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यकृत (Liver) का सिरोसिस क्या है ? जाने कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 1 MinUpdated On January 15, 2022

हेल्थ डेस्क- यकृत सिरोसिस को जीर्ण यकृद्- रोग अथवा यकृत का सिरोसिस ( Cirrhosis of the Liver ) कहते हैं

यकृत का सिरोसिस क्या है ?

यह एक यकृत का जीर्ण रोग है. इसमें यकृत के अंदर तांतव उत्तक अधिक मात्रा में बनने लगते हैं और यकृत की कोशिकाओं का स्थान लेने लगते हैं. जिसके कारण पहले तो यकृत सामान्य से अधिक बड़ा हो जाता है, लेकिन रोग के बढ़ने पर सिकुड़कर छोटा हो जाता है. इसके धरातल पर छोटी-छोटी गाँठ सी बन जाती है जो यकृत को टटोलने पर प्रतीत होती है.

यकृत (Liver) का सिरोसिस क्या है ? जाने कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

इस रोग में यकृत के अंतर्गत चिकालिक विषमयता के कारण फाइब्रस धातु की वृद्धि होती है. शुरुआत में यह रोग बहुत धीरे-धीरे प्रगति करता है.

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यकृत का सिरोसिस होने के कारण क्या है ?

  • मद्यपान का अधिक सेवन किंतु पौष्टिक भोजन तथा व्यायाम का अपेक्षाकृत बहुत कम करना दीर्घकाल तक और अधिक मात्रा में मदिरापान एवं सिरोसिस के बीच निश्चित रूप से गहरा संबंध होता है.
  • इस रोग के वास्तविक कारणों का अभी तक पता नहीं चल सका है.
  • सिफलिस, मलेरिया बुखार तथा बैक्टीरिया के उपसर्ग से इसका संबंध प्रतीत होता है.
  • आहार संबंधी कारण.
  • क्रॉनिक एक्टिव हेपेटाइटिस.
  • इम्यूनोलॉजिकल कारण.
  • मेटाबोलिक गड़बड़ी.
  • हैपेटिक कंजेशन.
  • रेडियोपैथिक या क्रिप्टोजेनिक कारण.

यकृत का सिरोसिस के लक्षण क्या है ?

लंबे समय तक इस रोग के लक्षण प्रतीत नहीं होते हैं. यह कंपनसेटीड सिरोसिस कहलाता है. इसके लक्षणों में जब वृद्धि होती है तब वे निम्न स्वरूप के लक्षण होटे हैं..

  • एनोरेक्सिया, मितली, उल्टी, आध्मान की उपस्थिति मिलती है.
  • धीरे-धीरे पेट तथा पैरों में सूजन उत्पन्न हो जाता है.
  • धीरे-धीरे शारीरिक दुर्बलता, शारीरिक क्षमता तथा शरीर का भार कम हो जाता है.
  • हिमेटिमेसिस और दस्तों में खून आता है.
  • रक्तार्श ( खुनी बवासीर ) की उपस्थिति.
  • महिलाओं में मासिक धर्म की रुकावट.
  • कब्ज अथवा अतिसार की उपस्थिति.
  • शुरुआत में इसके कोई लक्षण नहीं मिलते हैं. लेकिन कुछ समय बाद भूख नहीं लगता है. इसके अलावा जी मिचलाना, अफारा, अग्निमांद्य, कब्ज, कभी-कभी उल्टी में रक्त आना एवं यदा-कदा रोगी को स्वयं अपना बढ़ा हुआ यकृत बड़ी सी गाँठ के रूप में प्रतीत होता है.

इसके विभिन्न लक्षणों में क्रमानुसार निम्न प्रकार से प्रगति होती है.

  • यह 40 से 50 वर्ष की अवस्था में महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा होता है.
  • इसका प्रारंभ धीरे-धीरे वर्षों तक अज्ञात रूप से होता है. शुरुआत में रोगी को कोई कष्ट नहीं होता है.
  • शुरुआत में रोगी को भूख ना लगना तथा अरुचि के लक्षण होते हैं.
  • कई दिनों तक भूख ना लगने से शरीर के पोषण में कमी आने से रोगी का शरीर कृश तथा पांडूमय ( पीलापन ) दिखता है.
  • कृश्ता और अशक्ति रोग के प्रारंभिक लक्षण होते हैं, रोगी की शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है.
  • इसके पश्चात रोगी का पेट भारी रहने लगता है. उसके पेट में स्तम्भ तथा अफारा होता है, थोड़ा भी भोजन लेने पर पेट भारी हो जाता है.
  • छोटी आंत में शोथ की उपस्थिति रहने से मल पतला हो जाता है अर्थात अतिसार का लक्षण होता है अथवा मलावरोध की शिकायत रहती है.
  • पेट में अनेक बार दाहिनी तरफ दर्द का भी लक्षण मिलता है.
  • शरीर का वजन कम होने से शरीर कृश तथा त्वचा शुष्क दिखती है.
  • यकृत के उपर यह शरीर की त्वचा में अनेक फैली हुई शिराओं का जाल अथवा खुली त्वचा पर फूली हुई सूक्ष्म धमनियों का जाल दिखलाई पड़ता है.
  • त्वचा तथा नाखूनों पर पांडूता की झलक मिल सकती है.
  • यकृत तथा प्लीहा की वृद्धि हो जाती है, लेकिन यकृत की अपेक्षा प्लीहा की वृद्धि कम होती है. यकृत न भी बढ़ा हुआ हो तोभी उसका किनारा स्पर्श में आता है. अर्थात कुछ कठोर प्रतीत होता है.
  • नाभि पर तथा ऊपर की शिराएं फैली हुई दिखती है. नाभि के आसपास कभी-कभी एक शिरा- गुच्छ भी बन जाता है.
  • इसोफेगस के निचले भाग की शिराएं फुल कर मोटी हो जाती है. इसके फट जाने पर समय-समय पर इस रोग में रक्तवमन का लक्षण होता रहता है जो कि भयंकर होता है. हालांकि घातक नहीं होता है. रक्त वमन प्रायः 10% रोगियों में मिलता है.
  • गुदा की दीवार में विद्धमान इंफीरियर हिमोराइड्स के फुल जाने से कभी-कभी इस रोग में गुदा से रक्तस्राव होने लगता है. अतः यदि गुदा से विशेष रक्त स्राव हो तो रोग का संदेह करना चाहिए.
  • इस रोग के वर्षों तक बने रहने पर भी जलोदर तथा कामला आदि भयंकर लक्षण नहीं होते हैं. लेकिन यदि यह रोग बढ़ता ही जाए तो जलोदर के लक्षण होने पर या छाती में जल भर जाने पर तथा पैरों में सूजन उत्पन्न होने पर यह रोग कष्टसाध्य अथवा असाध्य हो जाता है. रक्त स्त्राव तथा कामला भी असाध्यता के सूचक हैं.
  • जलोदर के साथ-साथ गिटो, पैरों तथा जांघों पर हल्के सूजन का भी लक्षण हो जाता है. जलोदर का जल स्थाई नहीं होता है वह विलीन हो जाता है तथा नया बनता रहता है.
  • यकृत के सेलों के नष्ट हो जाने पर फैट का परिपचन भली-भांति ना होने से शरीर को फैट नहीं मिल पाता है जिससे शरीर कृश हो जाता है.
  • हृदय की निर्बलता तथा उसका पोषण ना होने से नाड़ी तीव्र तथा कम भार वाली होती है.
  • रोग के बढ़ने के साथ-साथ 40% रोगियों में सायं काल मंद बुखार प्रायः 35.5 डिग्री से 38.5 डिग्री सेंटीग्रेड के लगभग रहने लगता है.
  • मूत्र की मात्रा में कम गहरे रंग का तथा कुछ अल्ब्युमिन युक्त होता है. इसमें यूरोबिलिन की मात्रा अधिक होती है.
  • 50% रोगियों में हल्का का कामला का लक्षण भी मिलता है.
  • यकृत के सेलों के रुग्ण हो जाने से रक्तपित अथवा रक्त स्राव होने की प्रवृत्ति मिलती है. प्रायः नाक से रक्त आता रहता है. मसूड़ों से भी रक्त स्राव हो सकता है.
  • शरीर का रंग कुछ श्यामवर्ण का हो जाता है.
  • जब यकृत अधिक रुग्ण हो जाता है तब वह अपना कार्य बंद कर देता है. ऐसी स्थिति में टॉक्सेमिया होकर तन्द्रा, कंप, मूर्च्छा आदि मृत्यु सूचक लक्षण मिलने लगते हैं.
  • शुरुआत में फाइब्रोसिस होने के कारण यकृत आकार में कुछ बड़ा हो जाता है लेकिन जब उसके लक्षण समाप्त होने लगते हैं तो वह आकार में संकुचित हो जाता है.
  • शुरुआत में कामला हल्का होता है, लेकिन क्रम से वह गहरा होता जाता है. तत्पश्चात वमन भी होने लगता है. इसके साथ ही तन्द्रालुता, मस्तिष्क का फेल होना, बेचैनी, मांसकंप, प्रलाप, आक्षेप, कंडराओं के प्रतिक्षेप में तीव्रता के लक्षण होते हैं.
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यकृत का सिरोसिस का सामान्य उपचार-

  • आहार चिकित्सा इस बात के कुछ प्रमाण मिले हैं कि यह रोग विशेष रूप से भोजन में कुछ कमी रह जाने से होता है इसलिए चिकित्सा का मुख्य आधार रोगी को ऐसा आहार देना है, जिससे उसे प्रोटीन की मात्रा प्राप्त हो सके. जिसका पोषक मान 3000 कैलोरी से कम ना हो, साथ ही आवश्यक विटामिंस पूरी मात्रा में और सुपाच्य के रूप में होना चाहिए.
  • सिरोसिस के रोगियों को 100 ग्राम प्रोटीन प्रति दिन के हिसाब से मिलना चाहिए. प्रोटीन आहारों में गाय का दूध, मलाई रहित दूध या लस्सी अथवा क्रीम निकाला हुआ दूध अथवा केसीलान या लेक्टोडेक्स मिल्क प्रोटीन 20 से 40 ग्राम जल के साथ देना उत्तम है. केसीलान में नमक ना होने के कारण जलोदर तथा सूजन की अवस्था में विशेष फायदेमंद होता है.
  • रोगी को सामान्य भोजन के अतिरिक्त प्रतिदिन 1 लीटर दूध पीने को देना चाहिए. इससे रोगी को 30 ग्राम के लगभग प्रोटीन प्राप्त हो जाता है. यदि 1 लीटर दूध में केसीलान पाउडर 50 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रोगी को दिया जाए तो उसे 80 ग्राम प्रोटीन मिल जाता है. केसीलान के स्थान पर रोगी छेने से निर्मित 2-3 रसगुल्ले भी सेवन कर सकता है. शेष 20 ग्राम प्रोटीन रोगी को उसके सामान्य आहार से प्राप्त हो जाएगी.
  • मांसाहारी व्यक्तियों में मांस, मछली से उपरोक्त प्रोटीन की प्राप्ति हो जाती है.
  • रोगी को प्रतिदिन 4 औंस के लगभग ग्लूकोज तथा 6- 8 औंस कोई फल का रस तथा 10- 15 यूनिट इंसुलिन देना सर्वोत्तम है. इसके अलावा बनी हुई नरम सब्जी, फल तथा भली प्रकार से सेकी गई रोटी भी अल्प मात्रा में दी जा सकती है. रोगी को 25 ग्राम तक मक्खन दिया जा सकता है.
  • यदि रोग अधिक बढ़ा हुआ हो और यकृत अधिक क्षीण हो चुका हो तो भोजन में प्रोटीन की मात्रा कम कर देनी चाहिए.
  • विश्राम- जब तक रक्त स्त्राव, एडिमा, जलोदर अथवा इसके उपद्रव हो तो रोगी को शय्या ( बेड ) पर एक- दो माह पर्यंत विश्राम कराना चाहिए.

यकृत ( Liver ) सिरोसिस का आयुर्वेदिक उपाय-

1 .पुनर्नवा मंडूर 3- 3 वटी और धात्री रसायन 10-10 ग्राम सुबह- शाम दूध के साथ सेवन करें. एवं आरोग्यवर्धिनी वटी और सुदर्शन वटी 2-2 वटी सुबह- दोपहर और शाम पानी के साथ सेवन करें.

2 . सम्पूर्ण शरीर में सूजन हो तो गोमूत्र 50 ml प्रतिदिन पिएं. शंख भस्म 1 ग्राम, सज्जीक्षार 1 ग्राम निम्बू के रस के साथ सेवन करें.

3 . कर्पद 10 ग्राम को 100 ml निम्बू के रस में डालकर 2-3 दिन रखने से यह घुल जायेगा अब इस में से 2 चम्मच दिन में 3 बार लें

4 .अभ्रक भस्म, लौह भस्म,प्रवाल पिष्टी, रोहितकारिष्ट, निशा चूर्ण,एलवा, दाड़िमपानक, स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण,कुटकी और चिरायता क्वाथ, लवणभास्कर चूर्ण आदि यकृत का सिरोसिस में उत्तम है. इसलिए चिकित्सक के सलाह से इसका सेवन करें.

5 .नारीच रस या इच्छाभेदी रस से विरेचन कराना चाहिए.

6 .प्लीहा और यकृत के रोगों में मल- मूत्र अच्छी तरह से आना चाहिए. अतः मूत्रक कषाय, कंकोल चूर्ण, यवक्षार, नृसार, नारियल आदि देना चाहिए.

7 .पथ्य केवल प्रवाही फलों के रस, नारियल पानी, दूध, छाछ आदि सेवन कराएं.

8 .भोजन, दाल- भांजी, तीखे और गरम पदार्थों के सेवन से दूर रहें.

9 .धुम्रपान, शराब का सेवन बिल्कुल बंद कर दें.

10 .भोजन समय पर करें. कब्ज हो तो तुरंत उसका उपचार करें.

11 .फास्टफूड, ज्यादा वसा वाले आहार, ज्यादा समय तक नॉन वेज का सेवन और गन्दा पानी के कारण भी यह बीमारी हो सकती है इसलिए इन चीजों के अधिक सेवन से बचना चाहिए.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है. यकृत का सिरोसिस जटिल एवं घातक बीमारी है इसलिए उपर्युक्त लक्षण मिलने पर आपको तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए एवं उपर्युक्त कोई भी चिकित्सा अपनाने से पहले योग्य चिकित्सक की राय जरुर लें. धन्यवाद.

चिकित्सा स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक.

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Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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