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प्रतिश्याय ( सर्दी ) क्यों हो जाती है ? जानें कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health TipsRead Time : 1 MinUpdated On December 27, 2021

हेल्थ डेस्क- सर्दी- जुकाम बहुत ही सामान्य एवं बार- बार होने वाला रोग है. इसमें नाक से स्राव निकलना, लगातार अधिक छींके आना और सुखी खांसी होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. हालाँकि यह स्वतः ठीक होने वाला रोग है लेकिन कोई उपद्रव न हो तो. यह सभी उम्र के लोगों को हो सकता है. लेकिन बच्चो को होने की संभावना अधिक रहती है.

प्रतिश्याय ( सर्दी ) क्यों हो जाती है ? जानें कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय
यह एक तीव्र रोग है जिसमे नाक की श्लेष्मकला में सूजन हो जाता है. कभी- कभी सर्दी का वायरस फैरिंग्स तथा लैरिंग्स को भी प्रभावित कर देता है. यानि जिस रोग में नासिका की श्लेष्मकला में और कुछ गले में भी सूजन होकर नाक नहने लगे, छींके आने लगे, बुखार आदि शरीरव्यापी लक्षण विशेष न मिले तो इस अवस्था को प्रतिश्याय कहते हैं.
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क्यों हो जाती है सर्दी ?
कारण-
1 .यह एक अत्यंत तीव्र प्रसारित होने वाला सांसर्गिक रोग है जो विशेषकर मौसम के बदलने पर फैला करता है.
2 .इस रोग के होने का वास्तविक कारण अभी तक असंदिग्ध रूप में निर्णित नही है. यह तीव्र स्वरुप का औपसर्गिक रोग है अतः इसकी उत्पत्ति विषाणु के द्वारा मानी जाती है. यह एडिनो नामक सूक्ष्म विषाणु के द्वारा उत्पन्न होता है.
3 . रोगी के नासास्राव में माइक्रोकोकस कटारलिस हीमोलिटिक मालागोलाणु, फुफ्फुस गोलाणु, श्लेष्मक दंडाणु आदि की उपस्थिति देखने को मिलती है. लेकी इसके अनुपस्थिति में भी रोग होते देखा गया है.
4 .रोगी में यदि रोगप्रतिरोधक क्षमता का अभाव होता है तो प्रतिश्याय के संक्रमण के पश्चात् न्युमोकोकस, स्ट्रेप्टोकोकस, स्टेफिलोकोकस एवं इन्फ्लूएंजा बेसिलस आदि जीवाणु अतिशीघ्र संक्रमण उत्पन्न करके विभिन्न प्रकार के बीमारी उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं.
नोट- इस प्रकार मुख्य रूप से प्रसार की दृष्टि से जुकाम विषाणुजन्य एवं परिणाम की दृष्टि से जीवाणुजन्य होता है.
सर्दी होने के सहायक कारण-
1 .उम्र- बालकों में प्रायः 5 वर्ष तक की आयु में इसका प्रकोप ज्यादा होता है. युक्वों एवं प्रौढ़ों में इसका आक्रमण क्रमशः कम होता है.
2 .ऋतु- हेमंत और वसंत ऋतु में यानि मौसन परिवर्तन के समय इसका आक्रमण ज्यादा होता है. शीतकाल में ठंढ के कारण व्यक्ति एक दुसरे के नजदीक अधिक रहते हैं. मकान की खिड़की और दरवाजे बंद करके रहने और सोने से कमरे में हवा के आवागमन नही हो पाने के कारण वातावरण में संक्रमण के प्रसार से भी सर्दी, जुकाम हो जाता है.
3 .प्रत्यूर्जता- एलर्जी रोगों से पीड़ित व्यक्तियों में सर्दी का प्रकोप अधिक होता है यानि उस व्यक्ति को बार-बार सर्दी होने की समस्या रहती है.
4 .वातावरण- तीर्थस्थानों एवं मेलों बाजारों में भरी भीड़, अशुद्ध संतावन, धुल, धुआं युक्त वातावरण के कारण छींके आकर सर्दी हो जाती है.
5 .रोगों की भूमिका- डिफ्थीरिया, कर्णमूलशोथ, खसरा आदि बिमारियों से ग्रसित होने पर तथा टॉन्सिल्स में सूजन, नासार्ष, नासाकोटर शोथ, आमवात, क्षय, मधुमेह आदि बिमारियों से ग्रसित होने पर भी प्रतिश्याय ( सर्दी ) का आक्रमण ज्यादा होता है.
7 .कई बार संसर्गज ( वंशज ) प्रभृति प्रतिश्याय की उत्पत्ति भी देखि जाती है.
8 . अनियमित समय पर भोजन करने, ज्यादा परिश्रम करने,शीत वायु के प्रवाह में सोना, अधिक समय तक पानी में भींगना, शराब एवं तम्बाकू, धुम्रपान का अधिक प्रयोग करना, शरीर कमजोर होना, सिर में ठंढ लगना, अधिक चिंता में रहना आदि के कारण भी सर्दी होने की संभावना अधिक हो जाती है.
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सर्दी रोग का प्रसार-
सर्दी ( प्रतिश्याय ) रोग से ग्रसित व्यक्ति जब उच्च आवाज में बोलता है, खांसता या छींकता है तो छींक या थूक के छींटों से सूक्ष्म कण निकलते हैं जो रोगाणु से भरे होते हैं यही छींक या थूक जब समीप बैठे व्यक्ति पर पड़ता है और उसके श्वसन संस्थान में ये रोगाणु प्रवेश कर उस व्यक्ति में भी सर्दी- जुकाम उत्पन्न करता है. यह 24 से 72 घंटे में उस व्यक्ति में अपना प्रभाव दिखने लगता है. हालाँकि यदि उस व्यक्ति का रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो तो ज्यादा प्रभावित नही कर पाता है.
प्रतिश्याय ( सर्दी ) रोग का लक्षण क्या है?
* इस रोग का आक्रमण एकाएक होता है.
* शुरू में सामान्यतः नासा और नासा ग्रसनिका में खुश्की तथा सुरसुराहट महसूस होती है.
* व्यक्ति का गला सुखा हुआ तथा हल्का दर्द सा महसूस होता है.
* छींके आती है और शरीर में भारीपन महसूस होता है.
* आलस्य और क्लान्ति का अनुभव होता है. प्रायः ठंढ लगकर सभी विकार लक्षण प्रकट होते हैं. इसके बाद थकावट, पुरे शरीर में दर्द और हल्का बुखार की अनुभूति होती है.
* इस रोग में नाक बंद हो जाता है इसके कुछ समय के बाद छींकें आती है. आँखें लाल दिखलाई देती है. सूंघने तथा स्वाद की शक्ति भी कम हो जाती है.
* कुछ समय के बाद नाक में जकड़ाहट और नाक बंद होने का अनुभव होता है. कुछ समय बाद छींके आकर नासा एवं श्लेष्मपूयी रूप धारण कर लेता है. और नासा (नाक ) से अधिक स्राव होने लगता है. इसके साथ- साथ गले में कांटे गड़ने जैसा, खांसी आना, झागदार कफ और नाक बंद होने के लक्षण होते हैं.
* प्रतिश्याय की विकृति नासा से शुरू होकर स्वर यंत्र तक फ़ैल जाता है. नाक की श्लेष्मिककला में सूजन शीघ्र ही नासाविवरों, कान, ग्रसनी, स्वरयंत्र, त्रेकिया और श्वास नलिकाओं को प्रभावित कर देता है.
* टॉन्सिलशोथ, खांसी, बुखार आदि प्रतिश्याय में मिलते हैं.
* इस रोग में लगभग 75% रोगियों में सिर दर्द के लक्षण मौजूद रहते हैं.
* नाक से आने वाला बलगम ( कफ ) गाढ़ा होने लगता है. कई बार नाक बंद हो जाती है जिसके कारण रोगी को मुंह से सांस लेना पड़ता है. विशेष रूप से रात्रि में यह लक्षण देखने को मिलता है. इसमें रोगी को बेचैनी महसूस होने लगता है.
* प्रायः रोग 5 से 7 दिन में कम होने लगता है और ज्यादा से ज्यादा 15 दिन में ठीक हो जाता है.
* इस रोग के बार- बार आक्रमण होने के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लगती है जिसके फलस्वरूप रोगी को कास, श्वसनी - फुफ्फुसपाक, यक्ष्मा ( TB ) तथा श्वास ( दमा ) आदि गंभीर बीमारी होने की संभावना रहती है.
रोग का निदान-
1 .नासा में जलन, गले में सरसराहट, सिर दर्द, हल्का बुखार, शरीर में दर्द, अवसाद, नाक और आँख से स्राव, खांसी तथा स्वरयंत्र शोथ के स्थानीय लक्षण मुख्य रूप से इस रोग के निदान में मददगार होते हैं.
2 .उपर्युक्त लक्षण मिलने पर इस रोग में अन्य परीक्षाओं की जरुरत नही पड़ती है.
अगर समय पर इस रोग की चिकित्सा नही किया जाय तो क्या परिणाम हो सकते हैं?
* प्रतिश्याय स्वयं ठीक होने वाला अति कष्टदायक रोग होता है. यह खुद तो मारक नही है लेकिन इस रोग से बार- बार ग्रसित होने पर शरीर गंभीर औपसर्गिक रोगों के लिए अनुकूल क्षेत्र बन जाता है. जिसके कारण नासा, गला, श्वसन संस्थान के अनेक रोग आसानी से हो जाते हैं.
* बार- बार होने के कारण यह जीर्ण रोग में बदल जाता है.साथ ही इसमें पूर्वोक्त उपसर्ग हो जाते हैं. उपद्रव होने पर प्रतिश्याय पुनः प्रकट हो जाते हैं. रोग- क्षमता अल्प जो थोड़े ही समय में ख़त्म हो जाती है जिसके फलस्वरूप इसका आक्रमण किसी भी समय हो सकता है.
* बार- बार होने के कारण यक्ष्मा की तरह ही यह गुप्त रोग उत्पन्न कर सकता है.
* वाहिनी प्रेरक नासाशोथ में बराबर प्रतिश्याय होता रहता है.
प्रतिश्याय ( सर्दी ) का सामान्य चिकित्सा-
1 .इस रोग की उत्तम चिकित्सा विश्राम करना है. इसमें सामान्यतः 2 दिन के लिए पूर्ण विश्राम आवश्यक है.
विश्राम काल में गर्म पानी पीना, शरीर पोछना, गर्म वस्त्रों का इस्तेमाल करना, उष्ण, लघु, रूक्ष, सुपाच्य आहार का सेवन करना फायदेमंद होता है. तुलसी के पत्ते की चाय पीना लाभकारी होता है.
2 .गर्म पानी में नींबू, शहद एवं दो ड्राम ब्रांडी मिलाकर पीने से राहत मिलता है. रोगी को गर्म पानी अधिक पिलाना चाहिए.
3 .नाक भ रहा है उसे कोमल रुई से पोछना चाहिए.
4 .जुकाम के लक्षण प्रतीत होते ही कपड़े को गर्म पानी में डुबोकर थोड़ा निचोड़ लें और माथे तथा नाक पर दो-तीन बार रखें. इससे जुकाम खुल जाता है और नाक का तरल बहने लगता है जिससे आराम मिलता है.
5 .जिन लोगों को गले में तकलीफ हो उन्हें नमक मिला पानी उबालकर उस से गरारे करने चाहिए.
6 .प्रतिश्याय में उपवास अत्यंत लाभकारी है. इसमें प्रारंभ में औषधि नहीं देना ही अच्छा रहता है इससे शरीर का संक्षिप्त विजातीय द्रव्य के द्वारा बहकर बाहर निकल जाता है.
7 .रोग के कई दिन तक रहने पर विटामिन सी का सेवन करना फायदेमंद होता है.
8 .सर्दी के कारण अन्य उपद्रव हो रहे हैं तो उसकी चिकित्सा समयानुसार करनी चाहिए.
9 .रोगी को बुखार महसूस हो रहा हो तो घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए.
10 .रोग के अंत में कमजोरी होने पर रोग के पूर्ण निवारनार्थ रोगी को बल कारक औषधि विशेषकर आयरन टॉनिक की व्यवस्था करनी चाहिए.
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प्रतिश्याय ( सर्दी ) का आयुर्वेदिक उपाय-
1 .सोठ या हल्दी या अजवाइन का चूर्ण को दूध या पानी में उबालकर कपाल ( माथे ) पर लेप करें.
2 .अंडे की पिली टिकड़ी सिर पर रखकर उसके ऊपर कागज़ रखकर चिपका दें और दुसरे दिन हटाकर गुनगुने पानी से सिर धो लें. ऐसे 3 बार करने से सर्दी से राहत मिलता है.
3 .गरम पानी में राई का चूर्ण डालकर उसे थोड़ी देर के लिए पैर को डुबोकर रखें, ध्यान रहे पानी अधिक गरम न हो.
4 .अगर नाक बंद हो जाए या कफ गाढ़ा हो तो जायफल या सोठ का चूर्ण सूंघने से कफ ढीला होकर निकलेगा और नाक खुल जाएगी.
5 .गरम पानी में अमृत धरा की कुछ बुँदे डालकर भाप लें ऐसा करने से बंद नाक खुल जायेगा.
6 .त्रिकटु चूर्ण या तालिसादी चूर्ण या लावंगादी चूर्ण 3 ग्राम में आधा ग्राम श्रृंग भस्म मिलाकर गुनगुने पानी के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करें और त्रिभुवनकीर्ति वटी या कफ केतु वटी 2 वटी सुबह- दोपहर और रात को शहद के साथ सेवन करें.
7 .कस्तूरी कल्प 3 ग्राम की मात्रा में सुबह- शाम सेवन करें और अमर सुंदरी वटी 2 वटी या श्वास कुठार रस दिन में 2 बार पानी के साथ सेवन करें.
8 .नाक में अणु तेल या खंडबिंदु तेल या बादाम तेल डालें तथा अग्नितुंडी वटी,च्यवनप्राशावलेह, वासावलेह, सितोपलादि चूर्ण, प्रवालादि चूर्ण, मल सिंदूर आदि का सेवन उचित मात्रा में करना फायदेमंद होता है.
9 . तुलसी या अदरक का रस शहद में डालकर पिने से आराम मिलता है.
10 .ठंढा पानी, ठंढी हवा और वर्षा से बचकर रहें. तले हुए और ठंढे चीजों के सेवन से परहेज करें.
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नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.
चिकित्सा स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक.

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The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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