हेल्थ डेस्क- श्वसनी- फुफ्फुसशोथ को कटारल न्यूमोनिया,लोबुलर न्यूमोनिया, कास जनित फुफ्फुस ज्वर, श्वास प्रणालिका प्रदाह, प्रणालीय श्वसनक ज्वर आदि नामों से जाना जाता है इसे अंग्रेजी में Broncho-pneumonia कहते हैं.
श्वसनी- फुफ्फुसशोथ क्या है?
यह एक विशेष प्रकार का न्यूमोनिया है जिसमे दोनों फेफड़ों में सूजन के साथ श्वासनलिकाओं में भी सूजन की अवस्था मिलती है. जिसे श्वसनी- फुफ्फुसशोथ कहते हैं. यह उपद्रव स्वरुप होता है. यह रोग ज्यादातर बालकों एवं वृद्धों में होता है. बालकों में इसे साधारण बोल- चाल की भाषा में पसली चलना कहते हैं. सामान्यतः यह ब्रोंकाइटिस से ही होता है इसलिए इसे ब्रोंको- न्यूमोनिया कहते हैं. इसमें फुफ्फुस में प्रदाह होता है. इस रोग का आक्रमण होते ही खांसी, बेचैनी, अत्यंत श्वासकष्ट, बुखार, छटपटाहट, प्यास अधिक लगना, सुस्ती, पसली चलना, तेज दर्द के साथ सुखी खांसी तथा रोगी को साथ- साथ श्वास लेने में कष्ट होती है. इसमें प्रायः बुखार 100- 102 डिग्री फारेनहाईट तक होता है.
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श्वसनी- फुफ्फुसशोथ होने के कारण क्या है?
1 .श्वसनी- फुफ्फुसशोथ रोग सामान्यतया न्यूमोकोकाई एवं एच- इन्फ्लूएंजी नामक जीवाणु से उत्पन्न होता है. इसके अतिरिक्त क्लैब्सीला न्युमोनी, स्टेफिलोकोकस तथा अन्य जीवाणु भी उतरदायी होते हैं.
2 .रोमांतिका, काली खांसी, डिफ्थीरिया, वातश्लेष्मक ज्वर आदि विषसंसर्गी रोगों के अंत में यह रोग होता है.
3 .कास रोग के अंत में, क्षय (TB ) में और तेज वायु के श्वास मार्ग में चले जाने पर इस रोग की उत्पति होती है.
4 .दूध पी रहे बच्चों में माता के अपथ्य सेवन से भी बच्चों में यह रोग उत्पन्न होता है.
5 .वयस्कों में यह रोग प्रायः तीव्र श्वसनी शोथ अथवा एंफ्लूएंजा के बाद देखने को मिलता है. जब कि रोगी की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है.
श्वसनी- फुफ्फुसशोथ के लक्षण क्या है?
1 .बुखार- श्वसनी- फुफ्फुसशोथ के रोगी को ठंड लगकर बुखार आता है, फिर कुछ दिनों में बुखार का वेग 102 डिग्री- 103 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाता है. इसमें बुखार धीरे-धीरे उतरता है. बीच-बीच में कुछ बढ़ भी जाता है.
2 .खांसी- इस रोग का आक्रमण अकस्मात होता है. श्वास- नलिकाओं में शोथ के कारण खांसी इसका एक प्रमुख लक्षण होता है. अधिकतर सूखी खांसी एवं पीड़ाकर होती है.
3 .श्वास कष्ट- इस रोग में श्वास कष्ट का लक्षण प्रत्येक रोगी में मिलता है.
4 .श्यावता- संक्रमण की तीव्रता के अनुसार रोग के प्रारंभ में ही श्यावता तथा पांडुता के लक्षण मिलते हैं.
5 .आंत्र संबंधी लक्षण- शिशुओं के प्रभावित होने पर इस रोग की आरंभिक काल में ही उल्टी और प्रवाहिका के लक्षण मिलने शुरू हो जाते हैं.
6 .नर्वस संबंधी लक्षण- रोग की उग्रता के अनुसार रोगी में बेचैनी मिलती है. शिशुओं में विशेषकर आक्षेप उत्पन्न होते हैं. व्यस्कों में तथा वृद्धों में भावहीनता और कभी-कभी सन्यास देखने को मिलता है.
7 .दुर्बलता- रोगी थका हुआ और बहुत दुर्बल दिखलाई देता है. सोते समय बालक रोगी की आधी आंखें खुली रहती है.
8 .श्वास संबंधी लक्षण– श्वास की गति बढ़ जाती है, समस्त वक्ष ( छाती ) में रोंकाई तथा क्रेपिटेशन मिलते हैं.
9 .वक्ष पीड़ा- फुफ्फुसावरण शोथ की अवस्था में रोगी प्रत्येक श्वास के साथ वक्ष में पीड़ा का अनुभव करता है.
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श्वसनी- फुफ्फुसशोथ विशिष्ट लक्षण-
सामान्यतः इस रोग में तापक्रम की वृद्धि रोग की गंभीर स्थिति के अनुपात में होती है. जिन रोगियों का तापक्रम बढ़कर 105 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाए उनमे मृत्यु की संभावना अधिक रहती है. वयस्कों में नाड़ी की गति 150 बार प्रति मिनट तक हो जाती है. बच्चों में तो इससे भी अधिक हो जाती है जिसे गिनना भी मुश्किल हो जाता है. श्वास की गति 40 से 80 तक हो जाती है.
कभी-कभी रोगी में बेचैनी प्रलाप तथा अनिद्रा आदि लक्षण विद्यमान रहते हैं.
रोगी का चेहरा तमतमाया हुआ रहता है.
प्रायः दस्त और उल्टियां होती है.
वयस्कों में श्लेष्मा ईंट के रंग का गाढ़ा चिपचिपा होता है. बच्चों में श्लेष्मा बहुत कम होता है जिसे छोटे बच्चे निगल जाते हैं.
दूसरे और पांचवें दिन के मध्य फेफड़ों के अंदर स्रावों की घनीभूत होने से प्लूरिसी के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं. ऐसी अवस्था में सीने को अंगुली से बजाने पर ठोसपन की आवाज आती है. स्टेथोस्कोप से सुनने पर करकराहट की आवाज सुनाई देती है.
रोगी की शक्ति क्षीण हो जाती है. यदि रोगी के बल का अधिक ह्वास हो जाए तो कास- श्वास बढ़ जाते हैं और शल्यज फुफ्फुस प्रदाह होकर रोगी की मृत्यु हो जाती है.
यह अत्यंत ही कष्टकारक संक्रामक रोग है. इसमें मृत्यु प्रायः कम होती है. श्वास कष्ट एवं शोथ से युक्त बच्चों में उत्फुल्लिका होती है. जिसके कारण बच्चों के वक्ष एवं कटि प्रदेश आध्मान तथा वायु से फूले प्रतीत होते हैं.
श्वसनी- फुफ्फुसशोथ अन्य निदानात्मक लक्षण-
- श्वास कठिनता, पुयता तथा बलगम इस रोग के मुख्य लक्षण है. यह सभी लक्षण निदान में विशेष मददगार होते हैं.
- रोगी की परीक्षा करने पर उसकी जिह्वा शुष्क मिलती है, नथुने फड़कते दिखलाई देते हैं. श्वास गति तीव्र तथा प्यास की अधिकता होती है.
- श्वास- प्रश्वास ध्वनि ब्रोंकियल अथवा ट्यूबलर किस्म की सुनाई पड़ती है. दोनों ओर रॉन्काई तथा फुफ्फुस तलों पर राल्स भी सुनाई पड़ते हैं.
- सुनने में हृदय गति तीव्र प्रतीत होती है.
- मूत्र मात्रा में कम तथा गहरे रंग का आता है.
भावीफल-
- छोटी आयु के बालक तथा अधिक उम्र के वृद्धों में नाड़ी की गति 130 मिलने पर चेहरे पर नीलापन, रक्त भार में कमी तथा बेचैनी आदि होने पर ह्रदय गति के अवरुद्ध होने की आशंका करनी चाहिए.
- वृद्ध रोगी को चिरकास, इम्फाई सीमा या नेफ्राइटिस का रोग होने पर यह रोग कष्ट साध्य होता है.
- यदि यह रोग बालक में 3 सप्ताह से अधिक रहे तो उरः क्षय रोग का संदेह करना चाहिए.
- रोगी के ठीक होने पर फेफड़े नॉर्मल हो जाते हैं, ठीक से चिकित्सा ना होने से रोग का निशान फेफड़ों में रह जाता है जो अंत में ब्रोंकिएक्टेटिस का रूप ले लेता है.
श्वसनी- फुफ्फुसशोथ का आयुर्वेदिक उपाय-
1 .तालिसादि चूर्ण 1 ग्राम, लवंगादि चूर्ण 1 ग्राम, श्रृंग भस्म 1/2 ग्राम और श्वासकुठार वटी 2 वटी ऐसी एक मात्रा सुबह- शाम रोगी को सेवन कराएं.
2 .कफपानक 20 ml कनकासव या दशमूलारिष्ट 20 ml को बराबर मात्रा में पानी मिलाकर और भागोतर वटी 2 गोली दिन में तीन बार सेवन कराएं.
3 .पुटपाक हर्रे या मुलेठी या सौंफ या लवंगादि वटी मुंह में रखकर चूसने को दें इससे खांसी का वेग रुक जायेगा.
4 .छाती पर गुनगुने पानी का सेंक करें अगर बच्चों को हो तो उबलते पानी से कमरे को गरम रखें.
5 .श्रंग्यादि चूर्ण 1 ग्राम और सितोपलादि चूर्ण 1 ग्राम दिन में 3-4 बार सेवन कराएं.
6 .च्यवनप्राश 5 ग्राम की मात्रा में सुबह- शाम सेवन कराएं.
7 .आवश्यकतानुसार प्रवालादि चूर्ण, द्राक्षासव, अर्जुनारिष्ट, वासारिष्ट, वासावलेह,प्रवाल भस्म, अभ्रक भस्म, कनकासव, श्वासकुठार रस, कफ केतु वटी आदि का सेवन करना उत्तम है.
8 .अंजीर के चार दाने दालचीनी 10 ग्राम को 250 ml पानी में उबालकर पिने से कफ शीघ्र निकलेगा.
नोट- उपर्युक्त चिकित्सा बड़ों की मात्रा है बच्चों को उम्र के अनुसार कम मात्रा में और चिकित्सक के निर्देशानुसार सेवन करना उपयुक्त होगा.
श्वसनी- फुफ्फुसशोथ का घरेलू उपाय-
1 .लहसुन-
लहसुन कुदरती रूप से बैक्टीरिया से लड़ने की ताकत रखता है. यह वायरस और फंगस से भी शरीर की रक्षा करता है. लहसुन में शरीर का तापमान कम करने और छाती व फेफड़ों में जमा कफ को बाहर निकालने की क्षमता होती है इसलिए श्वसनी- फुफ्फुसशोथ में लहसुन का इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद होगा. इसके लिए एक कप दूध में 4 कप पानी डालें और उसमें आधा चम्मच पिसा हुआ लहसुन डाल दें. अब इसे तब तक उबालें जब तक कि मिश्रण का एक चौथाई हिस्सा न रह जाए. इस मिश्रण को दिन में तीन बार पिए. लाभ होगा. यह बड़ों की मात्रा है बच्चों को उम्र के अनुसार दिया जा सकता है.
2 .मेथी के बीज-
मेथी के बीज में म्युकोलिटिक गुण होते हैं जो छाती में जमने वाले कफ को पतला करके निकालने में मदद करते हैं. इसलिए मेथी का सेवन करने से बंद छाती खुल जाती है. मेथी के सेवन से पसीना आता है जिससे बुखार कम हो जाता है और शरीर से टॉक्सिन बाहर निकलते हैं. इसके लिए दो कप पानी में एक चम्मच मेथी के दाने डालकर उनकी चाय बनाकर दिन में तीन- चार बार सेवन करें.
3 .तिल के बीज-
तिल औषधीय गुणों से भरपूर होता है. तिल का बीज कफ को बाहर निकालने में मददगार होता है. इसके लिए एक कप पानी में एक चम्मच तिल को उबालें. अब इसमें एक चम्मच अलसी के बीज मिलाएं और थोड़ी देर तक उबलने दें फिर इसे छानकर एक चम्मच शहद और थोड़ा-सा नमक मिलाकर इस मिश्रण का प्रतिदिन सेवन करें.
4 .भाप लें-
भाप लेने से संक्रमण कम होता है और साथ ही आपके सांस लेने की क्षमता को भी बेहतर बनाता है. भाप से खांसी कम होती है और छाती की अकड़न भी कम होती है.
5 .हल्दी-
हल्दी सांस की तकलीफ को दूर करने में मददगार होती है. यह कफ को कम करती है इसके साथ ही इसमें एंटीवायरल और एंटीबैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं जो संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं. इसके लिए गुनगुने सरसों के तेल में हल्दी का पाउडर मिलाएं और इससे गर्दन और छाती पर मसाज करें. इसके अलावे दिन में 2 बार गर्म दूध में हल्दी का पाउडर डालकर उसका सेवन करें. यह तुरंत असरकारी साबित होगा.
6 .तुलसी का पत्ता और काली मिर्च-
तुलसी का पत्ता और काली मिर्च हमारे फेफड़ों के लिए काफी फायदेमंद होती हैं. यह कुदरती रूप से न्यूमोनिया को दूर करने में मददगार होते हैं इसके लिए तुलसी के पत्तों का रस लेकर उसमें ताजी पिसी हुई कालीमिर्च मिलाइए और हर 6 घंटे पर इसका सेवन कीजिए अच्छा लाभ होगा.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.
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