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मलेरिया बुखार होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

By : Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)In : Health Tips, UncategorizedRead Time : 2 MinUpdated On April 16, 2022

हेल्थ डेस्क- मलेरिया बुखार को जुड़ी ताप, मौसमी बुखार, शीतज्वर, विषम ज्वर तथा कहीं-कहीं से तिजारी भी कहते हैं

मलेरिया एक तीव्र स्वरूप का तथा दीर्घकालिक संक्रामक बुखार है. जिसमें सबसे पहले समूचे बदन में कपकपी, सिर दर्द, उल्टी, फिर जाडा लगकर तेजी से बुखार आना, समस्त शरीर में दर्द, थोड़ी देर पश्चात पसीना देकर बुखार का उतर जाना, कभी बुखार का घटना और कभी बढ़ना तथा काफी प्यास लगना आदि लक्षण मिलते हैं. यह पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे दिन का अंतर देकर आता है. यह बारी-बारी से आने वाला बुखार है जो मच्छरों के काटने से होता है.

मलेरिया बुखार होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

इसमें शीतपूर्वक ज्वर चढ़ता है और कुछ ही घंटे रहकर प्रायः पसीना आ कर उतर जाता है. कभी-कभी बुखार आने के बाद प्लीहा वृद्धि और रक्त न्यूनता ( खून की कमी ) हो जाती है.

मलेरिया का प्रकोप जंगली बस्तियों, पहाड़ के निचले हिस्से, मलिन बस्तियों, विकसित हो रही कालोनियों के अतिरिक्त हर गंदे स्थान जहां पानी जमा होता है हो सकता है.

मलेरिया बुखार होने के कारण- Due to malarial fever-

मलेरिया बुखार को उत्पन्न करने वाला एक परजीवी होता है इसे प्लाज्मोडियम कहते हैं. यह एककोशीय जीवाणु होता है. इसकी निम्न चार जातियां होती है.

1 .प्लाज्मोडियम वाइवेक्स-

2 .प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम-

3 .प्लाज्मोडियम मलेरी-

4 .प्लाज्मोडियम ओवेल-

मलेरिया उत्पन्न करने वाले उपरोक्त परजीवी जीवाणु एनोफिलीज नामक मादा मच्छर की लार ग्रंथियों में रहते हैं. जब यह मादा किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटती है तो यह परजीवी उस व्यक्ति के रक्त में चले जाते हैं और वहां से यह पहले रक्त में पहुंचते हैं, यहां पर इनमें कुछ परिवर्तन होते हैं इस समय यह यकृत को छोड़कर परिवर्तित रूप से पुनः रक्त प्रवाह में आ जाते हैं और इस बार रक्त की लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं. इन कोशिकाओं में रहकर इन में पुनः परिवर्तन होते हैं.

प्लाज्मोडियम वाइवेक्स और प्लाज्मोडियम ओवेल 48 से 72 घंटे तक लाल रक्त कोशिकाओं के अंदर रहता है.

प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम 48 घंटे और प्लाज्मोडियम मलेरी 72 घंटे तक लाल रक्त कोशिकाओं को अपना निवास स्थान बनाए रखते हैं.

इस समय तक रोगी में कोई लक्षण उत्पन्न नहीं होते हैं. विभिन्न परजीवी उपरोक्त अवधि के पश्चात लाल रक्त कोशिकाओं को फाड़ कर बाहर निकल आते हैं. लाल रक्त कोशिकाओं के फटने से एक प्रकार का बिष मुक्त होकर रक्त प्रवाह में मिल जाता है. जिसके कारण रोगी में बुखार शुरू हो जाता है.

परजीवी पुनः लाल रक्त कोशिकाओं में घुस जाते हैं और एक विशेष अवधि तक रहकर उसको फाड़कर पुनः बाहर निकलते हैं. जिससे रोगी को पुनः बुखार आने लगता है.

विभिन्न परजीवी के लाल रक्त कोशिकाओं में निवास करने की अवधि में भिन्नता होने के कारण ही बुखार के आक्रमण काल की अवधि में भी अंतर हुआ करती है. जैसे 2 दिन पर, 3 ,4 दिन पर बुखार आना.

जब परिपक्व और परजीवी लाल कणों को विदीर्ण कर बाहर आते हैं तब शीत ( ठंढ ) आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं. जैसा कि ऊपर बताया गया है कि परिपक्व होकर बाहर आने का काल प्रत्येक परजीवी में भिन्न-भिन्न होने के कारण बुखार का आक्रमण भिन्न-भिन्न समय पर होता रहता है. इसी ज्वर काल के अनुसार मलेरिया के तृतीय आदि भेद किए जाते हैं.

मलेरिया बुखार होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

मलेरिया रोग के विशिष्ट लक्षण- Typical symptoms of malaria disease-

ठंडक की दशा में- अचानक मरीज को सिरदर्द, बेचैनी, थकान, मतली या उल्टी की शिकायत होती है. साथ ही रोगी को ठंड लगती है. मरीज को झुरझुरी या कपकापी लगती है. शरीर का तापमान 39 डिग्री से 41 डिग्री सेल्सियस यानी 102 से 108 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाता है. पर त्वचा छूने से ठंडी होती है यह अवस्था लगभग 1 घंटे तक रहती है.

गर्मी की दशा में- मरीज को बहुत गर्मी लगती है साथ ही उल्टी, दस्त, पेट दर्द, खांसी आना इत्यादि लक्षण होते हैं इस अवस्था में त्वचा गर्म सुखी हो जाती है और त्वचा का तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है.

पसीने की दशा में- बुखार जब कम होता है त्वचा ठंडी और नम हो जाती है. रोगी को राहत महसूस होती है और वह निढाल हो कर सो जाता है.

मलेरिया रोग की पहचान- Diagnosis of malaria disease

ठीक समय पर कपकापी के साथ बुखार चढ़ना एवं पसीना आकर बुखार उतर जाना, साथ में खून की कमी, प्लीहा वृद्धि आदि.

बुखार का आकस्मिक आक्रमण,, बुखार के आक्रमण के पूर्व ठंड लगना सिर दर्द, हल्लास, पूरे शरीर में दर्द, ज्वर वेग के क्रम से शीतावस्था, ऊष्मावस्था तथा प्रस्वेदावस्था की स्थिति, बुखार उतरने के बाद सामान्य कमजोरी, बुखार वेग के समय प्लीहा वृद्धि, कभी-कभी बुखार में नियतकालिकता विशेषकर तृतीय और चतुर्थ बुखार में तथा तीव्र बेचैनी आदि लक्षणों के आधार पर आसानी से पहचाना जा सकता है. बारी- बारी से आने वाला बुखार मलेरिया होता है.

मलेरिया बुखार दूर करने के आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-Ayurvedic and home remedies to remove malaria fever-

गरम कंबल आदि रोगी को ढककर सुला दें और कमरे को गर्म रखें.

1 .किरातावानक 20 मिलीलीटर, कफवानक 20 मिलीलीटर, जवाखार 1 ग्राम, उदक 20 मिलीमीटर को मिलाकर 3 भाग करके दिन में 3 बार पीने से मलेरिया बुखार में लाभ होता है.

2 .महामृत्युंजय रस या  त्रिभुवनकीर्ति रस  या महाज्वरांकुश दो-दो गोली दिन में तीन बार सेवन कराएं.

3 .या ताकिशादि चूर्ण 1 ग्राम, सुदर्शन चूर्ण 1 ग्राम, गोदंती भस्म 1/2 ग्राम, शुद्ध फिटकिरी 2 गूंज- ऐसी तीन मात्रा दिन में सेवन कराने से सभी प्रकार के मलेरिया बुखार तुरंत दूर हो जाते हैं.

4 .कंठ में पीड़ा या कंठशालूक हो तो गर्म पानी में नमक मिलाकर कुल्ला करें या मधु प्रवाही रुई से गले में लगावें. नाक बंद हो गए तो उष्ण जल से भाप लें या कायफल भस्म सूंघें.

5 .मलेरिया बुखार के लिए गिलोय का क्वाथ काफी फायदेमंद औषधि है. इसको बनाने के लिए गिलोय, लाल चंदन, किराता, धनिया, सोठ,, नीम की छाल, कोदना सभी को बराबर मात्रा में लेकर कूटकर अब इसमें से 25 ग्राम लेकर 300ml पानी डालकर पकावें जब 100ml पानी बचे तब छानकर दिन में दो बार पीने से अच्छा लाभ होता है. 6 .त्रिकटु चूर्ण, तुलसी का रस और शहद या अदरक का रस और शहद का सेवन करना भी मलेरिया बुखार में उत्तम है.

6 .मलेरिया बुखार में विटामिन सी का सेवन लाभदायक होता है. इसलिए बहुत सारे पौष्टिक तत्वों से भरपूर अमरूद का सेवन करना लाभदायक होता है.

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8 .तुलसी के 8 -10 पत्ते और 7-8 कालीमिर्च को पीसकर शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से बुखार में कमी आती है.

9 .मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति को नींबू में काली मिर्च और सेंधा नमक या सेब पर काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर खिलाने से लाभ होता है. इससे भूख भी अच्छी लगती है.

10 .मलेरिया बुखार से पीड़ित व्यक्ति को तरल पदार्थों के अलावा खिचड़ी, साबूदाना, दलिया जैसे हल्के और पौष्टिक तत्वों से भरपूर चीजों का सेवन कराना चाहिए.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.

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-: Note :-

The information given on this website is based on my own experience and Ayurveda. Take the advice of a qualified doctor (Vaidya) before any use. This information is not intended to be a substitute for any therapy, diagnosis or treatment, as appropriate therapy according to the patient's condition may lead to recovery. The author will not be responsible for any damage caused by improper use. , Thank you !!

Dr. P.K. Sharma (T.H.L.T. Ranchi)

मैं आयुर्वेद चिकित्सक हूँ और जड़ी-बूटियों (आयुर्वेद) रस, भस्मों द्वारा लकवा, सायटिका, गठिया, खूनी एवं वादी बवासीर, चर्म रोग, गुप्त रोग आदि रोगों का इलाज करता हूँ।

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