रोग परिचय- गवीनी में पथरी ( stone ) आदि शल्य प्रवेश करने से कमर में एक तरफ अकस्मात तीव्र दर्द प्रारंभ होकर जननेंद्रिय की ओर जाती है. कभी-कभी यह दर्द संवहन के परिणाम स्वरुप स्वस्थ वृक्क में प्रतीत होती है. इसमें बहुमूत्रता, उल्टी होना, कपकपी, पसीना अधिक आना, स्तब्धता और निपात आदि लक्षण होते हैं. जिस तरफ के गुर्दे में बीमारी होती है यह दर्द उस तरफ के गुर्दे से लेकर उस तरफ के पैर के तलवों तक जा सकता है.

यह एक अचानक उठने वाला दर्द है जो नीचे पेडू व मूत्राशय से शुरू होकर कमर की पीछे और आगे उस तरफ के वृक्क कोष तक पहुंचता है. यह दर्द कुछ समय से लेकर कुछ घंटो तक रहता है. इसमें दर्द इतना ज्यादा होता है कि मरीज बिस्तर में एक करवट से दूसरी करवट बदलता रहता है.
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पथरी होने के कारण-
गुर्दे में पथरी होने के निम्न मुख्य कारण है.
1 .चयापचयी में परिवर्तन.
2 .खून या पीप का थक्का होना.
3 .संक्रमण और मूत्र मार्ग में रुकावट आना.
4 .इथीनोकोकस के सिस्ट.
5 .यूरेटर के अंकुरार्बुद के टुकड़े.
6 .उष्ण, तीक्ष्ण, नमकीन और कफकारी पदार्थ खाने, मूत्र या वीर्य का वेग रोकने से भी पथरी होती है.
7 .खून में क्षार और नमक का अंश बढ़ जाता है और व्रण या वस्ति में जमा हो जाता है तथा पीत सहित कफ को वायु सुखा देती है तो शर्करा पथरी बन जाती है.
8 .वीर्य के वेगों को रोकने से पथरी होती है ( यह केवल पुरुषों को होती है.)
गुर्दे में पथरी होने के लक्षण-
* जब पथरी वृक्कों से निकलकर यूरेटर यानी मूत्र प्रणाली में जाने लगती है तो उस समय ऐंठन व काफी दर्द होता है. कमर में दर्द होता है. जिसकी टिस अंडकोष और जांघों तक जाती है. पेशाब के साथ बार- बा खून आता है.
* पथरी निकलने पर काफी दर्द होता है जिसके कारण रोगी तड़पने लगता है.
* दर्द का आक्रमण अकस्मात होता है जिस तरफ के गुर्दे में पथरी होती है उसी तरफ की कमर में भी दर्द होता है.
* आक्रमण के समय कभी- कभी कंप भी महसूस होती है. मितली एवं उल्टी उपस्थित रहता है. रोगी को काफी पसीना आता है. नाड़ी की गति तीव्र और क्षीण होती है. सांसे तेज चलती है. कभी-कभी बुखार 100- 102 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाता है.
शरीर की स्थिति-
दर्द के कारण रोगी काफी बेचैन रहता है, वह अपने शरीर को दोहरा किए हुए पड़ा रहता है अथवा विभिन्न प्रकार से अपने शरीर को तोड़ता- मरोड़ता रहता है.
पेशाब की स्थिति-
दर्द के समय रोगी को बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है, लेकिन पेशाब की मात्रा कम होती है और उसमें खून की उपस्थिति मिलती है. कभी-कभी पेशाब के साथ पथरी के टुकड़े भी निकलते हैं. कभी-कभी पेशाब अधिक मात्रा में आता है तो कभी बिल्कुल ही बंद हो जाता है.
पथरी में दर्द की अवधि-
आवेग या दौरे की अवधि कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक रहती है. यह अवधि कभी-कभी एक-दो दिन तक भी रह सकती है. जब दर्द के दौरे की अवधि कम होती है तब दर्द की तीव्रता एक सी रहती है लेकिन जब आवेग दीर्घकालीन होता है तब दर्द बीच-बीच में होकर शांत होकर फिर से होने लगता है.
अन्य लक्षण-
* दर्द के समय परीक्षा करने पर कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता है. किसी- किसी रोगी में वृक्क स्पर्शलभ्य मिलता है और उसमे स्पर्शसह्यता रहती है.
* दुबले-पतले रोगियों में यूरेटर में टटोलने से पथरी महसूस होती है.
* दौरा खत्म होने पर असह्य पीड़ा समाप्त हो जाती है. लेकिन कमर में हल्का- हल्का दर्द या संवेदना कुछ समय तक बनी रहती है.
* कई एक मरीजों में दर्द के आवेश बार-बार आया करते हैं. ऐसी स्थिति में यह पता नहीं चलता है कि पथरी कहां चली गई है और कहां पर स्थित है. केवल इतना अनुमान किया जा सकता है कि रिनल पेल्विस में कोई बड़ी पथरी है जो बार-बार नीचे की तरफ खिसक कर यूरेटर के मुख में अटक कर दर्द पैदा करती है और मोटाई के कारण नीचे आने में असमर्थ होती है.
पथरी के संपूर्ण लक्षण एक दृष्टि में-
कमर व पेडू में अचानक दर्द जो जांघ व वृषण कोष की तरफ जाता है. दर्द तेज होने के कारण रोगी बिस्तर में उलट-पुलट करता रहता है. दर्द कुछ समय से कुछ घंटों तक चलता है. कभी-कभी ठंड के साथ बुखार भी आता है. जी घबराता है और पसीना आता है. चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है. नाड़ी की गति तेज हो जाती है. पेशाब बूंद-बूंद कर दर्द के साथ आता है या रुक जाने पर पेट में भारीपन एवं दर्द बढ़ जाता है. पेशाब में का खून आदि की उपस्थिति मिलती है. पाशर्व में छूने से दर्द होता है.
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वृक्क में पथरी का निदान-
रोग का अनुमान-
दर्द के दौरे का पूर्ण इतिहास, स्थान के अनुसार दर्द की प्रवृत्ति, वृषण की सूजन, बार-बार पेशाब करने की इच्छा होना, पेशाब की अल्पता तथा उसमें रक्त की उपस्थिति तथा दौरे के पश्चात पेशाब में पथरी का निकलना आदि लक्षणों के आधार पर रोग का अनुमान किया जा सकता है.
पेशाब परीक्षा- माइक्रोस्कोप से मूत्र परीक्षा करने पर मूत्र में आर बी सी (RBC ) की उपस्थिति मिलती है. यूरिक एसिड तथा क्रिस्टल की उपस्थिति पथरी का सूचक लक्षण है. पेशाब में पथरी प्राप्त होने पर और संदिग्ध निदान हो जाता है.
एक्स-रे परीक्षा- एक्स-रे परीक्षा से पथरी की उपस्थिति का पता चलता है. यह परीक्षा रोग निदान में पर्याप्त मददगार होती है. एब्डोमेन का एक्स-रे करना पड़ता है.
ब्लड कैल्शियम इंटीमेशन- इस परीक्षा में ब्लड कैल्शियम फास्फोरस का परिमापन किया जाता है. खून में चूने की मात्रा 11 मिलीग्राम तथा फास्फोरस की मात्रा 3 मिलीग्राम से कम मिलने पर पैराथायराइड ग्लैंड के अर्बुद का संदेह निश्चित हो जाता है.
पूर्वानुमान-
* यदि नियमित उचित पथ्य से पालन तथा औषधी चिकित्सा ना की जाए तो पथरी बराबर बनी रहती है. एक पथरी के रहते ही दूसरी पथरी तैयार हो जाती है. जिससे वृक्क शूल का पुनरावर्तन होता रहता है.
* छोटी पथरिया बिना कष्ट पहुंचाए मूत्र के साथ बाहर निकल जाती है. बड़ी पथरी बहुत काल तक वृक्क अलिंद में पड़ी पड़ी रोगी को कष्ट देती रहती है.
* वृक्क पथरी तत्काल घातक नहीं होती है लेकिन जब उसके कारण वृक्क खराब हो जाते हैं और उसमें उपसर्ग हो जाता है तब वृक्क की कार्य क्षमता तथा मूत्रविषमयता के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती है.
* कभी-कभी कुछ मूत्र विषमयता के कारण रोगी की मृत्यु दर्द के वेग के समय ही हो जाता है.
पथरी का सापेक्ष निदान-
वृक्क शूल का पार्थक्य निम्न प्रकार के दर्दों से करना चाहिए.
1 .आंत्रशूल.
2 .पिताश्मरी शूल.
3 .गर्भाशय शूल.
4 .उन्डूकपुच्छ शूल.
वृक्क पथरी का सामान्य चिकित्सा-
1 .सबसे पहले रोग के मूल कारणों को दूर करें.
2 .दर्द दूर करने के लिए रोगी को कमर तक गर्म टब के जल में बैठाएं.
3 .दर्द के वेग के समय रोगी को बिस्तर पर लिटायें. दर्द कम करने के लिए गर्म पानी में टरपेंटाइन आयल ( तारपीन तेल )की कुछ बूंदें डालकर तोलिया भिगोकर गरम सेंक करें. तीसी की गरम-गरम पुल्टिस लगाई जा सकती है अथवा गर्म पानी की बोतल से सेंक करें.
4 .यदि रोगी को पेशाब नहीं हो पा रहा है तब उसे अधिक से अधिक पानी पिलाना चाहिए.
5 .यदि पथरी कुछ समय पश्चात मूत्र संस्थान से ना निकल पाए अथवा यूरेटर में फस जाए तो उसे तत्काल ऑपरेशन करके निकालना आवश्यक होता है.
6 .रोगी को किसी भी हालत में मांसाहार भोजन नहीं करने देना चाहिए.
7 .शरीर को कम से कम हिलाया- डूलाया जाए. घोड़े की सवारी तथा साइकिल पर उबड़- खाबड़ जगह में चलने से बचना चाहिए.
8 .विटामिन ए की कमी से पथरियां बन जाती है अतः रोगी को विटामिन ए युक्त चीजों का सेवन कराना लाभदायक होता है.
वृक्क के पथरी ख़त्म करने के घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय-
1 .शंख भस्म और हजरल यहूद भस्म को बराबर मात्रा में मिलाकर पानी की मदद से 4 रति की वटी बनाकर 2 वटी और चंद्रप्रभा वटी 2 वटी पानी या सोडे से सेवन करें.
2 .लिंग विरेचन चूर्ण 1 ग्राम, सज्जीक्षार 1/2 ग्राम, यवक्षार और गोखरू गुग्गुल 2 वटी सुबह, दोपहर और शाम को गोखरू हिम के साथ सेवन करें.
3 .उल्टी हो तो आलूबुखारा या बर्फ चुसना चाहिए या टाटरी 1 ग्राम 20 ml पानी में डालकर थोडा- थोडा पीना चाहिए.
4 .पेडू से थोडा ऊपर कलमी शोरे का लेप लगायें. कटिस्नान, निरुह वस्ति, विरेचन देना लाभदायक है.
5 .गोखरू का चूर्ण 2 ग्राम शहद में मिलाकर चाटें और बकरी का दूध पिने से वृक्क की पथरी जल्दी ख़त्म होती है.
6 .दर्द ज्यादा हो तो जातिफलादि चूर्ण का सेवन करें.
7 .यवक्षार या निम्ब छाल का क्षार या नृसार चन्दन के शर्बत के साथ सेवन करें.
8 .कलमी शोरा 1 ग्राम की मात्रा में शर्बत या पानी के साथ सेवन करने से पथरी तुरंत निकल जाती है लेकिन इससे पुरुषत्व में कमी हो सकती है.
9 .नारियल का पानी, तरबूज, ककड़ी आदि पदार्थ का सेवन करें.
10. टमाटर, आलू और बेसन से बने चीजों का सेवन बिलकुल बंद कर दें.
नोट- चिकित्सक की देखरेख में उपर्युक्त चिकित्सा करने से 2-3 महीने में वृक्क की पथरी अवश्य ही निकल जाती है. और फिर कभी नही होती है. लेकिन पथरी बड़ी हो गयी है और दर्द काफी रहता हो तो ऑपरेशन करा लेना चाहिए. लेकिन ऑपरेशन के बाद भी चंद्रप्रभा वटी और गोखरू गुग्गुल का सेवन 1-2 महिना कर लेने से पथरी दुबारा होने की संभावना नही रहती है.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.
चिकित्सा स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक से-
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