीमा, कॉर पल्मोनेल, रियूमेटिक डिजीज, पोलिसिस्थेमिया, सिरोसिस, क्रुसिंग सिंड्रोम, हाइपर पैराथायोडिज्म आदि रोगों तथा सैलीसिलेट, स्टेराइड्स,टोल्बुटामाईड, सेप्टीसीमिया आदि से भी इस रोग का सम्बन्ध प्रतीत होता है.

12 .ACTH तथा कोर्टीकोस्टेराइड्स का अधिक दिनों तक प्रयोग करने से आमाशय के सर्व को उत्तेजित करता है इसके अलावा गर्भावस्था भी पेप्टिक अल्सर को बढ़ावा देता है.

13 .कुछ जानकारों का कहना है कि O ब्लडग्रुप के व्यक्तियों में यह रोग ज्यादा मिलता है. उससे कम B ब्लडग्रुप में, उससे भी कम A ब्लडग्रुप और उससे भी कम A- B ग्रुप में.

14 .संभवतः विटामिन ए और बी की न्यूनता के कारण.

15 .देहातों की अपेक्षा शहरों में निवास करने वालों में यह रोग ज्यादा होता है क्योंकि शहर के लोग सदैव अशांत रहते हैं. व्याकुलता के कारण एड्रीनल कोर्टेक्स के सूक्ष्म रस की अधिकता भी इस रोग के कारण होते हैं.

16 .यह देखा गया है कि तीक्ष्णाग्नि प्रकृति के जो व्यक्ति  व्यवहार में चिंतित, क्रुद्ध या व्याकुल हो जाते हैं उनमे आमाशय व्रण होने का खतरा अधिक रहता है.

नोट- यूरोप तथा अमेरिका में किये गए शोधों से ज्ञात हुआ है कि 80% अल्सर के मरीजों के पेट में हैलीकोवेस्टर पाइलोरी नामक बैक्टीरिया होता है. यह बैक्टीरिया ही अल्सर के बढ़ने में मुख्य भूमिका निभाता है. यदि इस बैक्टीरिया को पेट में ख़त्म कर दिया जाए तो अल्सर के फिर बनने की संभावना ख़त्म हो जाती है.

पेप्टिक अल्सर की बीमारी जल्दबाजी, चिंताओं और गलत खान-पान का मिला- जुला परिणाम है. 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में न के बराबर लोग इस बीमारी से पीड़ित होते थे जबकि अब इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या निरंतर बढती ही जा रही है. महिलाओं तथा पुरुषों में यह बीमारी समान रूप से पाई जाती है.

प्रकार भेद से पेप्टिक अल्सर 2 तरह के होते हैं.

1 .तीव्र स्वरुप का पेप्टिक अल्सर.

2 .चिरकारी स्वरुप का पेप्टिक अल्सर.

1 .तीव्र स्वरुप के पेप्टिक अल्सर के कारण- यह पेप्टिक अल्सर विशेष रूप से टॉक्सिक तथा इंफेक्टिव डिजीज जैसे - युरीमिया, बैक्टीरिमिया आदि. यह एस्प्रिन तथा स्टेराइड्स के ज्यादा दिनों तक सेवन करने से भी होता है.

2 .चिरकारी स्वरुप का पेप्टिक अल्सर- दवाओं के अंधाधुंध सेवन करने से भी अल्सर होने की संभावना रहती है. पेट में ज्यादा अम्ल ( एसिड ) बनने से भी अल्सर होने का खतरा रहता है. इसके अलावा ज्यादा मिर्च- मसाला, तला हुआ भोजन, मानसिक तनाव, शराब का अत्यधिक सेवन, धूम्रपान आदि कुछ ऐसे कारण हैं जो अल्सर की बीमारी को बढ़ाने में मददगार होते हैं. यही कारण है कि अल्सर के रोग में चिकित्सक ऐसी चीजों के सेवन से परहेज करने को कहते हैं.

आमाशय व्रण ( पेप्टिक अल्सर ) के लक्षण क्या है ?

1 .यह रोग अज्ञात रूप से धीरे- धीरे शुरू होता है और चिरस्थायी अजीर्ण के रूप में रहता है. जिसके कारण छाती में डाह और जलन की समस्या रहती है.

2 .आमाशय व्रण के लक्षण पहली बार तब सामने आते है जब व्यक्ति कई दिनों तक भरपेट मात्रा में गरिष्ट भोजन किया हो. रोगी को शुरू में भोजन के आधा से दो घंटे तक के बीच में पेट में बेचैनी अथवा भारीपन महसूस होता है. यह बेचैनी धीरे- धीरे दर्द का रूप धारण कर लेता है. यह दर्द जलन के रूप में होती है. यह दर्द ऊपर पेट में दाहिनी या बायीं या बीच में स्टर्नम के छोर से कुछ दूर लेकिन नाभि के ऊपर महसूस होती है और दर्द एक नियमित स्थान पर होती है. अगर रोगी से दर्द के बारे में पूछा जाए तो उसी स्थान पर उंगुली रखता है.

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3 .दर्द वाले स्थान को दबाने से रोगी को कष्ट होता है.दर्द लगभग आधे घंटे के बाद खुद ही कम या ख़त्म हो जाता है.

4 .उल्टी होने से या पाचक औषधि देने से दर्द शांत हो जाता है.

5 .सुबह के नसते से पहले दर्द नही होता है.

6 .आमाशय व्रण के दर्द में डाह अथवा काटने जैसी महसूस होती है कभी- कभी यह दर्द पीठ की तरफ महसूस होता है.

7 .आमाशय व्रण का मुख्य लक्षण पेट के उपरी भाग में दर्द और जलन का होता है.

8 .रात के भोजन के 2-3 घंटे बाद सोते समय या अर्धरात्रि में यह दर्द महसूस हो सकता है.

9 .गृहणी व्रण ( ड्यूडेनल अल्सर ) में रात के समय विशेषरूप से होता है. जिसके कारण रोगी का नींद खुल जाता है. शराब और मशालों के सेवन से दर्द में बढ़ोतरी होती है. लेकिन क्षार के सेवन से दर्द में कमी आती है.

10 .कुछ रोगियों में दर्द का लक्षण नही होता है लेकिन जैसे- भोजन के कुछ अंश मुंह में आना तथा अतिनिष्ठिवन आदि और कभी- कभी मुंह में पानी भर आने के लक्षण भी होते हैं.

11 .समय- समय पर लक्षणों की अधिकता में कमी होना इस रोग की एक विशेष प्रकृति है.

नोट- क्रोनिक पेप्टिक अल्सर संख्या में एक होता है. गैस्ट्रिक अल्सर का दर्द 1-2 घंटे बाद होता है जबकि ड्यूडेनल अल्सर का दर्द प्रारंभ होने में देर होता है और भोजन करने पर दर्द का शमन हो जाता है. आमाशय के सामने एब्ड़ोमिनल वाल कड़ी रहती है. भूख भी अच्छी लगती है. लेकिन गैस्ट्रिक अल्सर में भोजन से दर्द में वृद्धि होने के कारण रोगी भोजन करने से डरता है जिसके कारण खाना नही खता है और कमजोर होता चला जाता है. जबकि ड्यूडेनल अल्सर में भोजन से पीड़ा का शमन होने के कारण रोगी प्रायः कमजोर नही होता है. कभी- कभी उल्टी होता है तथा रक्त के कारण मल काला हो जाता है.

अल्सर के मुख्य लक्षण क्या है ?

* पेट में दर्द होना.

* पेट में भारीपन महसूस होना.

* खट्टी दाकारों का आना.

* छाती के ऊपर तक जलन का होना.

* अजीर्ण, अपच.

* जी मिचलाना.

शुरूआती लक्षण महसूस होने पर भी जब रोगी ध्यान नही देता है तो अन्दर घाव बढ़ता रहता है. तब कभी- कभी मुंह से खून की उल्टी होती है अथवा मल काला हो जाता है.

यह लक्षण इस बात का संकेत है कि अल्सर या तो फट गया है अथवा अल्सर से खून रिस रहा है. ऐसा होने पर आप तुरंत किसी योग्य चिकित्सक के पास रोगी को ले जाएँ. क्योंकि यह लक्षण बताते हैं की तत्काल ऑपरेशन की जरुरत है. अल्सर के फटने को ड्यूडिनल परफोरेशन कहते हैं.

कभी- कभी अल्सर के कारण आँतों में रुकावट आ जाती है जिसके फलस्वरूप उल्टी होने लगती है जिसमे 24 घंटे पुराना आहार भी निकल सकता है. इस स्थिति को गैस्ट्रिक आउटलेट आब्सट्रक्टीव कहते हैं.

आमाशय व्रण का सामान्य चिकित्सा क्या है ?

1 .रोगी को चिकित्सा की सम्पूर्ण अवधि में पूर्ण विश्राम करना चाहिए.

2 .मानसिक विश्राम के लिए रोगी को आश्वासन देना चाहिए तथा मनोवैज्ञानिक चिकित्सा करना चाहिए.

3 .रात को 6 से 8 घंटे की नींद लेना चाहिए.

4 .रोगी को चिंता बिलकुल नही करना चाहिए.

5 .धूम्रपान, शराब तथा एसिडिक पदार्थों का सेवन जीवन पर्यंत नही करना चाहिए. नही तो यह रोग फिर से आक्रामक हो सकता है.

6 उपसर्ग की समुचित चिकित्सा करनी चाहिए. विशेषकर दांतों की स्वच्छता तथा पायोरिया की तरफ ध्यान देना चाहिए.

7 .रोगी को यथा संभव शीत से बचना चाहिए.

8 .अल्प मात्रा में उपयुक्त आहार देने से तथा अम्ल निरोधी औषधियों के प्रयोग से आमाशय की दिवार के तनाव तथा दर्द में कमी होती है. साथ ही ऐंठन भी कम हो जाता है.

9 .चिकित्सा की सम्पूर्ण समय में विटामिन सी का सेवन करते रहना चाहिए. ताकि घाव शीघ्र भर जाए.

10 .इस रोग में दूध, घी या क्रीम अथवा मक्खन का अल्प मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है. अतः सबसे पहले रोगी को गर्म पानी घूंट- घूंट कर पीना चाहिए.

11 .किसी ठोस या गरिष्ट चीजों का सेवन नही करना चाहिए.

12 .तले हुए भोजन, कच्ची सब्जी,आचार- चटनी, कच्चा तेल, सलाद, धुम्रपान तथा कॉफी, चाय, सिरका, सोडावाटर, बादाम, अखरोट, गरम मसाले, तिल, मूंगफली का तेल, खट्टा दही,तम्बाकू, बीजों तथा छिलका युक्त सब्जी दाल, अधिक गर्म अथवा शीतल पेय का सेवन न करें.

13.पानी भी एक समय में एक गिलास से ज्यादा नही पीना चाहिए.

14.रोगी का पेट हमेशा साफ रखने का व्यवस्था करना चाहिए.

15 .फलों का रस, मीठा दूध,नारियल का पानी और गाजर आदि का सूप पिलायें.

आमाशय व्रण ( पेप्टिक अल्सर ) का घरेलू और आयुर्वेदिक उपाय-

1 .प्रवालादी चूर्ण 1 ग्राम, एलादी चूर्ण 1 ग्राम, अभ्रक भस्म 10 मिलीग्राम और स्वर्ण वसंतमालती वटी या कामदुधा वटी 1 गोली ऐसी एक मात्रा सुबह- शाम सेवन कराएं.

2 .धात्री रसायन 6 ग्राम की मात्रा में सुबह- शाम सेवन कराएं.

3 .द्रक्षादी चूर्ण 2 ग्राम, श्रीखंड चूर्ण 1 ग्राम और छर्दऋपु चूर्ण आधा ग्राम दिन में 2 बार अनार शर्बत या पानी के साथ सेवन कराएं.

4 .आरोग्यवर्धिनी वटी या पुनर्नवादि मंडूर या नवायस लौह 2 गोली अर्क मकोय , नारियल पानी या अनार के शर्बत के साथ सेवन कराएं.

5 .उल्टी बंद करने के लिए मयूर पुच्छ भस्म, पीपल छाल भस्म या कर्पुरासव आदि भी उत्तम है.

6 .कब्ज हो तो गुलद या काली द्राक्ष या स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण आदि मृदु विरेचन योग सेवन कराएं.

7 .खून बंद करने के लिए अनार पुष्प चूर्ण, गैरिकम, शुद्ध फिटकिरी, अकीक पिष्टी या कहरवा पिष्टी आदि का सेवन कराएं.

8 .बुखार हो तो महासुदर्शन वटी का सेवन कराएं.

9 .सूतशेखर रस, कुष्मांड पानक, शंख भस्म, चंद्रकला रस, कपर्द भस्म और धनिया हिम आदि उत्तम है.

नोट- उपर्युक्त योगों के योग्य चिकित्सक की देख - रेख में नियमित सेवन करने से आमाशय व्रण बिना ऑपरेशन के ठीक हो जाते हैं.

यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.

चिकित्सा स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक से. 

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-: Note :-

The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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