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अस्थिमृदुता रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 2 MinUpdated On March 30, 2022

हेल्थ डेस्क- अस्थिमृदुता एक दीर्घकालिक रोग है. यह विशेष रूप से उन महिलाओं में अधिक मिलता है जिनकी उम्र 20 से 30 वर्ष के बीच में होती है. इस रोग में कैल्सीकरण तथा अस्थि ( हड्डी ) दुर्बलता के कारण विभिन्न प्रकार की अस्थिविरूपताएं हो जाती है. यहां तक कि कुछ महिलाओं में कभी-कभी अस्थिभग्न ( Fracture ) तक हो जाता है.

अस्थिमृदुता रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

अस्थिमृदुता रोग होने के क्या कारण है ?

अस्थिमृदुता रोग प्रायः उन गर्भवती महिलाओं में होता है जिनके भोजन में कैल्शियम तथा विटामिन की कमी होती है. खासकर विटामिन ए कम रहता हो, साथ ही जो ऐसी जगह में निवास करती है जहां सूर्य के प्रकाश का पूर्ण रूप से अभाव रहता है. सूर्य के प्रकाश से विटामिन ए की प्राप्ति होती है जिससे वे वंचित रह जाती हैं. अधिकतर दरिद्र महिलाओं में खाद्यअभाव होने तथा गर्भावस्था एवं स्तन्यकाल में कैल्शियम की पूर्ति न होने के कारण यह रोग हो जाता है. इसके विपरीत जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान या स्तन्यकाल में पर्याप्त कैल्शियम की प्राप्ति होती रहती है उनमें इस रोग के होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है.

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अस्थिमृदुता रोग होने के लक्षण क्या हैं ?

शुरुआत में इस रोग के लक्षण प्रायः दृष्टिगोचर नहीं होती हैं. जब रोग काफी अधिक हो जाता है तब इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं. इस रोग में श्रोणि-अस्थियों, पृष्ठ अस्थियों एवं शाखा अस्थियों में तीव्र दर्द की अनुभूति होती है जो इस रोग के मुख्य लक्षण है. इस रोग की तिव्रावस्था अस्थि स्पर्श सह्यता मिलती है तथा असह्य दर्द होती है. यदि महिला को जरा सी भी चोट लग जाती है तो उस अंग की अस्थि में अस्थिभग्न हो जाता है. महिला दुर्बल हो जाती है. पेशी-शोथ, पेशी तंतु स्फुरण तथा टेटनी आदि लक्षण हो जाते हैं. महिला में श्रोणि- विरूपता शीघ्र हो जाती है. महिला पूर्ण रूप से अशक्त हो जाती है एवं उसे उठने- बैठने में काफी कष्ट का सामना करना पड़ता है. वह हिलने- डुलने में भी पूर्ण रूप से असमर्थ रहती है. जिन महिलाओं में अधिक दिनों तक यह रोग चलता है उनके मेरुदंड में भी विरुपता उत्पन्न हो जाती है. वह डगमगाती चाल से चलने लगती है.

श्रोणि- विरूपता में श्रोणि अस्थियाँ इतनी कोमल हो जाती है कि सब दिशाओं से दबाव पड़ने पर मुड़ जाती है. जिसके परिणाम स्वरुप श्रोणि निपात होकर निरूपित हो जाता है श्रोणि पाशर्व प्राचीर अंदर की ओर धस जाते हैं. श्रोणि गुहा आगे चलकर अत्यंत छोटी हो जाती है.

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हिस्टीरिया रोग क्या है ? जाने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

 

अस्थिमृदुता रोग का निदान-

रोग के इतिवृत्त एवं लक्षणों से इसका निदान आसानी से हो जाता है. हमारे देश के कुछ प्रांतों में यह रोग स्थानिक रूप से पाया जाता है.

अस्थिमृदुता रोग के आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-

1 .महिला के गर्भधारण करते ही उसके लिए संतुलित आहार की व्यवस्था करनी चाहिए. उसे पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन युक्त पदार्थ मिलने चाहिए. दूध में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा होती है अतः गर्भवती महिला को 1 लीटर दूध प्रतिदिन सेवन कराना चाहिए. गर्भवती महिला को उचित मात्रा में प्रतिदिन कॉड लिवर आयल का सेवन कराते रहना चाहिए. इससे विटामिन ए एवं विटामिन डी दोनों की पूर्ति हो जाती है. साथ ही उसे ऐसे स्थान में निवास के लिए रखा जाए जहां पर पर्याप्त धूप पहुंचती हो.

2 .अस्थिमृदुता रोग हो जाने पर महिला को पर्याप्त मात्रा में दूध, अंडा एवं मांस का सेवन कराना चाहिए. कैल्शियम साल्ट एवं ग्लिसरोफास्फेट देना चाहिए. रोगी को पर्याप्त मात्रा में आराम करवाना चाहिए.

3 .जिन महिलाओं में उनके श्रेणी के अंदर विरूपता पैदा हो गई हो उनमें सिजेरियन कर्म का अवलंबन किया जाना चाहिए क्योंकि उसमें सामान्य प्रसव असंभव होता है.

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4 .जो रोगिणी अस्थि मृदुता से प्रभावित रहती है उसके नवजात शिशु में इस रोग का होने की संभावना अधिक रहती है. जिससे उसे सुखंडी ( रिकेट्स ) की बीमारी होने की संभावना अधिक हो जाती है. ऐसे शिशु को पर्याप्त मात्रा में दूध का सेवन कराना चाहिए. साथ ही कॉड लिवर आयल का प्रयोग दूध में मिलाकर करना चाहिए.

5 .प्रवाल भस्म 120 मिलीग्राम शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है.

6 .मुक्ता पिष्टी 60 मिलीग्राम शहद के साथ चटाकर गाय का दूध पिलाना चाहिए. इसका दिन में 2 बार सेवन करें.

7 .इसके अतिरिक्त चूना, मूंगा, प्रवाल भस्म, इंद्रायण, कैल्शियम, खटीक, गोदंती, शंख भस्म, शुक्ति एवं मूंगा आदि आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करना भी लाभदायक होता है.

गर्भावस्था में कैल्शियम की कमी पूरा करने के लिए करें इन चीजों का सेवन-

1 .डेयरी प्रोडक्ट-

अस्थिमृदुता रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

दूध व इससे बनी चीजें कैल्शियम के उचित स्रोत होते हैं. दूध और दही में 125 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है. दही में फैट भी कम होता है. इसके सेवन से बच्चे को उचित पोषण मिलने के साथ बेहतर विकास में मदद मिलती है.

2 .पालक-

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पालक में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है. इसके सेवन से लगभग 250 मिलीग्राम कैल्शियम की पूर्ति होती है. साथ ही पालक में आयरन, विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट, फाइबर, एंटीबैक्टीरियल आदि होते हैं. इसके सेवन से ना सिर्फ कैल्शियम की पूर्ति होती है बल्कि खून की कमी दूर हो जाती है. साथ ही आंखें, दिल व हड्डियों को मजबूती मिलती है. इसका सलाद, सब्जी, जूस आदि के रूप में सेवन किया जा सकता है.

3 .खजूर-

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खजूर कैल्शियम का अच्छा स्रोत होता है. इसके सेवन से बच्चे की हड्डियां व दांतो को बनाने में मदद मिलती है. साथ ही इसमें मौजूद फ़ोलेट व एंटीऑक्सीडेंट गुण दिमाग को स्वस्थ रखने के साथ संक्रमण की चपेट में आने से भी बचाता है. इसका सेवन सीधा या दूध के साथ किया जा सकता है.

4 .बादाम-

अस्थिमृदुता रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

स्नैक्स के रूप में बादाम का सेवन करना लाभदायक होता है. इससे बच्चे का दिल और दिमाग स्वस्थ होने के साथ ही इससे जुड़ी परेशानियों का खतरा भी कम हो जाता है. लगभग 100 ग्राम बादाम 264 मिलीग्राम कैल्शियम होता है. ऐसे में इसके सेवन से शरीर को सही मात्रा में कैल्शियम प्राप्त हो जाता है. इसके सेवन से दिमाग व हड्डियों को मजबूती मिलती है.

5 .ब्रोकली-

अस्थिमृदुता रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

ब्रोकली स्वादिष्ट होने के साथ ही आयरन, विटामिन, कैल्शियम, फाइबर, फोलिक एसिड एवं एंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है. कैल्शियम की बात करें तो इसमें 156 ग्राम ब्रोकली में लगभग 63 ग्राम कैल्शियम पाया जाता है. इसलिए गर्भावस्था में सही मात्रा में कैल्शियम प्राप्त करने के लिए इसका सेवन महिलाओं को जरूर करना चाहिए. इसका सेवन सलाद, सब्जी या सूप के तौर पर डाइट में शामिल किया जा सकता है.

6 .संतरा-

अस्थिमृदुता रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

संतरा ना सिर्फ विटामिन सी का अच्छा स्रोत होता है बल्कि इसमें कैल्शियम, आयरन, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल गुण भी मौजूद होते हैं. इसके सेवन से कैल्शियम की कमी पूरी होने के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है. कैल्शियम की बात करें तो एक संतरे में करीब 50 मिलीग्राम होता है. ऐसे में इसके सेवन से बच्चे की हड्डियां मजबूत होने के साथ ही बीमारियों से भी बचाव होता है.

7 .सोयाबीन-

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कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए सोयाबीन या इससे बनी हुई चीजों को डाइट में शामिल करना बेहतर है. एक कटोरी सोयाबीन में लगभग 175 मिलीग्राम कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है. इसलिए गर्भावस्था में महिलाओं को सोयाबीन, सोया मिल्क, टॉफू आदि चीजों को खासतौर पर खाने की सलाह दी जाती है.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. अधिक जानकारी एवं किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.

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The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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