बच्चों में माता-पिता के रोगों का संचार कैसे होता है ?

हेल्थ डेस्क- आपने कई बार लोगों से सुना या पढ़ा होगा कि यदि माता-पिता को कोई जटिल बीमारी है तो उससे जन्मे बच्चे को भी बीमारी हो सकती है. जिसे अनुवांशिक कहा जाता है. आज हम इस लेख के माध्यम से बच्चों में माता-पिता के रोगों का संचार कैसे होता है और किसी वस्तु से प्रेम या घृणा करने वाली संतान कैसे उत्पन्न होती है ? के बारे में जानेंगे.

बच्चों में माता-पिता के रोगों का संचार कैसे होता है
बच्चों में माता-पिता के रोगों का संचार कैसे होता है

बच्चों में माता- पिता के रोगों का संचार कैसे होता है ?How are parental diseases transmitted to children?

जिस माता-पिता में कोई ऐसा रोग हो जिसका प्रभाव रज- वीर्य तक पहुंच चुका है तो ऐसे रज- वीर्य से जो संतान उत्पन्न होगी उसका प्रभाव संतान पर निश्चित होगा. जिस रोग से माता-पिता ग्रस्त होते हैं 2-2, 4-4 वर्ष की अवस्था में वही रोग बच्चों में देखे जाते हैं. इसी कारण तुरंत पैदा हुए बच्चे तक भी रोग ग्रस्त होते हैं.

जब माता-पिता में रोग बढ़ा हुआ हो और उस समय संभोग करते हैं और गर्भधारण हो जाए तब नवजात शिशु को वह वह रोग जन्म से ही हो जाता है. जैसे- रक्त विकार, मिर्गी, बवासीर, अतिसार, क्षय ( टीबी ) संग्रहणी, गर्मी, सूजाक, आतशक, नेत्र रोग और दंत रोग इत्यादि.

नोट- माता-पिता से पाए रोग इलाज करने से हल्के जरूर हो जाते हैं लेकिन यह जड़ से ठीक नहीं हुआ करते हैं.

किसी वस्तु से प्रेम या घृणा करने वाली संतान कैसे उत्पन्न होती है ? How to produce a child who loves or hates something?

गर्भधारण के समय में जिस बात से माता-पिता दोनों का प्रेम होता है संतान उस बात की अटल प्रेमी हो जाता है. जिस बात में उस समय केवल माता या पिता को प्रेम होता है उस बात में संतान का अधूरा प्रेम रहता है. जिस बात से उस समय माता-पिता दोनों को प्रेम नहीं होता संतान उसकी कट्टर विरोधी हो जाती है. जिस बात से उस समय माता या पिता को घृणा होती है संतान को उस में विशेष रूचि नहीं होती है या उससे घृणा हो जाता है.

नोट- गर्भधारण के समय में पुरुषों को महिला से तथा महिला को पुरुष से प्रेम अवश्य होता है. इसलिए दोनों एक दूसरे के अवश्य प्रेमी होते हैं.

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गर्भधारण के समय में जब पुरुष की ओर से प्रेम होता है तो बच्चे के वे ही अंग सुडौल होते हैं कि जो पिता के वीर्य से बनते हैं और जब महिला की ओर से प्रेम होता है तब बच्चे के वे ही अंग सुडौल होंगे कि जो महिला के डिम्ब से बनेंगे. इसलिए सारे अंगों को सुंदर, सुडौल तथा सबल बनाने के लिए शारीरिक संबंध के समय माता-पिता दोनों की ओर से प्रगाढ़ प्रेम का होना अत्यंत आवश्यक माना जाता है.

पति- पत्नी जब शारीरिक संबंध बना रहे होते हैं उस समय यदि दोनों में प्रगाढ़ प्रेम हो तो संतान सुंदर, सुडौल, सबल और उत्तम होती है. यदि शारीरिक संबंध के समय माता-पिता का प्रेम मध्यम हो तो मध्यम गुणों वाली संतान होती है. यदि निम्न कोटि का प्रेम हो या प्रेम बिल्कुल ना हो तो अनेक प्रकार की कुरूप और अंगहीन संतान उत्पन्न होती है.

जितने अंशों में माता-पिता प्रेम द्वारा मन से एक हो जाते हैं उतने ही अंशों में उनसे उत्पन्न हुए संतान श्रेष्ठ होता है. इस प्रकार केवल प्रेम द्वारा ही उत्तम संतान की प्राप्ति हो सकती है.

लेख स्रोत- एलोपैथिक गाइड.

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I am an Ayurveda doctor and treat diseases like paralysis, sciatica, arthritis, bloody and profuse piles, skin diseases, secretory diseases etc. by herbs (Ayurveda) juices, ashes.

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