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उन्डूकपुच्छशोथ ( Appendicitis ) क्या है? जानें कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 2 MinUpdated On December 18, 2021

हेल्थ डेस्क- इसे आंत्रपुच्छशोथ, आंत्रपरिशिष्टशोथ, आंत्रगुल्म और एब्डोमिनल टॉन्सिल्स कहते है.

रोग परिचय- एपेंडिक्स के शोथ को एपेंडीसाइटिस कहते हैं. इस रोग में एपेंडिक्स के छिद्र में रुकावट होने से शोथ ( सूजन ) पैदा हो जाता है. एपेंडिक्स में उपसर्ग खून के द्वारा पहुच सकता है. एपेंडिक्स रोग बालकों तथा युवकों में ज्यादा होता है. इस रोग का शुरुआत अर्धरात्रि के समय अकस्मात् होता है. इस रोग की शुरुआत होने से पहले अनियंत्रित भोजन का इतिहास मिलता है.

उन्डूकपुच्छशोथ ( Appendicitis ) क्या है? जानें कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

इस रोग में पेट की दाहिनी तरफ काफी दर्द होता है. मितली और उल्टी होता है. रोगी को पेट फूलने और कब्ज के साथ बुखार आदि विकार होते हैं.

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रोग के आक्रमण का अनेक बार होना इस रोग की विशेषता है. अनेक बार आवेगों के आक्रमण के कारण रोग की चिरकालिक अवस्था हो जाती है. जिसके कारण डिस्पेप्सिया के लक्षण प्रधान हो जाते हैं.

 अपेंडिसाइटिस प्रायः दो प्रकार के होते हैं.

1 .तीव्र अपेंडिसाइटिस

2 .चिरकालिक अपेंडिसाइटिस

1 .तीव्र अपेंडिसाइटिस- इस विकृति में अपेंडिक्स में तीव्र सूजन हो जाता है. यह पुरुष और महिला दोनों में सामान्य रूप से मिलता है. विशेष रूप से युवावस्था में पुरुष इस रोग से अधिक प्रभावित होते हैं.

यह रोग अत्यंत उग्र स्वरूप का होता है. यह विकृति की एक अवस्था है जो ऑपरेशन के अंतर्गत आती है. लेकिन आजकल नवीन औषधियों, एंटीबायोटिक तथा सल्फा ड्रग्स की मदद से अनेक बार शांत हो जाता है.

तीव्र अपेंडिसाइटिस की यदि तत्काल चिकित्सा न की गई तो वह शीघ्र ही प्राणघातक हो जाती है. इसलिए चिकित्सक को तत्काल दैहिक तथा प्रायोगिक परीक्षाओं द्वारा तुरंत निदान करके उपयुक्त चिकित्सा का उपाय करना चाहिए.

तीव्र अपेंडिसाइटिस का कारण क्या है ?

खून का कम मिलना.

पेल्विक इन्फ्लेमेशन.

बाह्य पदार्थ.

फीकोलिथ्स.

जनरेलाइज्ड इंफेक्शन.

सहायक कारण या प्रवृत्ति उत्पन्न करने वाले कारण भी कई प्रकार के होते हैं जैसे कि-

अपेंडिक्स का लंबा होना.

इस में घुमाव पड़ जाना.

सूजन का पूर्व में हल्का आक्रमण.

व्यस्क पुरुषों में कॉमन तथा वृद्ध में कभी-कभी.

कॉमन इन सिविलाइज्ड.

आहार में प्रोटीन की अधिकता तथा रेशेदार की कमी.

इस रोग का विशिष्ट कारण पूयोत्पादक जीवाणु, विशेषकर स्ट्रेप्टोकोलाई, पायोजेनिज एवं बैक्टेरियम कोलाई होते हैं. इसके अलावा आंत के बैक्टीरिया भी इसके लिए उत्तरदाई हो सकते हैं?

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तीव्र अपेंडिसाइटिस के लक्षण क्या है?

पेट में दर्द होना- 

1 .अकस्मात् पेट में दर्द होना मुख्य लक्षण है. यह दर्द मुख्य रूप से रात के अंतिम पहर में और प्रातः काल में शुरू होता है. रोगी सोते से जाग जाता है. रोगी को पेट में चुभने जैसा दर्द होता है जो नाभि प्रदेश में महसूस होता है. तथा 24 घंटे में दक्षिण इलियक फोसा में केन्द्रित हो जाता है. कभी- कभी एपेंडिक्स अपने सही स्थान पर न रहकर दुसरे स्थान पर खिसक जाता है. इस अवस्था में दर्द दाहिनी तरफ की पसलियों के निचे या कमर के पास होती है.

हल्का बुखार-

99 से 100 डिग्री फारेनहाईट अथवा 101- 102 डिग्री फारेनहाईट तक बुखार रहता है.

मितली एवं उलटी होना-

दर्द शुरू होने पर रोगी का जी मिचलाता है और 1-2 बार उल्टी भी हो जाता है. हालाँकि उल्टी देर तक नही रहता है लेकिन मितली बनी रहती है.

कब्ज और अतिसार-

इस रोग में प्रायः कब्ज उपस्थित रहता है. और रेक्टम, पेल्विक कोलन के आक्रांत होने पर श्लेष्मायुक्त अतिसार विशेषकर बच्चों में मिलता है. इलियम टाइप के एपेंडिक्स में पानी जैसे पतले दस्त होते हैं. पूरा मलबंध का होना इस रोग का दूसरा लक्षण है. कभी- कभी उल्टी के साथ अतिसार की प्रवृति देखी जाती है. लेकिन कब्ज अधिक सामान्य रहता है.

अरुचि-

इस रोग के रोगी में अरुचि ( खाने का मन नही करना ) का लक्षण भी मिलता है.

नाड़ी का तेज चलना-

इस रोग के रोगी में नाड़ी की गति बढ़ी हुई मिलती है और बुखार की अपेक्षा अधिक गतिमान हो जाती है. नाड़ी की गति का सुधार होना दशा में सुधार होने का सूचक है. और अगर नाड़ी गति नही घटती है और बढती ही जाती है तो समझना चाहिए कि रोगी की दशा ख़राब हो रही है इसलिए उसे तत्काल ऑपरेशन की आवश्यकता है.

उदर प्राचीर का कड़ा होना तथा दबाने से दर्द होना- मैकबर्नी पॉइंट के समीप प्राचीर कड़ी हो जाती है तथा दबाने से दर्द होता है.

रक्त में श्वेतकणों में वृद्धि होना- इस रोग में श्वेतकणों की वृद्धि 15-20 हजार तक की जाती है. साथ ही विष- संचार के लक्षण बढ़ जाते हैं.

अन्य लक्षण- कुछ समय के बाद यानि दुसरे दिन दर्द का LAक्षण ख़त्म होने लगता है और रोगी प्रायः लगभग 6- 7 दिन के लिए ठीक हो जाता है. लेकिन यदि एक सप्ताह बाद भी ठीक नही हुआ तो एपेंडिक्स में विद्रधि अथवा पूयभाव ( पीप ) उत्पन्न हो जाता है. ऐसी स्थिति में मैकबर्नी बिंदु के समीप एक उभार छुआ जा सकता है.

पेल्विक एपेंडीसाईटिस में गुदा की कठोरता कॉमन होती है.

नोट- सेप्टिक फीवर, कपकपी, हेपेटोमेगाली तथा पीलिया भी एपेंडीसाईटिस के साथ हो तो वह स्थिति एपेंडीकूलर परफोरेशन तथा पाइलोफ्लेबाइटिस की तरफ इशारा करती है.

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एपेंडिक्स रोग का निदान-

1. इस रोग से पीड़ित रोगी दाहिनी टांग को पेट पर सिकोड़कर सीधा पड़ा रहता है.

2 . अगर रोगी टांग को फैलता है तो पेट की मांसपेशियों पर खिचाव पड़ने से दर्द महसूस होता है.

3 .रोगी की पेट की दिवार अकड़ी हुई प्रतीत होती है. श्वास- प्रश्वास के साथ हिलती भी नही है.

4 .इस रोग से पीड़ित रोगी की जीभ शुष्क तथा मैली दिखती है.

5 .मैकबर्नी पॉइंट पर स्पर्श करने से स्पर्शाक्षमता का लक्षण मिलता है तथा स्पर्श करने पर रोगी अपने पेट को तान लेता है जिससे गहरा ( दबाना ) कठिन हो जाता है.

पेरिटोनियम में सूजन के प्रसरण कर जाने से एपेंडिक्स अथवा पेट की मध्य रेखा तथा नाभि के बाहर की तरफ सीधी खिची हुई रेखा से बने त्रिकोणात्मक रीजन की त्वचा में भी स्पर्शाक्षमता का लक्षण मिलता है.

नोट- मध्य आयु से नीचे के व्यक्तियों में यदि यह चिन्ह मिले तो एपेंडिक्स का निश्चय हो जाता है.

6 .नाड़ी की गति तीव्र यानि 80- 90 तक मिलती है साथ ही नाड़ी का बल भी कम होता है. अगर तापक्रम बिना बढे ही नाड़ी की गति तीव्र हो जाए तो ह्रदय पर विष का प्रभाव समझना चाहिए.

7 .नाड़ी की गति तीव्र होने पर रोगी की अवस्था गिरती जाती है.

अन्य संदेहात्मक लक्षण-

1 .अगर किसी को समय- समय पर पेट में दर्द होता रहता है तो एपेंडिक्स का संदेह करना चाहिए.

2 .एपेंडिक्स रीजन पर स्पर्शाक्षमता का होना इस रोग का मुख्य निदानात्मक लक्षण है.

एपेंडिक्स का सही समय पर इलाज नही होने पर निम्न समस्या हो सकती है-

1 .चिरकारी अवस्था का उत्पन्न होना.

2 .एपेंडिक्स का अन्य अवयवों से चिपक जाना.

3 .एपेंडिक्स में सड़न.

4 .घाव होना.

5 .विद्रधि की उत्पत्ति.

6 .ग्रंथि की उत्पत्ति अथवा छिद्र होना.

7 .एपेंडिक्स में छिद्र होने के पश्चात् परिटोनाइटिस का होना अनिवार्य हो जाता है.

8 .डायाफ्राम के निचे सब-फ्रेनिक -एब्सिस की उत्पत्ति.

9 .पोर्टल पायमिया.

10 .पेरीनेफ्रिक एब्सिस आदि उपद्रव हो सकते हैं.

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2 .चिरकालिक एपेंडीसाइटिस-

यह तीव्र एपेंडीसाइटिस की दीर्घकालिक अवस्था है. ऐसी अवस्था में एपेंडिक्स का सूजन कम हो जाता है लेकिन बिलकुल ख़त्म नही होता है. अधिकांश रोगियों में यह रोग शुरू से ही जीर्ण स्वरुप का होता है. समय- समय पर इसके आक्रमण होते रहते हैं. आक्रमणों का अन्तराल निश्चित नही होता है या तो एक- दो माह के अन्तराल पर आक्रमण होता है या एक बर्ष के अन्तराल पर दूसरा आक्रमण होता है.

चिरकालिक एपेंडीसाइटिस के लक्षण-

1 .इस अवस्था में ताप तथा नाड़ी की गति सामान्य रहती है.

2 .रोगी के पेट के बीच में या पेट के दाहिनी तरफ अधिक या साधारण ( हल्का ) दर्द होता है. जो कुछ ही समय के बाद बायीं इलियक फोसा में परिणत हो जाता है. कभी- कभी दर्द तेज भी हो जाता है.

3 .जी मिचलाना, उल्टी, कब्ज या अतिसार आदि विशेष लक्षण मिलते हैं.

4 .रोगी थोड़ी देर के बाद ही उपर्युक्त लक्षणों से मुक्त होकर और स्वस्थ दिखने लगता है.

5 .कुछ समय के बाद फिर से ऐसा ही लक्षण मिलते है और फिर शांत हो जाता है.

6 .कई बार रोगी को अज

एपेंडिक्स का घरेलू एवं आयुर्वेदि उपाय क्या है?

1 .तीव्र दर्द के समय हिंग्वाष्टक चूर्ण 1 ग्राम, लवण भास्कर चूर्ण 1 ग्राम, सज्जीक्षार 500 मिलीग्राम, कंपिल500 मिलीग्राम और लशुनादि वटी या महाशंख वटी 2-2 वटी दिन में 3-4 सेवन कराएं.

2 .दर्द के स्थान पर राई की पट्टियां तथा उष्ण पानी से सेंक करें.

3 .दर्द अधिक हो तो दर्द शांति और नींद लाने के लिए अफीम 100 मिलीग्राम या जातिफलादि चूर्ण 2 ग्राम पानी के साथ सेवन कराएं.

4 .उष्ण पानी में सेंधानमक डालकर बस्ति दें.

5 .दर्द शांत होने के बाद कज्जली 250 मिलीग्राम सुबह- शाम शहद के साथ दें और फिर सहजन ( मुनगा ) की छाल का क्वाथ पिलायें.

6 .आरोग्यवर्धिनी वटी 3-3 दिन में 2 बार पुनार्नावादि क्वाथ के साथ सेवन कराएं.

नोट- इस प्रकार आवश्यकतानुसार एक महीने तक चिकित्सा और पथ्य पालन करने से एपेंडिक्स का सूजन दूर होकर ठीक हो जाता है. यदि इस चिकित्सा से विशेष लाभ न हो तो ऑपरेशन करा लेना उत्तम है.

एपेंडिक्स से बचने के तरीके-

एपेंडिक्स से बचने के लिए अपने खाने के चीजों में फाइबर युक्त चीजों को नियमित शामिल करे. खाने में तेल- मसालों का प्रयोग कम से कम करें.पेट में कब्ज नही बनने दें  कब्ज की समस्या होते ही उपाय करें. पेट को साफ रखें. आहार में निम्बू, पुदीना आदि पाचक चीजों को नियमित शामिल करें. पानी अधिक पियें और भोजन सही समय पर करें, शरीर में चर्बी बढ़ाने वाले चीजों से दूर रहें. फ़ास्ट-फ़ूड का सेवन कम से कम करें.

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यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. ताकि आपको चिकित्सा का सही फल प्राप्त हो सके.

स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक द्वारा.

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The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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